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Russia-Ukraine Conflict: जानें कैसे बनता है अलग देश, क्या हैं नियम?

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे विवाद के बीच रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के दो क्षेत्रों को अलग देश बनाने की घोषणा की है.

Russia-Ukraine Conflict: जानें कैसे बनता है अलग देश, क्या हैं नियम?

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डीएनए हिंदी: रूस और यूक्रेन का विवाद इन दिनों दुनिया भर में चर्चा का अहम विषय बना हुआ है. रूस ने यूक्रेन के दो क्षेत्रों लुहान्सक और दोनेत्स्क को स्वतंत्र देश घोषित कर दिया है. इस मुद्दे पर जंग अभी भी जारी है. मगर आम जनता के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर कोई भी क्षेत्र एक घोषणा के साथ ही अलग देश कैसे बन जाता है? या फिर ये कि क्या किसी भी क्षेत्र का अलग देश बनना इतना आसान होता है? इन सभी सवालों के जवाब-

कैसे बनता है अलग देश
अगर इतिहास पर गौर करें तो अलगाववादी आंदोलनों का दौर लंबे समय से चला आ रहा है. इसका एक उदाहरण यूनाइटेड नेशंस में शामिल देशों की संख्या से भी लिया जा सकता है. 1945 में यूएन में जहां 51 राष्ट्र थे वहीं अब उनकी संख्या 193 हो चुकी है. ऐसे में अलग देश बनने के लिए क्या नियम होते हैं और किन मानकों पर खरा उतरना पड़ता है इसके लिए भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं.

खुद को आजाद राष्ट्र घोषित करना
अलग देश के रूप में स्थापित होने से पहले उस क्षेत्र को खुद को आजाद देश घोषित करना होता है. रूस-यूक्रेन के संबंध में जिस तरह रूस ने हाल ही में लुहान्सक और दोनेत्स्क को अलग देश घोषित किया है. यह इस दिशा में पहला कदम माना जा सकता है. हालांकि इसके लिए अंतरराष्ट्रीय मानकों का पालन करना जरूरी है. ये अंतरराष्ट्रीय मानक सन् 1933 में मॉन्टेवीडियो सम्मेलन में जारी किए गए थे. 

क्या कहता है मॉन्टेवीडियो सम्मेलन
सन् 1933 में उरुग्वे की राजधानी मॉन्टेवीडियो में एक सम्मेलन हुआ. इसे मॉन्टेवीडियो सम्मेलन के नाम से ही जाना जाता है. इस सम्मेलन में किसी भी क्षेत्र या राज्य को अलग देश घोषित करने से जुड़े कुछ नियम बताए गए. इनमें चार जरूरतों पूरा करना बेहद अहम है.
1. उस क्षेत्र की स्थाई जनसंख्या
2. स्थाई और तय क्षेत्रफल
3. स्थाई सरकार
4. अन्य राष्ट्रों से संबंध

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जरूरी है यूएन से मान्यता
मॉन्टेवीडियो सम्मेलन से जुड़े इन चार नियमों के अलावा यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि उस देश के लोगों ने बहुमत से अलग देश बनने का फैसला किया हो. इसके अलावा उस देश को यूएन से मान्यता मिलना भी जरूरी है. यूएन से मान्यता प्राप्त सदस्य देशों को ही इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) और वर्ल्‍ड बैंक जैसी संस्‍थाएं अपना सदस्य बनाती हैं.

यूनाइटेड नेशंस की भूमिका
वैसे तो यूनाइटेड नेशंस चार्टर में ‘सेल्‍फ डिटर्मिनेशन’ का अधिकार दिया गया है. इसका मतलब है कि किसी भी तयशुदा क्षेत्र की तयशुदा आबादी यह तय कर सकती है कि वह कैसे और किसके नियंत्रण में रहना चाहती है, इसमें किसी को भी हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. फिर भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय में खुद को बतौर देश स्थापित करने के लिए किसी भी देश का यूनाइटेड नेशंस की सदस्यता मिलना बहुत जरूरी होता है. 

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कैसे मिलती है यूएन की सदस्यता
यूएन की सदस्यता हासिल करने के लिए उक्त देश को यूएन सेक्रेटरी के सामने आवेदन पेश करना होता है. इसमें यह घोषित करना जरूरी है कि वह देश यूनाइटेड नेशंस चार्टर का पूरी तरह पालन करेगा. इसके बाद यह आवेदन सुरक्षा परिषद द्वारा पास किया जाता है. इसमें 15 सदस्यीय परिषद के कम से कम नौ सदस्यों का सकारात्मक वोट मिलना जरूरी होता है.

इस परिषद के पांच स्थायी सदस्यों (चीन, फ्रांस, रशियन फेडरेशन, यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन, नॉर्दर्न आयरलैंड और यूएस) में से कोई भी देश उक्त देश के आवेदन के खिलाफ वोट करता है तो उसे अलग देश की मान्यता नहीं मिलती है. अगर आवेदन अप्रूव हो जाता है तो इसे जनरल एसेंबली में 192 यूएन सदस्य देशों के सामने पेश किया जाता है. यूएन का सदस्य बनने के लिए किसी भी देश को इन सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत चाहिए होता है. 

ये भी पढ़ें- Russia-Ukraine Crisis: रूस और यूक्रेन के बीच आखिर झगड़ा किस बात का है?

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