डीएनए एक्सप्लेनर
अमेरिका एक ऐसा देश जो अपने को दुनिया का सबसे प्राचीन लोकतंत्र कहता है, वहां महिलाओं की हालत बेहद ख़राब है. यहां 1789 से अब तक 46 राष्ट्रपति हुए हैं, जिनमें से एक को छोड़कर सभी श्वेत पुरुष थे. रोचक ये कि इनमें कोई भी राष्ट्रपति महिला नहीं हुआ. सवाल ये है कि क्या अमेरिका महिला विरोधी है?
क्या एक देश के रूप में अमेरिका डोनाल्ड ट्रंप के मुकाबले एक महिला को राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार है, विशेषकर कमला हैरिस को? यह सवाल हर वो शख्स पूछ रहा है जिसकी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों या ये कहें कि अमेरिका की राजनीति के प्रति कोई दिलचस्पी है. अमेरिका ने 1789 से अब तक 46 राष्ट्रपति चुने हैं, जिनमें से एक को छोड़कर सभी श्वेत पुरुष थे. एक ऐसे देश के लिए जो खुद को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र कहता है, यह तथ्य कि उसने कभी भी एक महिला को राष्ट्रपति नहीं चुना है, अमेरिकी समाज में व्याप्त गहरी स्त्री-द्वेष की भावना को दर्शाता है.
लेकिन हालात बदले हैं और इसका कारण रही हैं हिलेरी क्लिंटन. 2016 की उम्मीदवारी के दौरान भले ही हिलेरी, ट्रंप से न जीत पाईं हों लेकिन इस बात में भी कोई शक नहीं है कि उन्होंने अमेरिका में महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त किया है.अमेरिका में महिला नेताओं की स्थिति क्या है? मतदाता जनसांख्यिकी उसकी एक स्पष्ट तस्वीर पेश करती है.
2016 में, कई महिलाओं ने स्वीकार किया कि उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को वोट नहीं दिया क्योंकि वे एक महिला राष्ट्रपति की कल्पना नहीं कर सकती थीं. यह अनिच्छा कुछ अन्य वर्गों जिनमें ब्लू कॉलर वर्कर और श्वेत पुरुष शामिल हैं जिन्होंने कॉलेज की डिग्री नहीं है, में भी व्याप्त है. ये लोग पारंपरिक जेंडर स्टीरियोटाइप के पक्षधर हैं.
इसी तरह भले ही पेंसिल्वेनिया, मिशिगन और विस्कॉन्सिन जैसे स्विंग राज्यों में एकत्रित मतदाता किसी भी नेता के लिए चुनाव जीतने में महत्वपूर्व भूमिका निभाते हों, लेकिन क्योंकि महिलाओं को यहां की एक बड़ी आबादी कमतर समझती है, हैरिस को इन स्थानों में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.
बिना कॉलेज की डिग्री के श्वेत पुरुष, एक ऐसा समूह जिसने बड़े पैमाने पर ट्रम्प को अपनाया है, एक महिला उम्मीदवार का समर्थन करने की उनकी संभावना कम है. इसके अलावा, राजनीति में लैंगिक पूर्वाग्रह व्यापक सामाजिक असमानताओं को दर्शाता है.
बताते चलें कि अमेरिका में महिलाओं को उनके पुरुष समकक्षों की तुलना में समान काम के लिए कम सैलरी मिलती है.अमेरिका से जुड़ी ये बात ये बताने के लिए काफी है कि अमेरिका में लैंगिक रूढ़िवादिता की जड़े अभी भी बहुत गहरी हैं. ये सामाजिक पैटर्न राजनीति में भी दिखाई देते हैं, जहां महिलाओं की अक्सर पुरुषों की तुलना में अधिक कठोरता से जांच की जाती है, और उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाए जाते हैं.
कमला हैरिस की उम्मीदवारी यह आकलन करने का एक नया अवसर प्रदान करती है कि क्या राष्ट्र अपने सर्वोच्च पद पर एक महिला को अपनाने के लिए तैयार है? जबकि प्यू रिसर्च से पता चलता है कि 93 प्रतिशत अमेरिकी कहते हैं कि वे एक योग्य महिला उम्मीदवार को वोट देंगे, केवल 25 प्रतिशत को लगता है कि एक महिला जल्द ही चुनी जाएगी.
यह हिचकिचाहट अमेरिकी राजनीति में महिलाओं के प्रति अरुचि की भावना को उजागर करती है.हाल के सर्वेक्षणों ने इन चिंताओं को और मजबूत किया है. स्विंग राज्यों में 18 से 34 वर्ष की आयु के मतदाताओं के यूएस न्यूज सर्वेक्षण में पाया गया कि 80 प्रतिशत से अधिक लोगों का मानना है कि एक महिला एक प्रभावी नेता हो सकती है, लेकिन यहां हमें एक स्पष्ट विभाजन दिखाई पड़ता है.
रिपब्लिकन पुरुष अधिक संशयी हैं, 16 प्रतिशत इस बात से असहमत हैं कि एक महिला एक मजबूत राष्ट्रपति हो सकती है. जबकि युवा मतदाता आम तौर पर नेतृत्व की भूमिकाओं में महिलाओं का समर्थन करते हैं, फिर भी इस बात को लेकर हिचकिचाहट है कि क्या अमेरिका एक महिला राष्ट्रपति के लिए तैयार है, केवल 68 प्रतिशत लोग इस बात से सहमत हैं कि देश एक महिला को चुनने के लिए तैयार है.
लोग दावा कर सकते हैं कि वे सामाजिक रूप से प्रगतिशील दिखने के लिए एक महिला को वोट देंगे, लेकिन मतदान बूथ की गोपनीयता में, अक्सर पूर्वाग्रह सामने आते हैं.जिक्र बतौर राष्ट्रपति उम्मीदवार कमला हैरिस का हुआ है तो सवाल होगा कि आखिर ऐसी क्या चीज है जो उन्हें अमेरिका की राजनीति में खास बनाती है? जवाब है हैरिस का विविधता और समावेशिता से भरा हुआ होना. जी हां सही सुना आपने.
पहली महिला उपराष्ट्रपति और अश्वेत तथा दक्षिण एशियाई मूल की महिला के रूप में हैरिस एक ऐसे अमेरिका का प्रतिनिधित्व करती हैं जो पहले से कहीं अधिक विविधतापूर्ण और बहुआयामी है. उनके नेतृत्व को अक्सर सहानुभूति रखने, हाशिए पर पड़े समूहों से जुड़ने और प्रजनन अधिकारों के लिए लड़ने की उनकी क्षमता के इर्द-गिर्द गढ़ा गया है.
रोचक ये कि ये सभी पारंपरिक रूप से राजनीति में स्त्री शक्ति से जुड़े हैं.इन प्रमुख मुद्दों, विशेष रूप से गर्भपात अधिकारों पर हैरिस का मंच महिला मतदाताओं के साथ ऐसे समय में कंधे से कंधा मिलकर खड़ा है. जब प्रजनन स्वतंत्रता रिपब्लिकन के नेतृत्व वाले राज्य कानूनों से सीधे खतरे में है.
बहरहाल. भले ही हैरिस के सामने चुनौतियां तमाम हों. लेकिन अमेरिकी राजनीति को समझने वाला एक बड़ा वर्ग ऐसा है. जो इस बात को लेकर एकमत है कि स्विंग राज्यों के अलावा यदि हैरिस श्वेत युवाओं और महिलाओं को रिझाने में कामयाब हो गईं तो शायद ही कोई उनके विजय रथ को रोक पाए.
अमेरिका को अपना राष्ट्रपति एक महिला मिलेगा या फिर डोनाल्ड ट्रंप दोबारा अमेरिका की सत्ता संभालेंगे फैसला वक़्त करेगा लेकिन जो वर्तमान है और जैसा द्वेष महिलाओं के प्रति अमेरिका लिए हुए है, उसे देखकर इतना तो तय है कि जीत एक महिला के रूप में हैरिस के लिए कहीं से भी आसान नहीं होने वाली.
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