डीएनए एक्सप्लेनर
Isreal Palestine History: इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का झगड़ा नया नहीं है और 7 दशकों से भी ज्यादा समय से चला आ रहा है. इस झगड़े के पीछे कई ऐतिहासिक तथ्य भी हैं. DNA TV Show में इसके हर पहलू पर विस्तार से चर्चा की गई है.
डीएनए हिंदी: फिलिस्तीन और इजरायल के बीच विवाद करीब 75 वर्षों से चल रहा है. यह विवाद न सिर्फ जमीन को लेकर है, बल्कि ये दो विचारधाराओं, दो धर्मों और दो संस्कृतियों से जुड़ा हुआ है. आज भले ही आप फिलिस्तीन के आतंकी संगठन हमास और इजरायल के बीच बड़ी जंग देख रहे हों. आपका ये समझना जरूरी है कि यह विवाद केवल अल-अक्सा या जमीन पर कब्जे जैसे मसले को लेकर नहीं है. बल्कि ये दो समुदायों के बीच होने वाला ऐतिहासिक विचार युद्ध है, जिसमें पिछले कई दशकों से हथियारों का इस्तेमाल हो रहा है. इस्लाम, ईसाई और यहूदी इन तीनों ही धर्मों के लिए यरुशलम एक पवित्र शहर है. जिस जमीन को अरब देश फिलिस्तीन कहते हैं उसको यहूदी समुदाय इजरायल कहता है.
हालांकि, ऐतिहासिक रूप से देखें तों यहूदी मान्यता के अनुसार आज से 3 हजार वर्ष पहले यहूदियों ने यरुशलम में अपना SOLOMAN TEMPLE बनाया था. यह वही जगह जहां आज के वक्त में 'अल-अक्सा मस्जिद' है. करीब 2 हजार वर्ष पहले ईसाई धर्म अस्तित्व में आया और धीरे-धीरे पूरा क्षेत्र रोमन साम्राज्य के अधीन हो गया. ईसाह मसीह के जन्म के 135 वर्ष बाद रोमन शासक हैड्रियन ने इजरायल पर हमला किया था. उसने यहूदियों को वहां से भगा दिया था. इस युद्ध के करीब 500 वर्ष बाद अरब में इस्लाम धर्म अस्तित्व में आया था. इस्लाम के अस्तित्व में आने के अगले 50 वर्षों के अंदर पूरे इजरायल पर 'उमय्यद ख़िलाफ़त' का शासन आ गया। फिर इसके बाद 16वीं से 20वीं शताब्दी तक ये क्षेत्र 'ओस्मानिया सल्तनत' के अधीन रहा.
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ऐतिहासिक तथ्य क्या कहते हैं?
ऐतिहासिक तथ्यों में ये बात पता चलती है कि जिस क्षेत्र को अरब देश, फिलिस्तीन बताते हैं, दरअसल वो क्षेत्र, इस्लाम के अस्तित्व में आने के पहले से यहूदी और ईसाई धर्म से जुड़े लोगों का रहा है. हालांकि समय बदला तो युद्ध के बाद इस क्षेत्र पर अधिकार की स्थिति भी बदलती गई। यहूदी से ईसाई, ईसाई से इस्लाम धर्म के लोग इस क्षेत्र पर अपना कब्जा बताते रहे हैं. आधुनिक इतिहास को खंगालने पर पता चलता है कि पहले विश्व युद्ध के बाद, इस क्षेत्र पर कब्जे की स्थिति फिर बदल गई थी. यानी जिस क्षेत्र में ओस्मानिया सल्तनत चलती थी या फिर तुर्किए का शासन चलता था, वो पहले विश्व युद्ध के बाद बदल दिया गया था.
प्रथम विश्व युद्ध के बाद बनी इजरायल की नींव
दरअसल वर्ष 1914 में पहले विश्वयुद्ध में तुर्किए हार गया था. इस युद्ध के बाद वर्ष 1918 से ये पूरा इलाका ब्रिटेन के प्रभाव में आ गया था. ब्रिटेन इस पूरे क्षेत्र की प्रशासनिक व्यवस्था देखता था। वर्ष 1917 में ब्रिटेन की ओर से एक पत्र लिखा गया था, जिसे The Belfour Declaration बोला जाता है. यह पत्र ब्रिटेन के विदेश सचिव आर्थर बेलफोर ने यहूदियों के Zionist Federation के एक नेता Leonal Walter Rothschild को लिखा था. इस पत्र में लिखा गया था कि ब्रिटिश सरकार फिलिस्तीन में यहूदियों के लिए एक नया देश बनाने का समर्थन करती है और इसके लिए हर सभंव प्रयास करेगी.
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यहूदियों ने झेला नरसंहार और भेदभाव
दरअसल हजारों वर्ष पहले अपने देश से निकाले गए यहूदी, यूरोप के अलग-अलग देशों में चले गए। जहां उनके साथ भेदभाव और कत्लेआम हुआ. इसकी वजह से 19वीं शताब्दी में यूरोप के यहूदियों में एक आंदोलन शुरू हुआ, जिसके तहत यहूदियों ने वापस इजरायल लौटना शुरू कर दिया था। इसी को Zionist Movement कहा जाता है, जिसे जियोनिस्ट फेडरेशन जैसी संस्थाएं आज भी चला रही हैं.वर्ष 1930 के दशक में जब जर्मनी के अंदर हिटलर और नाजी पार्टी का शासन आया, तो जर्मनी और यूरोप के देशों में यहूदियों का दमन चरम पर पहुंच गया था.
यहूदियों ने की अपने स्वतंत्र देश की मांग
यूरोप में बड़े पैमाने पर यहूदियों ने Zionist Movement के तहत ही, इजरायल का तेजी से रुख करना शुरू कर दिया था. यहूदियों को लगा कि उनका खुद का देश नहीं होगा तब तक उनका दमन चलता रहेगा। इसीलिए वो जल्दी से जल्दी अपनी ऐतिहासिक धरती इजरायल आना चाहते थे. जब दुनियाभर के यहूदी, इजरायल लौटने लगे तब इस क्षेत्र में मौजूद फिलिस्तीनी नागरिकों में इसको लेकर नाराजगी तो थी. वो उनके यहां आने के विरोध में नहीं थे. दरअसल उस दौर में जो यहूदी यहां लौटे, वो यहां के फिलिस्तीनी नागरिकों से जमीनें खरीदकर बस रहे थे. जो फिलिस्तीनी नागरिक यहूदियों को जमीन बेच रहे थे वो आमतौर पर यहूदियों के यहां आने का विरोध नहीं करते थे.
संयुक्त राष्ट्र ने किया इजरायल-फिलिस्तीन का बंटवार
दूसरे विश्वयुद्ध में जब यहूदियों का बड़े पैमाने पर नरसंहार शुरू हुआ, हिटलर की नाजी सेना ने 6 लाख से ज्यादा यहूदियों का कत्लेआम कर दिया. तब दुनिया के अन्य देशों में यहूदियों को लेकर सहानुभूति पैदा होने लगी। जिसकी वजह से 1945 में दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद यहूदियों के लिए अलग देश की मांग उठने लगी. उस वक्त फिलिस्तीन में बड़ी संख्या में यहूदी रहते थे, ऐतिहासिक तौर पर ये जमीन यहूदी समुदाय से जुडी हुई थी, तो संयुक्त राष्ट्र ने इस पूरे क्षेत्र को फिलिस्तीन और इजरायल नाम के दो देशों में बांट दिया. ब्रिटेन और फ्रांस ने संयुक्त राष्ट्र में इसका प्रस्ताव रखा था. ये प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र में पारित भी हो गया, जिसके साथ ही वर्ष 1948 में इजरायल अस्तित्व में आ गया. यहूदी समुदाय ने संयुक्त राष्ट का ये प्रस्ताव मान लिया था। लेकिन यहां एक नए विवाद का दौर शुरू हो गया जो आजतक जारी है। यहूदियों ने संयुक्त राष्ट्र की बात मान ली थी, लेकिन अरब देशों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया. 14 मई 1948 को यहूदी नेताओं ने इजरायल की घोषणा की थी.
इजरायल बनने के अगले ही दिन किया हमला
इजरायल बनने के अगले ही दिन मिस्र,जॉर्डन,सीरिया और ईराक ने इजरायल पर हमला बोल दिया था. वर्ष 1948 से 1949 (उन्नीस सौ उन्चास) तक चले इस युद्ध में इजरायल ने सभी अरब देशों को हरा दिया था. इस युद्ध में इजरायल ने जीत के बाद फिलिस्तीन की कुछ जमीन पर भी कब्जा कर लिया था. इस कब्जे के साथ करीब 7 लाख से ज्यादा फिलिस्तीनियों को पड़ोसी देशों में जाना पड़ा. इस युद्ध के बाद फिलिस्तीन एक तरह से पहले के मुकाबले और ज्यादा छोटे दो हिस्सों गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक में बंट गया.
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