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ऑफिस का वर्क प्रेशर क्यों बन रहा है जानलेवा! लखनऊ से पुणे तक क्यों हो रही मौतें, डिटेल में समझिए

कर्मचारी का नाम सदफ फातिमा था, वो HDFC में एडिशनल डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत थीं. ऑफिस का काम करते हुए वो अचानक से अपनी कुर्सी से निचे गिर गईं, उसके बाद उनकी मौत हो गई. 'वर्क प्रेशर' से लखनऊ से पुणे तक क्यों हो रही मौतें, डिटेल में समझिए

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ऑफिस का वर्क प्रेशर क्यों बन रहा है जानलेवा! लखनऊ से पुणे तक क्यों हो रही मौतें, डिटेल में समझिए

सांकेतिक तस्वीर-Freepik

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आज के दौर में वर्क प्रेशर को हैंडल करना कॉर्पोरेट के कर्मचारियों के लिए एक बड़ा मसला बनता जा रहा है. कुछ दिनों पहले ही अत्याधिक वर्क प्रेशर की वजह से पुणे में एक महिला की मौत हो गई थी. तब इस मुद्दे को लेकर खूब बातें हुई थी. अब ये मुद्दा एक बार फिर से सुर्खियों में छाता हुआ दिख रहा है. दरअसल यूपी के लखनऊ में HDFC बैंक की एक कर्मचारी की ऑफिस में ही मौत हो गई.

मौत की क्या है वजह
कर्मचारी का नाम सदफ फातिमा था, वो HDFC में एडिशनल डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट के पद पर कार्यरत थीं. ऑफिस का काम करते हुए वो अचानक से अपनी कुर्सी से निचे गिर गईं, उसके बाद उनकी मौत हो गई. बताया जा रहा है कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई है. हार्ट अटैक आया. सहकर्मियों की तरफ से दावा किया गय है कि सदफ फातिमा वर्क प्रेशर से जूझ रहा थी. हालांकि मौत के कारण का पता पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ही लग पाएगा.

'वर्क प्रेशर' से लखनऊ से पुणे तक क्यों हो रही मौतें, डिटेल में समझिए
लखनऊ से पुणे तक काम के तनाव को लेकर लोगों की मौतें हो रही हैं. इसको लेकर हमें समझना पड़ेगा कि ऐसा क्यों हो रहा है. भारत की वर्किंग कल्चर की बात करें यहां रोजाना काम करने की अवधि 8 से 9 घंटों की होती है. हर हफ्ते लोगों को करीब 45 से 48 घंटे काम करना होता है. वहीं, कई जगहों और कुछ कंपनियों में काम करने का कोई तय समय नहीं होता है. वहां टार्गेट बेस्ड तरीके से काम करना होता है.

ऐसी जगहों पर लोग 12-12 घंटे और उससे ज्यादा समय तक भी काम करते हैं. इस कारण वो समय स न तो खाना खा पाते हैं और न ही सही समय से नींद ले पाते हैं. इसका सीधा नतीजा ये होता है कि उनके हेल्थ की स्थिति लगातार कमजोर होती जाती है. आगे चलकर उनको इसका बड़ा खामियाजा उठाना पड़ता है.


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कई देशों में बेहतर वर्क लाइफ बैलेंस पर फोकस
दुनिया में कई ऐसे भी देश हैं, जहां पर वर्क लाइफ बैलेंस को बेहतर रखने पर ज्यादा फोकस किया जाता है, उन देशों में लोग हफ्ते में 30 घंटे या उससे उस समय तक ही कार्यरत होते हैं. यही वजह है कि खुशहाली के सर्वे में इन दोशों की स्थिति हमेशा अच्छी रहती है, वहीं टॉक्सिक वर्क कल्चर वाले देश इन सर्वे में हमेशा फिसड्डी रहते हैं.

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