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PBG: राष्ट्रपति मुर्मू आज बॉडीगार्ड्स को सिल्वर ट्रंपेट और ट्रंपेट बैनर से करेंगी सम्मानित, जानिए क्या है इनका इतिहास

President's Bodyguard: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एक समारोह में राष्ट्रपति के अंगरक्षक (पीबीजी) को सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर भेंट करेंगी.  

PBG: राष्ट्रपति मुर्मू आज बॉडीगार्ड्स को सिल्वर ट्रंपेट और ट्रंपेट बै��नर से करेंगी सम्मानित, जानिए क्या है इनका इतिहास
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डीएनए हिंदीः देश में राष्ट्रपति के अंगरक्षक (President Body Guard) की स्थापना के 250 साल पूरे होने के मौके पर आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू अंगरक्षक दल को सिल्वर ट्रंपेट और बैनर प्रदान करेंगी. राष्ट्रपति की सुरक्षा में लगे ये बॉडी गार्ड्स (President Body Guard) काफी खास होते हैं. राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है. उन्हें कमांडर-इन-चीफ का दर्जा भी मिलता है. राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड्स हमेशा लोगों का ध्यान आकर्षित करते रहते हैं. प्रेसिडेंट्स बॉडीगार्ड को भारतीय सेना की इकलौती ऐसी सैन्य इकाई होने का गौरव प्राप्त है, जो राष्ट्रपति के सिल्वर ट्रम्पेट और ट्रम्पेट बैनर को लेकर चलती है, क्योंकि भारतीय सेना के सुप्रीम कमांडर होने के नाते राष्ट्रपति की यह अपनी सैन्य टुकड़ी है, जो पूरी तरह से उन्हीं के लिए तैनात रहती है.

क्या होता है PBG? 
प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड को PBG कहा जाता है. इसका प्रमुख काम राष्ट्रपति की सुरक्षा करना होता है. यह भारतीय सेना की एक घुड़सवार फौज रेजिमेंट है. यह भारतीय सेना की सबसे पुरानी घुड़सवार यूनिट और कुल मिलाकर सबसे सीनियर यूनिट है. यह यूनिट राष्ट्रपति के आधिकारिक कार्यक्रमों का भी हिस्सा रहती है. यहां शामिल जवान अच्छी कद काठी वाले होते हैं. इनका चयन भी कई मानकों पर खरा उतरने के बाद ही किया जाता है. घुड़सवारी में इनका कोई सानी नहीं होता इसके यह एक काबिल टैंक मैन और पैराट्रूपर्स भी होते हैं.  

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क्या है इसका इतिहास?
राष्ट्रपति बॉडीगार्ड्स यानी पीबीजी की स्थापना 1773 में अंग्रेज गर्वनर जनरल वॉरेन हेस्टिंगन ने अपनी सुरक्षा के लिए 50 घुड़सवार सैनिकों के साथ बनारस में किया था. तब इसे 'मुगल हॉर्स' कहा जाता था. मुगल हॉर्स का गठन 1760 में सरदार मिर्जा शाहबाज़ खान और सरदार खान तार बेग ने किया था. उस समय बनारस के राजा चैत सिंह ने इस यूनिट के लिए 50 घुड़सवार सैनिक दिए थे. इस यूनिट में घुड़सवार सैनिकों की कुल संख्या 100 थी. इस यूनिट के पहले कमांडर ईस्ट इंडिय़ा कंपनी के कैप्टन स्वीनी टून थे. 1784 से 1859 तक इसे वर्नर जनरल बॉडी गार्ड (GGBG) कहा जाता था, 1859 से 1944 में उनका टाइटल बदलकर 44th डिविजनल रिकॉनेसां स्क्वाड्रन कर दिया गया. इसके दो साल बाद 1946 में ये वापस से गवर्नर जनरल बॉडी गार्ड कहलाने लगे. 1947 में जब देश आजाद हुआ तो इस टुकड़ी को दो भागों में बांट दिया गया. इनमें एक भारत में रही और दूसरी पाकिस्तान में. 1950 में इन्हें मौजूदा नाम मिला जो President's Bodyguard कहलाता है. 

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राजपूत, जाट और सिख ही बन सकते हैं हिस्सा
राष्ट्रपति के बॉडीगार्ड्स की खास बात यह है कि इस यूनिट में सिर्फ राजपूत, जाट और सिख ही शामिल किए जाते हैं. जब इस यूनिट का गठन किया गया तो मुस्लिम भी इसका हिस्सा होते थे. फिर इस यूनिट में मुसलमानों के साथ हिंदुओ (ब्राह्मण, राजपूत) को भी भर्ती किया जाने लगा. 1895  के बाद इसमें ब्राह्मणों की भर्ती बंद कर दी गई. इस यूनिट में शामिल जवानों के लिए बेसिक हाईट कम से कम 6.3 फीट होना जरूरी थी, जो अब 6 फीट है. प्रेसिडेंट्स बॉडीगार्ड रेजिमेंट के पहले कमांडडेंट थे लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह. उनके डिप्टी थे साहबजादा याकूब खान, जो बाद में  PBG के जवानों की खासियत इनके मजबूत घोड़े होते हैं. इसमें जर्मनी की खास ब्रीड के घोड़े शामिल होते हैं. खास बात ये है कि ऊंचे कद के इन घोड़ों का वजन करीब 450 से 500 किलो होता है. भारतीय सेना में केवल इन्हीं घोड़ों के बाल लंबे रखे जा सकते हैं.

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