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Hajj 2023: मुसलमानों के लिए क्यों जरुरी है हज? कौन सी रस्में की जाती हैं अदा, जानिए इससे जुड़ी सभी बातें

Hajj 2023: इस्लाम में पांच फर्जों में से एक हज होता है. शारीरिक और आर्थिक रूप हर मुसलमान पर जिंदगी में एक बार हज करना फर्ज है. आइये जानते हैं हज से जुड़ी बातें.

Hajj 2023: मुसलमानों के लिए क्यों जरुरी है हज? कौन सी रस्में की जाती हैं अदा, जानिए इससे जुड़��ी सभी बातें

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डीएनए हिंदी: हज यात्रा (Hajj) पर जाना हर मुसलमान की ख्वाहिश होती है. हज सउदी अरब के पवित्र मक्का शहर में धुल हिज्जा महीने में की जाती है. धुल हिज्जा इस्लामिक कैलेंडर वर्ष का 12वां महीना होता है. दुनिया भर से लाखों मुसलमान हर साल हज यात्रा पर जाते हैं. अब सवाल ये है कि ऐसा क्या है वहां? क्यों मुसलमान हज पर जाने के लिए बेताब रहते हैं. आखिर वहां पहुंचकर करते क्या हैं?  ऐसे सवाल बहुत मन में आते होंगे, तो आज हम आपको हज की पूरी कहानी बताते हैं.

दरअसल, इस्लाम की बुनियाद पांच अरकानों पर टिकी है. कलमा पढ़ना (तौहीद), नमाज पढ़ना, रोजा रखना, जकात अदा करना और रोजा रखना. यानी हर मुसलमान के लिए ये पांच चीजें जरूरी हैं. इनमें कलमा , नमाज और रोजा रखना तो सभी मुसलमानों के लिए अनिवार्य है. इनमें कोई छूट नहीं है. लेकिन जकात और हज में थोड़ी छूट दी गई है. जकात (दान) वही लोग दे सकते हैं जिनके पास धन-दौलत हो. इसी तरह हज उन लोगों के लिए जरूरी है जो शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हैं. उनका जिंदगी में कम से कम एक बार हज करना फर्ज है. 

कहां होती है हज?
हज सऊदी अरब के मक्का शहर में होती है. यहां काबा है जिसकी तरफ मुंह करके दुनियाभर के मुसलमान नमाज पढ़ते हैं. काबा वह इबाबदत की इमारत है जिसे अल्लाह का घर कहा जाता है. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, अल्लाह ने पैगंबर इब्राहिम को एक तीर्थस्थान बनाकर समप्रित करने के लिए कहा था. अल्लाह के हुक्म पर इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल ने मिलकर मक्का में पत्थर की एक छोटी-सी घनाकार इमारत बनाई थी. इसी का नाम काबा रखा गया. बाद में यहां कुछ लोगों ने अलग-अलग ईश्वरों की पूजा शुरू कर दी थी. 

मुसलमानों का मानना है कि इसके बाद अल्लाह ने इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद (570-632 ई.) को हुक्म दिया कि वह काबा को पहले जैसी स्थिति में लेकर आएं और वहां केवल अल्लाह की इबादत करें. पैगंबर मोहम्मद ने 628 ई. में अपने 1400 अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना तक का सफर किया. यह इस्लाम की पहली तीर्थयात्रा बनी. इस दौरान पैगंबर मोहम्मद ने पैगंबर इब्राहिम की परंपराओं को फिर से स्थापित किया. इसी को हज यात्रा कहा जाता है.

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कब होती है हज?
इस्लाम की मान्यताओं के अनुसार, हज इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने जिल हिज्जाह की 8वीं तारीख से 12वीं तारीख तक होती है. इस्लामिक कैलेंडर की 12 तारीख को हज पूरी हो जाती है. ये दिन ईद-उल-अज़हा यानी बकरीद का होता है.  भारत की बात करें तो ईद उल-फ़ित्र के करीब एक महीने बाद हज यात्रा शुरू हो जाती है. हज के अलावा उमराह भी होता है. दोनों में बस फर्क इतना है कि हज साल में एक बार बकरीद के समय 40 दिन की होती है और उमराह के लिए साल में कभी भी सऊदी अरब जा सकते हैं. यह 15-20 दिन का होता है.

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क्या करते हैं हज यात्री 
हज यात्री पहले सऊदी के जेद्दा शहर जाते हैं. इसके बाद वह मक्का जाते हैं. यहीं से हज का अधिकारिक प्रोसेस शुरू होता है. इस जगह को मीकात कहते हैं. हज यात्रा पर जाने वाले सभी लोग सफेद रंग का एहराम पहनते हैं. यह सफेद चादर की तरह होता है. यह सिला नहीं होता. वहीं, महिलाओं की बात करें तो महिलाएं एहराम नहीं पहनती. वह बुर्का पहनती हैं. 

सफेद एहराम पहनते है हाजी

उमरा
हज पर जाने वाले लोग सबसे पहले उमरा करते हैं. यह एक धार्मिक प्रक्रिया है. हज हर साल अरबी महीना जिल-हिज की आठ तारीख से शुरू होता है. इसी दिन हाजी मक्का से तकरीबन 12 किलोमीटर दूर मीना शहर जाते हैं. इस्लामिक कैलेंडर की 8 तारीख की रात को हाजी मीना में गुजारते हैं. इसके बाद 9 तारीख को अराफात में पहुंचते हैं. यहां हाजी अल्लाह को याद करते हैं. दुआएं मांगते हैं. इसी दिन हाजी मुजदलफा शहर जाते हैं. वह यहां रात गुजारते हैं. 10 तारीख की सुबह फिर हाजी मीना शहर लौटते हैं.

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