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Maratha Reservation: मराठा आरक्षण इतना अहम क्यों है? इस्तीफा देने लगे विधायक और सांसद

Maratha Reservation Protest Update: महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन ने इस बार ऐसा दबाव बनाया है कि विधायक और सांसद तक इस्तीफे की पेशकश कर रहे हैं.

Maratha Reservation: मराठा आरक्षण इतना अहम क्यों है? इस्तीफा देने लगे विधायक और सांसद

Maratha Reservation

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डीएनए हिंदी: महाराष्ट्र इन दिनों मराठा आरक्षण के नाम पर सुलग रहा है. मनोज जरांगे पाटिल की अगुवाई में मराठाओं का आरक्षण देने की मांग की जा रही है. एकनाथ शिंदे की अगुवाई वाली सरकार कह रही है कि वह कमेटी के सुझावों के आधार पर मराठा आरक्षण देने को तैयार लेकिन आंदोलन खत्म किया जाए. दूसरी तरफ, यह आंदोलन अब उग्र होता जा रहा है और कुछ नेताओं के घरों पर आगजनी भी की गई है. आंदोलन का ताप इस बात से भी महसूस किया जा सकता है कि शिवसेना का सांसद हेमंत पाटिल और हेमंत गोडसे ने इस्तीफा दे दिया है. एनसीपी के विधायक अतुल वल्लभ वेंके ने भी इस्तीफे की पेशकश की है. चर्चा है कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के कई नेता भी इस्तीफा देने की तैयारी में हैं.

इस आंदोलन की अगुवाई कर रहे मनोज जरांगे पाटिल एक बार फिर से अनशन पर बैठ गए हैं. मनोज जरांगे ने मांग की है कि महाराष्ट्र की सरकार रिटायर्ड जस्टिस संदीप शिंदे कमेटी की रिपोर्ट स्वीकार करे और पैनल का काम रोककर मराठाओं को आरक्षण दे. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि आधा-अधूरा आरक्षण नहीं चाहिए और इस बार हम किसी भी कीमत पर वापस नहीं जाने वाले. उन्होंने ऐलान किया है कि 1 नवंबर से वह आंदोलन का सबसे कठिन हिस्सा शुरू कर देंगे और न तो दवाएं लेंगे और न ही मेडिकल चेकअप कराएंगे.

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क्या है मौजूदा स्थिति?
सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर रोक लगा दी है और अब यह मामला पांच जजों की बेंच में लंबित है. एकनाथ शिंदे की शिवसेना और बीजेपी गठबंधन वाली सरकार बार-बार कह रही है कि वह आरक्षण देने को तैयार है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आगे वह कुछ नहीं कर सकती है. यही वजह है कि शिंदे सरकार इस मुद्दे पर घिर गई है. दूसरी तरफ, महा विकास अघाड़ी के नेताओं ने मराठा आरक्षण की मांग का समर्थन किया है.

पहले भी कई बार मराठा आरक्षण की मांग उठ चुकी है. 2018 में देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने एक कानून बनाकर मराठाओं को 16 प्रतिशत का आरक्षण दे दिया था. बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2019 में इसमें कटौती कर दी थी. मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने इस पर रोक लगा दी और कहा कि यह 50 प्रतिशत सीमा का उल्लंघन करता है. सुप्रीम कोर्ट ने साल 1992 में आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत तक सीमित कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाते हुए कहा कि इस सीमा को तोड़ा नहीं जा सकता है.

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इतने अहम क्यों हैं मराठा?
महाराष्ट्र में मराठा जनसंख्या लगभग एक तिहाई है. प्रदेश की ज्यादातर लोकसभा और विधानसभा सीटों पर ये निर्णायक भूमिका में हैं. 1960 में जब महाराष्ट्र बना तब से बने 20 मुख्यमंत्रियों में 12 मराठा ही रहे हैं. मराठा समुदाय में महाराष्ट्र के किसान, जमींदार और कई अन्य वर्गों के लोग शामिल हैं. ऐतिहासिक रूप से योद्धा माने जाने वाले मराठा कई दशकों से आरक्षण की मांग कर रहे हैं.

 आंदोलन कर रहे लोगों का कहना है कि शिक्षा और नौकरियों में मराठाओं को आरक्षण देना जरूरी है क्योंकि इस समाज का एक छोटा तबका ही सामाजिक तौर पर समृद्ध है लेकिन बाकी के लोग गरीबी में जी रहे हैं. हालांकि, आरक्षण पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मराठा समुदाय पिछड़ा हुआ नहीं है. वहीं, 2018 में आई महाराष्ट्र के पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि 37.28 प्रतिशत मराठा ऐसे हैं जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन बिता रहे हैं.

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कब-कब हुई मराठा आरक्षण की मांग?
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग नई नहीं बल्कि 4 दशक पुरानी है. साल 1980 के दशक में पहली बार मराठा आरक्षण की मांग उठी और आंदोलन शुरू हुआ. उस वक्त अन्ना साहब पाटिल ने इसकी अगुवाई की थी. इस बार इस आंदोलन की अगुवाई मनोज जरांगे पाटिल कर रहे हैं जो आमरण अनशन पर बैठ गए हैं और बिगड़ती तबीयत के बावजूद वह अनशन खत्म करने के तैयार नहीं हैं.

मनोज जरांगे और मराठा आरक्षण के समर्थन में लाखों लोग भी सड़कों पर उतर रहे हैं और कुछ इलाकों में आगजनी की खबरें भी आ रही हैं. विपक्षी पार्टियों के साथ-साथ सत्ता पक्ष भी मराठाओं को आरक्षण देने की बात कह रहा है लेकिन सुप्रीम कोर्ट की रोक के चलते बात बन नहीं पा रही है.

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