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Digital Detox: डिजिटल डिटॉक्स क्या है, क्यों युवाओं को है इसकी जरूरत?

Digital Detox: हम सूचनाओं के संसार में हैं. एक गैजेट और लाखों इन्फॉर्मेशन. जरूरत से ज्यादा जानकारी भी सेहत के लिए नुकसानदेह है.

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Digital Detox: डिजिटल डिटॉक्स क्या है, क्यों युवाओं को है इसकी जरूरत?

डिजिटल डिटॉक्स.

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डीएनए हिंदी: किसी भी इंटरनेट से कनेक्टेड डिजिटल डिवाइस (digital devices) पर अगर इंसान चाहे तो पलभर में सूचनाओं के समंदर तक पहुंच सकता है. फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और तमाम ऐसे ऐप्स हैं जिनका इस्तेमाल करोड़ों लोग करते हैं. हम चाहें या न चाहें हजारों जानकारियां एक दिन में हम तक पहुंचती हैं. एक पुरानी कहावत है कि ज़रूरत से ज़्यादा हर चीज़ ज़हर होती है. डिजिटल वर्ल्ड की सूचनाएं भी कुछ ऐसी ही हैं. धीरे-धीरे यूथ कुछ देखने, जानने और सुनने के एडिक्शन में ऐसे फंसता है कि वह डिप्रेशन, हेडेक और दूसरी कई गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाता है. सूचनाओं का भी एडिक्ट होना बुरा है. ऐसे लोगों के लिए डिजिटल डिटॉक्स (Digital Detox) पर जाना, बेहद मददगार साबित हो सकता है.

दिनभर स्मार्टफोन, टैब या लैपटॉप पर नज़रें बनाए रखने की आदत आपकी मानसिक सेहत के लिए ख़तरा बन सकती है. अब लोग किसी पब्लिक गेदरिंग के वक्त एक-दूसरे से बात कम स्मार्टफोन का इस्तेमाल ज़्यादा करते है. 

वर्चुअल वर्ल्ड में ज़्यादा वक्त बिताना आपकी लाइफ़ स्टाइल के लिए भी ठीक नहीं है. इसकी वजह से आपकी एकाग्रता भी बाधित हो सकती है. ऐसे में सोशल मीडिया ऐप्स से ब्रेक लेना, स्क्रीन का मोह छोड़ना आपके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा हो सकता है.

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स्मार्टफोन, टीवी स्क्रीन और वर्चुअल वर्ल्ड से पूरी तरह दूरी बनाने को ही डिजिटल डिटॉक्स कहते हैं. इसमें व्यक्ति एक निश्चित वक्त के लिए पूरी तरह से ऑनलाइन दुनिया को अलविदा कहता है और किसी भी डिवाइस पर अपना वक्त नहीं खर्च करता है.

क्यों पड़ती है डिजिटल डिटॉक्स की ज़रूरत?

दिमाग में ज़रूरत से ज़्यादा गैरजरूरी सूचनाएं आपकी मानसिक सेहत पर बुरा असर डालती हैं. कभी अपनी इस आदत पर गौर कीजिए कि नींद टूटने पर अपके हाथ आपका फोन न लगे तो आप बेचैन होने लगते हैं. ऐसा अब हर उम्र के लोगों के साथ हो रहा है. हमेशा ऑनलाइन गतिविधियों में शामिल रहना आपकी सेहत के लिए बेहद बुरा हो सकता है.

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इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले लोग कई बार ख़ुद में खोए-खोए से रहने लगते हैं. कुछ लोगों में देखा गया है कि वे खुद से बातें करने लगते हैं तो कभी खुद ही हंसते-रोते हैं. कई बार कुछ कंटेंट देखकर ज्यादा हताश हो जाते हैं तो कभी अति उत्साहित. कई बार कुछ वक्त के लिए काल्पनिक जीवन भी जीने लगते हैं.

सा भी वक्त आता है जब हम डिवाइस नहीं, डिवाइस हमें चलाता है. मसलन फोन से जरा भी दूर न रह पाना, डिजिटल डिवाइस के लिए बेचैन हो जाना या फिर समाज से आइसोलेट हो जाना.

डिजिटल डिटॉक्स.

ऐसे लोगों में स्लीपिंग डिसऑर्डर भी होने लगता है. कुछ लोग डिप्रेशन में चले जाते हैं. कुछ लोगों में व्यग्रता (Anxiety) के लक्षण भी देखे जाते हैं. लाइफ़ स्टाइल प्रभावित होने की वजह से वजन भी तेजी से बढ़ जाता है. आपकी दिनचर्चा बुरी तरह प्रभावित हो जाती है और ज़िन्दगी पर भी बुरा असर पड़ने लगता है.

हेल्थ एक्सपर्ट्स कई स्टडीज में दावा कर चुके हैं कि स्मार्टफोन का लगातार इस्तेमाल आपके मूड स्विंग की वजह बन सकता है. जैसे अगर कोई आपको टोक दे या ज्यादा फोन इस्तेमाल करने की वजह से टोक दे आपक उस पर भड़कने लगते हैं. जैसे लोग ड्रग एडिक्ट होते हैं, वैसे ही स्मार्टफोन का भी एडिक्शन होता है.  

क्या है डिजिटल डिटॉक्स के लाभ?

सभी डिजिटल डिवाइस का इस्तेमाल कुछ वक्त के लिए छोड़ दें. अगर ऐसा करना मुमकिन नहीं है तो इनका कम इस्तेमाल करें. लगातार लंबी वक्त डिवाइस पर बिताने से बचें. वर्चुअल वर्ल्ड से ब्रेक होना आपको ज्यादा सामाजिक बना सकता है. ऐसे दोस्तों से मिलें जिन्हें फोन से ज्यादा आपकी चिंता हो. वे फोन से नहीं, आप से बात करें. 

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डिजिटल डिटॉक्स आपको असली दुनिया से बेहतर तरीके से रू-ब-रू करा सकता है. आप डिजिटल डिटॉक्स के दौरान खुद को ज्यादा वक्त दे सकते हैं. अपने बारे में बेहतर सोच सकते हैं. आपनी जिम्मेदारियां पूरी कर सकते हैं. सोशल मीडिया भी आपके मन में कुंठा भर सकती है. कई बार आप अपनी तुलना दूसरों से करने लग सकते हैं जो तनाव की वजह बन सकती है. ऐसे में अगर आप थोड़ा वक्त खुद को देंगे तो ज्यादा बेहतर अपनी क्षमताओं का आंकलन कर सकेंगे.

हेल्थ के लिए क्यों बेहतर है डिजिटल डिटॉक्स?

कई घंटों तक स्मार्टफोन, लैपटॉप या टैब निहारने की वजह से आपकी आंखों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इसकी वजह से आंखों में खिंचाव, सूखापन, धुंधलापन और माइग्रेन भी हो सकता है. फोन चलाते वक्त लगातार नजर झुकाने की वजह से लोअर बैक और गर्दन में समस्या पैदा हो सकती है. अगर आप इसका इस्तेमाल छोड़ते हैं तो तत्काल लाभ मिल सकता है.

डिजिटल डिटॉक्स.

असल में स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से आपकी बॉडी क्लॉक भी प्रभावित होती है. आपका दिमाग मेलाटोनिन नाम का एक रसायन छोड़ता है जो नींद के लिए जिम्मेदार होता है. सोने से ठीक पहले फोन या किसी डिजिटल डिवाइस के इस्तेमाल की वजह से दिमाग सतर्क और सक्रिय रहता है और मेलाटोनिन रिलीज होने में देरी होती है. लंबे समय तक अनिद्रा आपके मूड और स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है. डिजिटल डिटॉक्स की वजह से बॉडी क्लॉक के दुरुस्त होने की संभावना बढ़ जाती है.

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कैसे करें शुरुआत?

अचानक स्मार्टफोन का इस्तेमाल छोड़ देना बेहद मुश्किल है. जॉब और दूसरी वजहों से हमें कई ऐप्स का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिन्हें हर दिन देखने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में एक वक्त तय करें और उस टाइम फोन का इस्तेमाल न करें. अपने आपको वक्त दें और स्मार्टफोन से दूर रहने की कोशिश करें. पूरी तरह से न छोड़ें लेकिन अपनी लाइफ़स्टाइल के हिसाब से काम करें. ब्रेक के दौरान पूरी तरह से फोन छोड़ने की कोशिश कर सकते हैं.

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बार-बार फोन चेक करने की आदत छोड़ें

अगर आपकी आदत बार-बार फोन देखने की है तो इसे रोकें. फोन छोड़ने के लिए पैटर्न को फॉलो करें. खुद की गतिविधियों पर नजर रखें.फोन को खुद से दूर रख दें और घर में या दोस्तों के साथ वक्त बिताएं.

नोटिफिकेशन करें ऑफ, ज़िन्दगी को करें ऑन

फोन के सारे नोटिफिकेशन ऑफ रखें. जिन ऐप्स की आपको जरूरत हो वहां खुद क्लिक करके सूचनाएं ले लें. कई बार बेवजह के नोटिफिकेशन आपकी एकाग्रता तोड़ते हैं. अगर आपका स्मार्टफोन एडिक्शन ज्यादा बढ़ जाए तो तत्काल किसी मनोवैज्ञानिक से संपर्क करें.सही काउंसलिंग से आपकी आदत छूट सकती है.

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