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हरिवंश को लेकर JDU-BJP में रार! क्या राज्यसभा के उपसभापति बने रहेंगे?

Rajya Sabha Deputy Speaker Harivansh: हरिवंश जल्द ही नीतीश कुमार से मुलाकात करने वाले हैं. बताया जा रहा है कि हरिवंश एक हफ्ते बाद नीतीश से मिलेंगे और उनसे अपना विरोध दर्ज कराएंगे.

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हरिवंश को लेकर JDU-BJP में रार! क्या राज्यसभा के उपसभापति बने रहेंगे?

राज्यसभा के उपसभापति हैं हरिवंश

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डीएनए हिंदी: बिहार में नीतीश कुमार की JDU के बीजेपी से गठबंधन तोड़ लेने का बाद देश में सियासत फिर गरमा गई है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने महागठबंधन का दामन थाम लिया है. इस पूरी उठा-पटक ने राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश (Harivansh) को असहज स्थिति में डाल दिया है. अब जब NDA से नीतीश कुमार अलग हो गए हैं तो जेडीयू सांसद हरिवंश के राज्यसभा के उपसभापति बने रहने को लेकर भी तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. चर्चा है कि जेडीयू के एनडीए छोड़ देने के बाद क्या हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति पद से इस्तीफा देंगे, या फिर कायम रहेंगे?

हालांकि, जेडीयू या हरिवंश की तरफ से इस मामले में अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है कि हरिवंश जल्द ही नीतीश कुमार से मुलाकात करने वाले हैं. बताया जा रहा है कि हरिवंश एक हफ्ते बाद नीतीश से मिलेंगे और उनसे अपना विरोध दर्ज कराएंगे. इस बीच JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने दावा किया है कि जिन लोगों ने नीतीश कुमार को एनडीए से अलग होने की सलाह दी थी उनमें हरिवंश भी शामिल थे. ललन सिंह ने कहा कि हरिवंश से उनकी फोन पर बात हुई है और उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ने उन्हें राजनीतिक जीवन में आगे बढ़ाया है और वो नीतीश के साथ खड़े हैं.

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क्या है BJP के पास विकल्प?
अब सवाल ये उठता है कि अगर हरिवंश खुद से इस्तीफा नहीं नहीं दें तो बीजेपी के पास उन्हें हटाने का कोई विकल्प है. सविंधान से जुड़े जानकारों की मानें तो बीजेपी प्रस्ताव लाकर उन्हें हटा सकती है. संवैधानिक स्थिति यह है कि जब तक राज्यसभा उपसभापति को कोई प्रस्ताव लाकर नहीं हटाया जाता तब तक वो इस पद बने रहेंगे. बीजेपी को उस प्रस्ताव को राज्यसभा में बहुमत से पास कराना होगा लेकिन दिक्कत ये है कि मोदी सरकार के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है. तो कानूनी तौर पर देखा जाए तो हरिवंश अपने पद पर बने रह सकते हैं.

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हरिवंश को हटाना JDU के लिए भी मुश्किल
वहीं, अगर JDU हरिवंश को इस्तीफा देने के लिए कहती है और अगर वो इस्तीफा देने से मना कर देते हैं तो पार्टी उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकती है. जैसा की पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के मामले में हुआ था. कांग्रेस ने जब सोमनाथ चटर्जी से स्पीकर पद से इस्तीफा देने के लिए कहा था तो उन्होंने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया था. इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था. वैसे ही अगर हरिवंश पार्टी की बात नहीं मानते तो JDU उन्हें निष्कासित कर सकती है. लेकिन पार्टी से निकाले जाने के बाद उनकी राज्यसभा सदस्यता खत्म नहीं होगी. वह राज्यसभा के सदस्य बने रहेंगे. सदन ने उन्हें उपसभापति चुना है. जब तक सदन में बहुमत से उन्हें पद से नहीं हटाया जा सकता, तब तक वे उपसभापति बने रहेंगे.

सोमनाथ चटर्जी ने इस्तीफा देने से क्यों किया था मना?
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) के नेता रहे सोमनाथ चटर्जी यूपीए-1 के दौरान लोकसभा स्पीकर थ. लेकिन 2008 में अमेरिका के साथ न्यूक्लियर डील मुद्दे पर वाम दलों ने मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. सीपीएम चाहती थी कि सोमनाथ चटर्जी भी स्पीकर पद से इस्तीफ दे दें लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया. उनका तर्क दिया था कि स्पीकर किसी पार्टी का नहीं होता है. लेकिन CPM को उनका यह स्टैंड पंसद नहीं आया और उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया. इसके बाद सोमनाथ चटर्जी का राजनीतिक सफर भी लंबा नहीं चला और 2009 में राजनीति से संन्यास ले लिया. साल 2018 में उनका निधन हो गया था.

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