डीएनए स्पेशल
अंग्रेज जब 75 साल पहले भारतीय जनता के अटल विरोध से थककर वापस लौटे थे, तो आजादी का परवाना हाथ में थामते समय हमारे नेताओं के सामने बड़ी चुनौतियां थीं. इन चुनौतियों से लगातार उबरते हुए हम कैसे आज विश्व के शीर्ष देशों में शुमार हो गए, इस सफर के बारे में अगले पांच दिन हम आपको 10-10 साल की सीरीज के तहत बताएंगे. आज इस सीरीज की पहली कड़ी में जानिए 1948 से 1958 तक कैसे तरक्की की पायदान की तरफ बढ़ा देश...
डीएनए हिंदी: आजादी के समय भले ही हर जनमानस के अंदर एक नया जोश था, लेकिन हकीकत में कभी सोने की चिड़िया रहा भारत 200 साल तक ब्रिटिश लालच का शिकार होकर आर्थिक रूप से खोखला हो चुका था. ऐसे में गरीब जनता के उस विश्वास को ऊंचा रखने की चुनौती थी, जिसमें आजाद भारत में उनके सभी दुखदर्द होने के सपने देखे गए थे. साथ ही देश को वैश्विक स्तर पर उठ रहे उन सवालों का भी जवाब देना था, जिनमें कहा जा रहा था कि अंग्रेजी शासन से आजाद होकर भारत कभी एकजुट नहीं रह पाएगा. इन सवालों के बीच पहले 10 साल निम्न तरीके से बीते-
1948- आजादी की उमंग के बीच बापू का जाना और कश्मीर में पाकिस्तान की गद्दारी
साल 1948… देश की आजादी की महक अभी हर जगह फैली ही हुई थी…लेकिन उसी साल दिल्ली के बिरला हाउस में 30 जनवरी 1948 को एक ऐसी घटना हुई जिसने पूरे देश में मातम फैला दिया. भीड़ में तीन गोलियां चलीं और सबकुछ खत्म हो गया. नाथूराम गोडसे ने गांधी जी को तीन गोलियां मारी. मृत्यु से पहले महात्मा गांधी के मुंह से निकले आखिरी अल्फाज थे ‘हे राम’... इसके साथ ही देश ने अपना 'बापू' खो दिया.
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दूसरी बड़ी घटना इस साल की जम्मू-कश्मीर से जुड़ी थी. ये वहीं साल था, जब पाकिस्तान ने भारत की पीठ में छुरा भोंकते हुए धोखे से हमला कर आधा कश्मीर कब्जा लिया. इसके बाद पहली बार कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र तक पहुंचा. सवा साल के युद्ध के बाद 31 दिसंबर 1948 को सीजफायर लागू कर दिया गया. उस सीजफायर के बाद जम्मू-कश्मीर का दो तिहाई हिस्सा भारत के पास रहा, वहीं एक तिहाई हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा हुआ.
इसके साथ ही सेना की कार्रवाई के बाद 1948 में सितंबर के महीने में हैदराबाद का विलय भारत में हुआ और 1948 में भारत को ओलंपिक में हॉकी में आजादी के बाद पहला गोल्ड मेडल भी मिला था. मेन्स टीम ने ब्रिटेन को मात देते हुए गोल्ड अपने नाम किया था.
1949- करीब 3 साल की मेहनत से देश का संविधान तैयार हुआ
ये ही वो ऐतिहासिक साल है, जब देश के संविधान को स्वीकार किया गया था.. जी हां हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है. भारत के संविधान के आधार पर ही देश की संसद कानून बनाती है, जिससे पूरे देश की व्यवस्था चलती है. तो आपको बता दें कि ये संविधान दिवस साल 1949 से ही जुड़ा है. क्योंकि 26 नवंबर 1949 को ही संविधान तैयार हो गया था.
देश के संविधान को बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा था, वो बात अलग है कि उसे लागू होने में दो महीने और लग गए, और 16 जनवरी 1950 को संविधान लागू किया गया, जिसे गणतंत्र दिवस के रूप में मनाते हैं.
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इसके अलावा बैंकिंग सेक्टर में भी 1949 को सबसे बड़ी कामयाबी भारत के नाम रही, क्योंकि 1 जनवरी 1949 को Reserve Bank of India का राष्ट्रीयकरण हुआ था. इससे पहले RBI ब्रिटिश राज के अंदर एक प्राइवेट पज़ेशन था.
1950- गणतंत्र बनने के साथ मिली देश को असली स्वतंत्रता
भारत की दशा और दिशा तय करने में साल 1950 की बेहद अहम भूमिका है क्योंकि सही मायने में माना जाए तो साल 1950 ही भारत के जन्म का साल है. साल 1950 भारत के लोकतंत्र में मील का पत्थर साबित होने वाला था. लिहाजा भारत के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद की अगुवाई में और संविधान के शिल्पीकार डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने भारत का संविधान समिति के पटल पर रखा, जिसे स्वीकार कर लिया गया. 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा ने भारत के संविधान को अंगीकार किया और फिर 26 जनवरी 1950 में भारत के संविधान को लागू किया गया. इसी के साथ हम गणतंत्र बन गए.
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यहां एक बात जानना जरूरी है कि देश को आजादी तो साल 1947 में ही मिल गई थी, लेकिन 1950 में पहली बार भारत एक स्वतंत्र देश बना....दूसरे शब्दों में कहा जाए तो 26 जनवरी 1950 को ही असली भारत का जन्म हुआ. तत्कालीन गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजागोपालचारी ने इस बात का ऐलान किया कि अब दुनिया में एक और स्वतंत्र देश बन चुका है, जिसे रिपब्लिक ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाएगा
25 जनवरी 1950 को ही भारत के चुनाव आयोग की स्थापना की गई. साथ ही जम्मू और कश्मीर को भी एक विशेष राज्य का दर्जा दिया गया और इसी के साथ जम्मू और कश्मीर भारत का एक अटूट अंग बन गया, हालांकि उसे भारतीय संविधान से अलग और भी कई अधिकार दिए गए थे.
1951- पंचवर्षीय योजनाओं से तरक्की का खींचा गया खाका
देश को आजाद हुए तीन साल का वक्त बीत चुका था, लेकिन तेजी से तरक्की के रास्ते पर चलने के लिए कोई योजना तैयार करनी थी. साल 1928 में स्टालिन ने रूस में पंच वर्षीय योजना की शुरुआत की थी. जवाहरलाल नेहरू शुरुआत से ही रूस से प्रभावित थे, लिहाजा उन्होंने रूस की तर्ज पर भारत में भी पंचवर्षीय योजना की शुरुआत की. खुद जवाहरलाल नेहरू पंचवर्षीय योजना आयोग के पहले अध्यक्ष बने, जबकि उपाध्यक्ष के तौर पर गुलजारी नंदा ने पद भार संभाला.
पहली पंच वर्षीय योजना के केन्द्र में खेती को रखा गया ताकि उपज बढ़ाई जा सके, क्योंकि उस वक्त भारत कृषि उत्पादन में काफी पिछड़ा हुआ था. स्वास्थ और शिक्षा को भी इस प्लान में तरजीह दी गई. पहली पंच वर्षीय योजना में 2069 करोड़ रुपये का बजट बनाया गया, जिसे अलग-अलग विभागों में बांटा गया था.
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साल 1951 में केवल पहली पंचवर्षीय योजना ही लागू नहीं हुई बल्कि रेलवे का भी राष्ट्रीयकरण किया गया. रेलवे को तीन जोन में बांटा गया और बस यहीं से भारतीय रेलवे की नींव पड़ी, जो पूरी दुनिया में सबसे लंबा रेलवे नेटवर्क है. इस वक्त भारत में 7216 छोटे-बड़े स्टेशन हैं, जबकि 1,19,630 किलोमीटर लंबाई की पटरियां पूरे देश में बिछाई जा चुकी हैं
1952- देश में पहली बार निर्वाचित लोकसभा का गठन किया गया
भारत के पहले लोकसभा चुनाव फरवरी 1952 में खत्म हुए. सर्वापल्ली राधाकृष्णन 216 सदस्यों के साथ राज्यसभा के पहले अध्यक्ष बने. जवाहरलाल नेहरू की सरकार बनना पूरी तरह से तय था. हालांकि इस चुनाव को लेकर चुनाव आयोग के सामने बहुत चुनौतियां थीं. सबसे बड़ी चुनौती थी लोगों के बीच फैली असाक्षरता, उस वक्त देश की आबादी करीब 50 करोड़ थी जिसमें केवल 15 फीसदी लोग ही एक भाषा में लिखना पढ़ना जानते थे. ऐसे में चुनाव आयोग के सामने चुनौती थी कि लोग अपनी पसंदीदा पार्टी की पहचान कैसे करें.
तब तत्कालीन चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन ने तय किया कि वो बैलेट पेपर पर पार्टी का सिंबल भी प्रिंट करेंगे ताकि लोग उसकी पहचान कर सकें और अपने उम्मीदवार को वोट दे सकें. उस वक्त जवाहर लाल नेहरू को हाथ की जगह हल वाली बैलों की जोड़ी का सिंबल मिला था. चुनाव के परिणाम आए और नेहरू ये चुनाव बड़ी आसानी से जीत गए,आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि ये चुनाव 68 चरणों में कराया गया था.
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15 अप्रैल 1952 को नेहरू के हाथ में सत्ता आ गई और 17 अप्रैल 1952 को पहली बार लोकसभा के सदस्यों की सदस्यता की शुरुआत हुई . मई के महीने में पहली बार लोकसभा और राज्यसभा सत्र की शुरुआत हुई और जीवी मावलंकर पहले लोकसभा अध्यक्ष यानी स्पीकर बने.
1953- भाषाई बंटवारे की रखी गई नींव, बना पुनर्गठन आयोग
आजादी मिले हुए अभी दस साल भी नहीं हुए थे कि भारत में अलग अलग किस्म की मांग होने लगी थी. इन्हीं में से एक थी अलग तेलुगू भाषी आंध्र प्रदेश राज्य की मांग.
हालांकि ये मांग पहले से चल रही थी और इस मांग के केंद्र में थे गांधीवादी आंदोलनकारी पोट्टी श्रीरामलू.. हालांकि आजादी के बाद महात्मा गांधी ने इस मांग को पूरा करने के लिए देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को कहा भी था. लेकिन तब तक नेहरू की राय बदल चुकी थी. उनका मानना था कि देश धर्म के नाम पर बंट चुका है, ऐसे में भाषा के आधार पर राज्य बनाने से देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंच सकता है.
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अक्टूबर 1952 में पोट्टी श्रीरामलू ने आमरण अनशन शुरू किया और 56वें दिन उनका निधन हो गया. वह तेलुगू भाषियों के लिए मद्रास प्रेसीडेंसी से अलग राज्य की मांग कर रहे थे. श्रीरामलू की मौत के बाद आंदोलनों ने हिंसक रूप ले लिया और 1953 में तत्कालीन सरकार को मजबूरन तेलुगू भाषियों के लिए अलग राज्य आंध्रप्रदेश की घोषणा करनी पड़ी.
आंध्रप्रदेश का गठन होने के बाद आंदोलन पूरे देश में फैल गया. अन्य क्षेत्रों में भी भाषाई आधार पर राज्यों की मांग जोर पकड़ने लगी. इसे देखते हुए 19 दिसंबर 1953 को पीएम जवाहर लाल नेहरू ने राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया,
1954 - हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारों से चीन ने शुरू किया भ्रमित करना
ये वहीं साल था जब हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे खूब जोरो-शोरों से लगे थे. भले आज हमारे देश के चीन के साथ संबंध उतने अच्छे न हो, लेकिन आज से 68 साल पहले 29 अप्रैल 1954 को भारत और चीन के बीच पंचशील समझौते की नींव रखी गई थी. ये समझौता चीन के क्षेत्र तिब्बत और भारत के बीच व्यापार और आपसी संबंधों को लेकर हुआ था. इसमें पांच सिद्धांत थे, जो अगले पांच साल तक भारत की विदेश नीति की रीढ़ रहे.
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ये समझौता तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के पहले प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई के बीच हुआ था. इसके साथ ही इसी साल देश का सबसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न पुरस्कार जो राष्ट्रीय सेवा के लिए दिया जाता है, उसे पहली बार तीन लोगों को दिया गया था. उनमें सीं. राजागोपालचारी, सर्वपल्ली राधाकृष्णन और सी.वी रमन के नाम शामिल हैं.
1955- देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का जन्म
साल 1955, देश धीरे धीरे हर सेक्टर में अपनी पकड़ मज़बूत कर रहा था. बैंकिंग सेक्टर के लिए 1955 भी एक महत्वपूर्ण साल था. 1 जुलाई 1955 को इंपीरियल बैंक का नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया रख दिया गया था. 1921 में establish हुआ था इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया. भारत के इस सबसे बड़े कमर्शियल बैंक को 1955 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में तब्दील कर दिया गया था और 1955 से ही 1 जुलाई को हर साल SBI के स्थापना दिवस के तौर पर मनाया जाता है.
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वहीं, देश की दूसरी बड़ी घटना जवाहर लाल नेहरू का सोवियत दौरा था. वो 7 जून 1955 को सोवियत संघ पहुंचे थे. इस दौरे पर रूस ने भारत में भारी उद्योग लगाने में मदद करने को लेकर सहमति जताई. इस दौरे के बाद दुनिया में भारत की एक अलग छवि बनी. इस दौरे पर एक खास बात यह थी कि जब नेहरू जिस रास्ते से गुजर रहे थे, उस दौरान उन पर कुछ लोगों ने गुलाब भी बरसाए थे. सोवियत संघ और यूरोप के इस दौरे का लक्ष्य तेजी से बढ़ते कोल्ड वॉर के दौर में शांति को बढ़ावा देना था. नेहरू ने भारत को ना सिर्फ एक महत्वपूर्ण देश बनाया बल्कि उसको दुनिया में अभूतपूर्व समर्थन भी दिलवाया.
1956- देश को कई नए राज्य मिले
करीब 33 लाख square किलोमीटर में फैला दुनिया का 7वां सबसे बड़ा देश भारत. वक्त के साथ बेहतर व्यवस्था के लिए देश में राज्यों का बनना शुरू हो चुका था और 1956 वो साल था जब एक साथ कई राज्यों की स्थापना हुई. 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिल नाडु, पंजाब और हरियाणा राज्य बने, साथ ही दिल्ली, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार, पुद्दुचेरी और चंडीगढ़ को यूनियन टेरिटरी डिकलेर किया गया.
1957- दूसरी लोकसभा का गठन, केरल में वामपंथ का उभार
साल 1957 आ चुका था, लेकिन फिर भी भारत के कई हिस्से अभी भी भारत के कब्जे में नहीं थे. गरीबी से देश जूझ रहा था और इसी बीच दूसरे लोकसभा चुनाव कराए गए. इन चुनावों में भी जीत कांग्रेस पार्टी को मिली और एक बार फिर जवाहर लाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने. इस बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नेहरू ने अंग्रेजों के जमाने में सिक्कों में चलने वाला आना सिस्टम बंद कर दिया और देश में शुरुआत हुई नए सिक्कों की. अप्रैल 1957 में केरल में चुनाव कराए गए, जिसमें वामपंथ यानी लेफ्ट पार्टियों ने बाजी मारी और कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से ईएमएस नंबूदरीपाद केरल के मुख्यमंत्री चुने गए.
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जैसा बताया कि 1957 तक भारत के कई राज्य उसके कंट्रोल में नहीं थे. पुर्तगालियों ने अब तक गोवा पर कब्जा जमा रखा था और अक्सर भारतीय फौज से पुर्तगालियों की झड़प हो जाया करती थी. अगस्त में एक ऐसी ही झड़प दादर और नागर हवेली के करीब तारक पारदी में हुई, जब पुर्तगाली जवानों ने भारत की सैनिक पोस्ट पर फायर किया. हालांकि इस झड़प में दोनों ओर कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन एक बात भारत सरकार को समझ आ गई थी कि जल्द से जल्द गोवा को पुर्तगालियों के कब्जे से आजाद कराना पड़ेगा.
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भारत अपनी फौज का आधुनिकीकरण कर रहा था और इसी साल भारत को अपना पहला जैट बॉम्बर विमान कैनबरा मिला, जो दुश्मन के दांत खट्टे करने के लिए एक अहम हथियार माना जा रहा था
1958- थोड़ा अच्छा और थोड़ा बुरा रहा ये साल
साल 1958 भारत के लिए अच्छे-बुरे यानि मिश्रित साल के तौर पर याद किया जाएगा. अच्छा इसलिए क्योंकि भारतीय फिल्म मदर इंडिया को इसी साल एकेडमी अवार्ड मिला, फ्लाइंग सिख मिलखा सिंह ने भी इस साल कॉमनवेल्थ गेम्म में गोल्ड मेडल जीता, जबकि बुरा इसलिए कि भारत का पहला बड़ा घोटाला इसी साल सामने आया. इस घोटाले को नाम दिया गया हरिदास मुंदड़ा घोटाला, इस घोटाले में मुंदड़ा ने सरकारी बाबूओं के साथ साठ-गांठ कर LIC से करीब 1 करोड़ 24 लाख रुपये की रकम 6 कंपनियों में निवेश करा दी, जिनका मोटा शेयर मुंदड़ा के पास था. बिना Lic की investment committee की राय के इतनी मोटी रकम लगाई गई, जिससे LIC को काफी नुकसान हुआ.
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इस बात की भनक जब जवाहरलाल नेहरू के दामाद और रायबरेली के सांसद फिरोज गांधी को लगी, तो उन्होंने अपने ही ससुर की सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. नेहरू चाहते थे कि इस घोटाले को ज्यादा हवा ना दी जाए और चुपचाप कार्रवाई करके पूरे मामले को खत्म कर दिया जाए, लेकिन फिरोज गांधी नहीं माने और ससुर-दामाद के बीच मनमुटाव बढ़ गया
दबाव में आकर नेहरू ने एक कमीशन बना दिया. इस कमीशन में एक मात्र सदस्य बॉम्बे हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज एमसी छागला थे, जिन्होंने जांच के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णाम्चारी को दोषी माना और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा, जिसके बाद नेहरू ने खुद ही वित्त मंत्री का ओहदा भी संभाला.
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