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Education: दो दशक में भारतीयों ने समझी 'क ख ग' की अहमियत, 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ी साक्षरता

1947 में, जब भारत स्वतंत्र हुआ, केवल कुछ ही लोग बिना किसी हिचकिचाहट के पूरा वाक्य पढ़ सकते थे. यह स्थिति देश में साक्षरता की थी, लेकिन आज हालात अलग हैं. अब देश में 77 फीसदी लोग साक्षर हैं. पढ़ने-लिखने की अहमियत पिछले दो दशकों में ज्यादा तेजी से समझी गई है.

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Education: दो दशक में भारतीयों ने समझी 'क ख ग' की अहमियत, 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ी साक्षरता
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डीएनए हिंदी: साल 1951 की जनगणना के दस्तावेज से पता चलता है कि भारत में तब 18.3% साक्षरता दर थी, लेकिन मौजूदा  भारत की तस्वीर अलग है. आज देश में पुरुष साक्षरता दर 84.7% और महिला साक्षरता दर 70.3% तक पहुंच चुकी है. भारतीय राष्ट्रीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2022 में भारत की साक्षरता दर 77.7 % रही, जो साल 2011 में 73% थी यानी इन 10 साल के दौरान पढ़े-लिखे लोगों की जमात में करीब 4% की बढ़ोतरी हुई है. 

यह आंकड़ा जहां अन्य विकासशील देशों की तुलना में प्रभावशाली दिखता है, वहीं यह भी दिखाता है कि आज भी हर 4 में से 1 भारतीय पढ़ने या लिखने में असमर्थ है. केरल भारत का सबसे साक्षर राज्य है. केरल की साक्षरता दर 96.2% है.

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क्या कहते हैं वर्ल्ड बैंक के आंकड़े

वर्ल्ड बैंक के अनुमानों के अनुसार, साल 2018 के पैमाने पर भारतीय साक्षरता दर 74 % आंकी गई है. साल 1991 और 2001 के बीच भारत में साक्षर लोगों का अनुपात 52.2 % से बढ़कर 64.8 % तक पंहुचा था. बता दें कि वर्ल्ड बैंक के पैमाने के मुताबिक, साक्षर व्यक्ति उसे माना जाता है, जो अपने दैनिक जीवन के बारे में संक्षिप्त सरल शब्दों को समझकर पढ़ और लिख सकता है.

वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के हिसाब से भारत ने शिक्षा क्षेत्र में सराहनीय उपलब्धि हासिल की है, लेकिन अन्य देशों की तुलना में लंबा सफर बाकी  है. वर्ल्ड बैंक के 2018 के ग्लोबल आंकड़ों के मुताबिक, पड़ोसी देश चीन में साक्षरता 97% है, जबकि मेक्सिको में यह 95 % और श्रीलंका में 91.7% है. हालांकि, साल 2018 में पाकिस्तान में 57 % और नेपाल में 67% नागरिक साक्षर थे.

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भारत में क्या है लिटरेसी के मायने

census 2011 के मानकों के मुताबिक, देश में सात वर्ष या उससे अधिक आयु के ऐसे नागरिक को, जो किसी भी भाषा में समझ के साथ पढ़ और लिख सकता है, साक्षर माना जाता है. जो व्यक्ति केवल पढ़ सकता है, लेकिन लिख नहीं सकता, वह साक्षर नहीं है. वहीं, साल 1991 से पहले की जनगणना में, पांच साल से कम उम्र के बच्चों को अनिवार्य रूप से निरक्षर माना जाता था.

इन राज्यों ने किया है अच्छा प्रदर्शन

जनगणना के दस्तावेजों और 2017 के National Sample Survey Organisation (NSSO) के आंकड़ों पर नज़र डाले तो साक्षरता के मामले में हरियाणा ने 1971 से लेकर साल 2017 के बीच सबसे अधिक प्रगति की है. हरियाणा में साल 1971 तक आबादी का एक चौथाई हिस्सा ही साक्षर था, वहीं, अब प्रदेश की साक्षरता बढ़कर 80.4 % तक पहुंच गई है. हरियाणा के अलावा उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, असम और ओडिशा ने भी पढ़ने-लिखने में शानदार सुधार दिखाया. इन राज्यों की साक्षरता दर में दो दशक के दौरान 50 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है.

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दूसरी ओर, NSSO के आंकड़ों पर नज़र डालें तो दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश में सबसे कम 66.4 % साक्षरता दर है. इसके बाद राजस्थान में 69.7% साक्षरता है. दिलचस्प बात यह है कि एनएसएस के अनुसार, बिहार निरक्षरता के मामले में देश में तीसरे स्थान पर है. साल 1971 से 2017 के बीच बिहार की साक्षरता दर में 47.13% की वृद्धि हुई है. वहीं, 2011 से 2017 के बीच यहां की साक्षरता दर में 9% की बढ़त दर्ज़ हुई है.

केरल सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा राज्य

केरल देश के सभी राज्यों में पढ़ाई-लिखाई के हिसाब से अव्वल है, जहां 96.2% साक्षरता दर है. आंकड़े बताते हैं कि ये दक्षिणी राज्य हमेशा से ही साक्षरता के लिहाज से आगे रहा है. उदाहरण के लिए, साल 1951 में जब देश की कुल साक्षरता दर 18.3% थी, तब केरल में 47.18 फीसदी लोग साक्षर थे. लेकिन 1971 से 2017 के बीच इसकी साक्षरता दर केवल 26.45% की वृद्धि हुई है. यह ध्यान देने वाली बात है कि 1971 में राज्य की साक्षरता दर लगभग 70% थी.

देश भर में साक्षरता दर को प्रभावित करने वाले कारण कौन से हैं?

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के हिसाब से 2019-21 ने देश भर में 15 से 49 वर्ष की आयु के लोगों का आकलन किया और पाया कि '72 % महिलाएं और 84 % पुरुष साक्षर हैं'. आकड़े ये भी कहते हैं कि भारत में सबसे गरीब तबके से आने वाली महिलाओं में साक्षरता का स्तर केवल 45.8 % हैं. जबकि सबसे अमीर महिलाओं में साक्षरता दर देखे तो अनुपात 92.2 % तक पहुंच जाता है. वही पुरुषो में 65 % तक सबसे गरीब आबादी में साक्षरता देखी गयी है. आर्थिक रूप से मज़बूत पुरुष वर्ग में लगभग 97% तक साक्षर हैं.

आज भी पुरुषों और महिलाओं की साक्षरता दर के बीच का अंतर गंभीर चर्चा का विषय है. भारत के अधिकतर ग्रामीण इलाकों में शौचालय या अन्य समस्या के कारण लड़कियों का स्कूल छोड़ना आम बात है.

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