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कभी पूरा नहीं हो सका Lata Mangeshkar का यह सपना, मुंह बोले बेटे ने बताई यह बात

दोनों भाई लता को मां कहकर ही पुकारते थे. वह भी उन्हें अपना बेटा मानती थीं, अक्सर पूरे परिवार से उनकी बातचीत होती थी.

कभी पूरा नहीं हो सका Lata Mangeshkar का यह सपना, मुंह बोले बेटे ने बताई यह बात

Lata Mangeshkar last wish

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डीएनए हिंदी: Lata Mangeshkar जिससे भी जुड़ीं उससे उनका एक खास रिश्ता रहा. आसानी से किसी के साथ भी रिश्ता बना लेने वाली लता मंगेशकर का एक रिश्ता बनारस के साड़ी निर्माता व व्यवसायी अरमान और रिजवान के साथ रहा. लता हमेशा उनके यहां की बनी हुई साड़ियां ही पहनती थीं. ये दोनों भाई लता को मां कहकर ही पुकारते थे. वह भी उन्हें अपना बेटा मानती थीं, अक्सर पूरे परिवार से उनकी बातचीत होती थी, और तीज-त्योहारों पर वह उन्हें व उनके परिवार के लोगों को कपड़े और उपहार भेजती रहती थीं. जनवरी में जब वह अस्पताल में भर्ती थीं तब अरमान ने 20 तारीख को श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में उनके नाम से बाबा का अभिषेक भी करवाया था. उनके निधन की खबर सुनकर पूरा परिवार शोक में है.

लता मंगेशकर से उनकी मुलाकात साल 2015 की मई में हुई जब उनके पीए महेश राठौर उनके परिवार के अन्य सदस्यों और भाई हृदयेश मंगेशकर के साथ काशी यात्रा पर आए थे तब लता दी के लिए साड़ियां खरीदने के लिए वह गौरीगंज स्थित उनकी दुकान पर पहुंचे. उस समय लता की पसंद जानने के लिए उन्होंने अरमान से मोबाइल पर उनकी बात करवाई थी.

बातचीत के लता ने उन्हें साड़ियां लेकर मुंबई आने को कहा एक महीने बाद वह साड़ियां लेकर मुंबई में उनके घर प्रभुकुंज अपार्टमेंट पहुंच गए. वह बताते हैं कि बातचीत के दौरान उन्हें के प्यार और स्नेह में मां की छवि और सरलता नजर आई और उन्होंने उन्हें मां कह दिया. फिर तो मां-बेटे का यह रिश्ता हमेशा के लिए जुड़ गया. वह संपर्क में रहने लगे और हर महीने या कभी-कभी हफ्ते में बात कर लिया करते थे. साल में तीन-चार बार मुंबई जाने पर उनसे मुलाकात कर आशीर्वाद लेना अरमान और रिजवान का रुटीन बन गया था. लता भी ईद-बकरीद हो या होली-दिवाली, या फिर घर में बेटे बेलाल या बेटी बुशरा का जन्मदिन उनके लिए उपहार जरूर भेजतीं. अजमेर के ख्वाजा का तवर्रुख रखी रहती थीं, जब भी वे मुंबई जाते, उन्हें जरूर खिलाती थीं. 

Lata Mangeshkar son rizwan armaan

अरमान और रिजवान बताते हैं कि बीते सात सालों में उन्होंने लता को करीब 100 साड़ियां भेजी थीं. कुछ वह खुद के लिए मंगवाती थीं तो कुछ दूसरों को उपहार में देने के लिए मंगवाती थीं. इसके बदले में वह जो चेक भेजा करती थीं उन्होंने कभी वे चेक बैंक में जमा नहीं करवाए. बल्कि वह इन्हें लैमिनेशन करवाकर अपने पास रखते थे. अरमान की पत्नी ने लता जी की दी हुई घड़ी को हमेशा उसी तरह केस में सुरक्षित रखा है अब तक, जबकि अरमान उन्हें तोहफे में मिली घडी को हमेशा पहनते हैं.

अरमान बताते हैं कि लता मां से कई बार काशी चलने को कहा. वह भी काशी आना चाहती थीं लेकिन अपने स्वास्थ्य कारणों की वजह से वह कभी यहां नहीं आ सकीं. हमेशा कहती थीं कि व्हील चेयर पर बैठकर जाना मुझे पसंद नहीं. अरमान ने बताया कि लता से उनकी आखिरी बातचीत नए साल के दिन हुई थी तब भी उनकी तबीयत खराब थी.

उनके निधन की खबर सुनते ही अरमान ने मुंबई जाने को तैयार थे लेकिन जब उनके पीए महेश राठौर से बात हुई तो उन्होंने कहा, 'कोविड प्रोटोकाल की वजह से बहुत की कम संख्या में लोगों को शामिल किया जा रहा है. 6 फरवरी शाम को 4.30 बजे अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा, इसलिए आपके आने का कोई फायदा नहीं है'. इसके बाद अरमान ने अपने घर पर ही परिवार के साथ रात में एशा की नमाज के बाद उनकी रूह की मगफिरत के लिए दुआख्वानी की. सोमवार यानी 7 फरवरी को वे पूरे परिवार के साथ मिलकर फातिहा पढ़ेंगे.

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