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Jammu-Kashmir Election: बीजेपी से अलग दिख रहे JDU के सुर, पत्थरबाजों के लिए क्यों पिघला नीतीश कुमार का दिल?

Nitish Kumar Jammu-Kashmir Election: जम्मू-कश्मीर चुनाव में एनडीए की अहम सहयोगी जेडीयू ने अलग उतरने का फैसला किया है. नीतीश कुमार की पार्टी पत्थरबाजों पर भी नर्म नजर आ रही है. 

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Jammu-Kashmir Election: बीजेपी से अलग दिख रहे JDU के सुर, पत्थरबाजों के लिए क्यों पिघला नीतीश कुमार का दिल?

पत्थरबाजों पर नीतीश कुमार मेहरबान?

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जम्मू-कश्मीर चुनाव (Jammu And Kashmir) चुनाव के लिए सभी पार्टी अपनी तैयारियों में जुटी हैं. इंडिया अलायंस (INDIA Alliance) अपने सहयोगियों को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रही है. दूसरी ओर एनडीए में सहयोगियों के सुर बीजेपी से अलग नजर आ रहे हैं. जेडीयू (JDU) ने अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है. इसमें पत्थरबाजों को लेकर नीतीश कुमार की पार्टी का रुख नर्म दिख रहा है. पार्टी ने पत्थरबाजी के आरोप में जेल में बंद मामलों की समीक्षा का वादा किया है. दूसरी ओर बीजेपी का रुख इस मुद्दे पर काफी सख्त रहा है.  

JDU ने पत्थरबाजों पर दर्ज केस की समीक्षा का किया वादा 
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की पार्टी जेडीयू ने 18 सितंबर को होने वाले पहले चरण के मतदान के लिए दो उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. जेडीयू के घोषणापत्र में कहा गया है, 'प्रदेश में शांति और सुलह के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए पत्थरबाजों पर दर्ज मामलों की समीक्षा के लिए गृह मंत्रालय से आग्रह किया जाएगा. राजनीतिक कैदियों और पत्थरबाजों की रिहाई का रास्ता बनाने की कोशिश करेंगे.'


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बीजेपी का रुख पत्थरबाजों के लिए अब तक काफी सख्त रहा है. ऐसे में केंद्र में अपने ही अहम सहयोगी दल के अलग सुर पार्टी की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं. हालांकि, लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद से नीतीश कई बार कह चुके हैं कि वह एनडीए (NDA) का अहम हिस्सा हैं और आगे भी साथ रहेंगे. 

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले दबाव बनाने की रणनीति? 
अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और एनडीए के दो अहम सहयोगी जेडीयू और एलजेपी (रामविलास) दोनों ही कुछ मुद्दों पर अपनी असहमति जता रहे हैं. हालांकि, एनडीए से अलग होने की बाद अब तक दोनों में से किसी पार्टी ने नहीं की है. केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने मीडिया को दिए इंटरव्यू में स्पष्ट किया है कि गठबंधन में कोई दरार नहीं है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सहयोगियों के बीच दबाव बनाने के लिए यह रणनीति अपनाई जा रही है.


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