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Sharad Yadav Death: लालू के होकर भी क्यों नहीं हुए शरद यादव, शर्तों पर जीने की राजनीति में चुकाई कीमत

Sharad Yadav Life Story: भारतीय राजनीति में शरद यादव की खास अहमियत रही. खासतौर पर भाजपा के उत्थान में वे NDA संयोजक के तौर पर अहम रहे थे.

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Sharad Yadav Death: लालू के होकर भी क्यों नहीं हुए शरद यादव, शर्तों पर जीने की राजनीति में चुकाई कीमत

Sharad Yadav Lalu Yadav की दोस्ती जब दोबारा परवान चढ़ी थी. (फाइल फोटो)

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डीएनए हिंदी: Sharad Yadav Biography- साम्यवादी राजनीति के धुरंधर शरद यादव (Sharad Yadav) का बृहस्पतिवार रात को 75 साल की उम्र में निधन हो गया. उनकी निधन की जानकारी बेटी सुहासिनी ने फेसबुक पोस्ट के जरिये सभी के साथ साझा की. इसके साथ ही भारतीय राजनीति की मशहूर 'यादव तिकड़ी' का एक और सदस्य कम हो गया. मुलायम सिंह यादव और शरद यादव के निधन के बाद अब इस तिकड़ी में से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ही बचे हैं, जो पिछले कुछ समय से बेहद बीमार चल रहे हैं. राम मनोहर लोहिया के राजनीतिक विचारों से प्रेरित ये तीनों धुरंधर जेपी आंदोलन की उपज माने जाते थे. यहां तक कि लालू को 1990 में पहली बार मुख्यमंत्री बनवाने में भी शरद यादव ने ही मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर अहम भूमिका निभाई, लेकिन 7 साल की दोस्ती के बाद 1997 में जनता दल का मुखिया बनने की लड़ाई दोनों के बीच आ गई. इस लड़ाई में शरद और लालू के बीच बना अलगाव सुप्रीम कोर्ट तक ऐसा गया कि जनता दल में दो फाड़ होने के साथ ही दोनों की राह भी अलग हो गई.  

लालू की राह में बोते रहे कांटे

शरद यादव ने 1999 में जॉर्ज फर्नांडिस के साथ विलय कर समता दल गठित किया. फिर इसे बदलकर नीतिश कुमार को जोड़ते हुए जनता दल (यूनाइटेड) का गठन किया, लेकिन वही तीर का निशान लालू पर हमला करता रहा. खासतौर पर साल 2005 में लालू के बिहार की सत्ता से बाहर होने के बाद नीतिश कुमार के नेतृत्व में जब शरद यादव की जेडीयू ने सरकार बनाई तो चारा घोटाले के मामलों में तेजी इसी कारण दिखी. 

2013 में फिर एक हुई राह

शरद यादव के लालू पर ये हमले साल 2013 में तब खत्म हुए, जब नरेंद्र मोदी के NDA का प्रधानमंत्री बनने के विरोध में नीतिश कुमार ने जेडीयू को NDA से अलग नहीं कर लिया. कहा जाता है कि उस समय बिहार में राजद के साथ जेडीयू के गठबंधन की पटकथा शरद यादव ने ही लालू के साथ पुरानी दोस्ती की याद ताजा करते हुए लिखी थी, जबकि शरद यादव उस समय NDA के संयोजक थे. उन्होंने अपनी पार्टी के NDA छोड़ने पर यह पद भी छोड़ दिया. लालू के साथ दोबारा जुड़े रिश्तों के कारण ही शरद ने 2015 में नीतिश को भी तब अलविदा कह दिया, जब नीतिश ने राजद का दामन छोड़कर दोबारा भाजपा का हाथ थाम लिया. यह उन शर्तों के अनुकूल नहीं था, जिन पर शरद यादव की जिंदगी चलती थी.

नीतिश और लालू दोनों को कहा अलविदा

शरद ने तब नीतिश को अलविदा कहकर लोकतांत्रिक जनता दल (LJD) नाम से नई पार्टी बनाई, लेकिन एक बार फिर लालू को भी अलविदा कह दिया. हालांकि पिछले साल एक बार फिर जनता दल का बिखरा कुनबा जोड़ने के नाम पर शरद यादव ने अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल (LJD) का विलय लालू की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में कर लिया. इसके बावजूद शरद यादव और लालू कभी एक नहीं हो सके. इसका नजारा तब दिखा, जब पिछले साल मौका होने के बावजूद लालू की पार्टी ने शरद यादव को राज्य सभा में नहीं भेजा.

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