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चुनाव में मुफ्त की घोषणाओं पर रोक के लिए कमेटी बनाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को भेजा मामला

Freebies: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों में मुफ्त की घोषणाओं का मामला तीन जजों की बड़ी बेंच के पास भेज दिया है.

चुनाव में मुफ्त की घोषणाओं पर रोक के लिए कमेटी बनाने की मांग, सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी बेंच को भेजा मामला
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डीएनए हिंदीः चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त की घोषणाओं (Freebies) पर लगाम की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की बड़ी बेंच के पास भेज दिया गया है. अब इस मामले की सुनवाई तीन जजों की बेंच करेगी. सीजेआई (CJI) ने इस मामले को नई बेंच को भेजा है. अश्विनी उपाध्याय की ओर से चुनावी घोषणापत्रों पर नजर रखने के लिये कमेटी के गठन की मांग की गई है. पिछली सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से जल्द सुनवाई की मांग की गई थी जिस पर सीजेआई ने कहा कि इसमें जल्दबाजी क्या है. इस अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. 

समिति बनाने का सुझाव  
सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के दौरान इस मामले को गंभीर समस्या मानते हुए सरकार से एक समिति गठित करने का सुझाव दिया था. इस समिति में रिजर्व बैंक, नीति आयोग और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को शामिल करने की बात है. कोर्ट ने कहा कि हम राजनीतिक पार्टियों की घोषणाओं पर रोक नहीं लगा सकते हैं, लेकिन कल्याणकारी योजनाओं और चुनावी रेवड़ियों के बीच अंतर करना जरूरी है. कोर्ट ने चुनाव आयोग और राज्य सरकारों से जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है. 

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मुफ्त बांटने से जनता पर ही बढ़ता है बोझ  
इससे पहले सुनवाई के दौरान इस मामले को मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने जरूरी बताया है. वहीं सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि मुफ्त में कुछ भी बांटने से इसका बोझ आम जनता और टैक्स पेयर पर आता है. कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर चर्चा की जरूरत है क्योंकि देश के कल्याण का मसला है. अदालत ने कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों का जनता से मुफ्त की रेवड़ियों का वादा और वेलफेयर स्कीम के बीच अंतर करने की जरूरत है.  

कौन-कौन पार्टी कर रही है याचिका का विरोध
आम आदमी पार्टी (आप), डीएमके और वाईएसआर कांग्रेस मुफ्त की रेवड़ियों पर रोक की मांग वाली याचिका का विरोध कर रहे हैं. बता दें कि अदालत वकील अश्विनी उपाध्याय की तरफ से दाखिल एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में सुविधाएं प्रदान करने के वादों का विरोध किया गया है. 

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