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Deen Dayal Death Anniversary: दीनदयाल उपाध्याय, अंत्योदय के लिए सोचने वाले विलक्षण स्वयं सेवक

दीनदयाल उपाध्याय ने आजीवन संघर्ष किया है. उनका एकात्म मानववाद भी संघर्ष के सिद्धातों का विस्तार है.

Deen Dayal Death Anniversary: दीनदयाल उपाध्याय, अंत्योदय के लिए सोचने वाले विलक्षण स्वयं सेवक

Deen Dayal Death Anniversary: 

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डीएनए हिंदी: पंडित दीनदयाल उपाध्याय (Pandit Deendayal Upadhyay) ऐसे भारतीय राजनेता रहे हैं जिनके मूल में एकात्म मानववाद रहा है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक के बड़े विचारक  और संगठनकर्ताओं में से एक दीनदयाल को पंडित जी भी कहा जाता है. उनकी विचारधारा हिंदुत्व पर आधारित थी लेकिन उन्होंने इसे एकात्म मानववाद की राह पर आगे मोड़ दिया.

भारतीय दर्शन में यह अवधारणा भले ही नई न हो लेकिन लोग इसे भूलने लगे थे. पंडित दीनदयाल ने इस विचारधारा में नए प्राण फूंके. यह विचारधारा अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) की मूल विचारधारा बन गई है.

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का निधन एक रहस्य है. मुगलसराय रेलवे स्टेशन जिसे अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता है, वहीं पर इनका शव 11 फरवरी 1968 को एक यार्ड में संदिग्ध अवस्था में मिला था. मौत की गुत्थी आज तक अनसुलझी है.

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कहां हुआ था दीनदयाल उपाध्याय का जन्म?

दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को उत्तर प्रदेश मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में हुआ था. 3 साल की उम्र में उनके पिता का निध हो गया था. जब दीनदयाल 7 साल के हुए तो उनकी मां का भी साथ छूट गया. जब वह अनाथ हुए तो अपने ननिहाल चले गए. उन्होंने हाईस्कूल की पढ़ाई राजस्थान के सीकर में की.  

दीनदयाल उपाध्याय ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई पिलानी में की. बीए की पढ़ाई उन्होंने कानपुर से की जहां उन्होंने सनातन धर्म कॉलेज में दाखिला लिया. साल 1937 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए. इसी साल उन्होंने प्रथम श्रेणी से बीए की परीक्षा भी पास की. आगरा से उन्होंने एमए किया.

कैसे बढ़ा संघ में कद?

आगरा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में काम करने के दौरान उनकी मुलाकात नानाजी देशमुख और श्री भाउ जुगडे से हुई. यहीं से उनके जीवन के दिशा बदल गई. पंडित दीनदयाल बीटी का कोर्स करने के लिए  इलाहाबाद आ गए और संघ के लिए खूब काम किया. सन 1955 में वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर प्रदेश के प्रांत प्रचारक बन गए. लखनऊ में रहने के दौरान उन्होंने राष्ट्र धर्म नाम से एक मासिक पत्रिका भी निकाली.

संघ में लगातार दीनदयाल उपाध्याय का कद बढ़ता रहा. अपने प्रखर विचारों की वजह से वह लगातार एक के बाद एक कीर्तिमान स्थापित कर रहे थे.

उनमें संगठन चलाने का अलग कौशल था. 1953 में डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के असमय निधन के बाद 1967 तक पंडित जी ने महासचिव रहते हुए ही जनसंघ को संभाला. भारतीय जनसंघ के 14वें वार्षिक अधिवेशन में दीनदयाल उपाध्याय को दिसंबर 1967 में कालीकट में जनसंघ का अध्यक्ष निर्वाचित किया गया. अपने एकात्म मानववाद की विचारधारा पर आगे बढ़ने के लिए देश उन्हें आज भी याद करता है.

क्या है एकात्म मानववाद का विचार?

दीनदयाल उपाध्याय ने आजीवन संघर्ष किया है. यही वजह है कि उन्होंने एकात्म मानववाद का सिद्धांत दिया. यह सिद्धांत व्यक्तिवाद और समाजवाद से अलग सोचता है. इस विचारधारा के मूल में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है. उनका मानना था कि समाज केवल सरकार नहीं है, उसकी अपनी संस्कृति है, जन एवं देश है. इन चारों के सही संचालन के बिना सुख नहीं अर्जित किया जा सकता. यह विचारधारा सबके विकास में भरोसा करती है.

आज तक अनसुलझी है डेथ मिस्ट्री!

पंडित  दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु आज तक अनसुलझी गुत्थी है. 11 फरवरी, 1968 को दीनदयाल का शव मुगलसराय रेलवे यार्ड में मिला था. मौत की जांत के लिए कई समितियां बनाई गईं लेकिन कुछ सामने नहं आया. दुनिया को एकात्म मानववाद का संदेश देने वाला पुरोधा के मौत ने देश को हिलाकर रख दिया था. भारतीय जनसंघ के सह-संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की पुण्यतिथि को बीजेपी समर्पण दिवस के तौर पर मनाती है.

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