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डर के कारण नक्सली संगठनों में भर्ती ठप, सुरक्षाबलों की सख्ती का दिखा असर

नक्सली संगठन के आकाओं की मौत के बाद लोग नक्सलवाद की ओर रुख करने से डर रहे हैं. वहीं प्रशासन का जनसंपर्क भी सकारात्मक परिणाम दे रहा है. 

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डर के कारण नक्सली संगठनों में भर्ती ठप, सुरक्षाबलों की सख्ती का दिखा असर
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डीएनए हिंदीः मई 2014 में जब मोदी सरकार का गठन हुआ था तो उसका ध्यान पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर था. वहीं नक्सलवाद के खिलाफ भी पूर्व गृहमंत्री राजनाथ सिंह के निर्देशों पर सुरक्षाबलों ने विशेष अभियान चलाए थे जो कि 2019 के बाद अमित शाह के दिशानिर्देशों में अतितीव्र हो गए हैं.

इसी सक्रियता का नतीजा है कि नक्सलियों का रेड कॉरिडोर अब चंद जिलों में ही सीमित रह गया है. सुरक्षाबलों की सख्ती का ही परिणाम है कि अब नक्सलवाद के पांव उखड़ने लगे हैं और इसे आगे बढ़ाने की हिम्मत किसी में नहीं बची है. 

नई भर्ती में आई कमी 

सुरक्षाबलों ने रेड कॉरिडोर के लगभग सभी मास्टरमाइंड नक्सलियों को मौत के घाट उतार दिया है. अब चंद मास्टरमाइंड नक्सलियों के नेतृत्व में नक्सलवाद धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है. इसकी वजह मात्र सुरक्षाबलों की सजगता ही है.

इन इलाकों में लगातार हो रही नक्सलियों की मौत के कारण अब नक्सली डरे हुए हैं. यही कारण है कि अब नए नक्सली इन संगठनों मे भर्ती से कतरा रहे हैं. वहीं वो महिलाएं एवं बच्चे जो कि नक्सलियों की ढाल बन रहते थे, उनका इस ओर रुझान लगातार घट रहा है. 

खास बात ये भी है कि महिलाओं एवं बच्चों की भर्ती के लिए नक्सली विशेष अभियान चला रहे हैं लेकिन उन्हें आशातीत सफलता नहीं मिल रही है. इसकी वजह सुरक्षा बलों की बेहतर पहुंच एवं अधिकारियों का इलाके के आम जनमानस के साथ संपर्क है. इसका नतीजा ये है कि छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में भर्ती के मुद्दे पर नक्सलियों के हाथ निराशा ही लग रही है. 

छ्त्तीसगढ़ में बड़ी सफलता

रिपोर्ट्स बताती हैं कि झारखंड में हाल ही में प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) ग्रुप की केंद्रीय समिति के सदस्य प्रशांत बोस उर्फ ​​'किशन दा' और उनकी पत्नी शीला मरांडी की गिरफ्तारी हुई थी. इन दोनों की गिरफ्तारी की बड़ी वजह खुफिया एजेंसियों और स्थानीय पुलिस की कड़ी मेहनत मानी जा रही है. 

वहीं इनके अलावा ओडिशा, महाराष्ट्र, तेलंगाना से पकड़ में आए ज्यादातर सक्रिय नक्सली छत्तीसगढ़ से थे, जो कि छत्तीसगढ़ में चल रहे नक्सल ग्रुप के लिए एक बड़ा झटका है. 

नक्सलवाद के खिलाफ महाराष्ट्र में चल रहे सघन अभियान के बीच स्थानीय पुलिस ने जिन 26 माओवादी कैडर्स को मार गिराया था, उनमें नक्सलियों का शीर्ष भगोड़ा मिलिंद बाबूराव तेलतुम्बडे भी था. मिलिंद तेलतुम्बडे ने महाराष्ट्र के चंद्रपुर, गोंदिया, गढ़चिरौली, नागपुर और यवतमाल जिलों में एक शक्तिशाली नक्सली नेटवर्क बनाया था.  

मंसूबों पर फेरा पानी

ये नक्सली मास्टरमाइंड जंगल से शहरी क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे थे और नक्सली महाराष्ट्र के नक्सली इलाकों से लेकर झारखंड तक गलियारा बनाना चाहते थे लेकिन उसमें सुरक्षाबलों ने सघन कार्रवाई से रुकावट पैदा कर दी है. सुरक्षाबलों द्वारा प्रतिदिन नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन जारी है.

ऐसे में एक तरफ जहां पुराने नक्सली आका मारे जा रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी मौत इलाके में दहशत फैला रही है. नतीजा ये है कि अब नए नक्सलियों की भर्ती के लिए लगातार इन संगठनों को संघर्ष करना पड़ रहा है लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात ही है. 

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