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Happy Holi: जब 'प्रह्लाद के गांव' में जलती होलिका के बीच से गुजरा शख्स, देखें वीडियो

फालैन गांव को प्रह्लाद नगरी के नाम से भी जानते हैं. यहां होलिका दहन पर अनोखी परंपरा का पालन किया जाता है. पढ़ें कन्हैया लाल शर्मा की रिपोर्ट.

Happy Holi: जब 'प्रह्लाद के गांव' में जलती होलिका के बीच से गुजरा शख्स, देखें वीडियो

Holika Dahan Celebration. 

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डीएनए हिंदी: देशभर में रंगोत्सव होली मनाई जा रही है. मथुरा के कोसीकंला स्थित फालैन गांव में अनोखी होली मनाई जाती है. यहां एक पंडा 15 फुट ऊंची और 24 फुट चौड़ी होलिका से धधकती आग से होकर गुजरता है. यह अनोखी परंपरा केवल इसी गांव में मनाई जाती है. इस मौके पर आस-पड़ोस के 6-7 गावों के लोग इकट्ठा होते हैं.

यह परंपरा बेहद खतरनाक होती है. जरा सी असावधानी से जान जा सकती है. होलिका दहन के दिन हजारों की संख्या में भीड़ जमा होती है. धधकती आग के बीच से बेहद तेज रफ्तार से पंडा को निकलना होता है. परंपरा का साक्षी बनने लोग दूर-दूर से आते हैं.

लगातार तीसरी बार गांव के मोनू पंडा इस परंपरा को निभाने के लिए 16 फरवरी से ही प्रह्लाद मंदिर पर कठिन तपस्या कर रहे थे. शुभ लग्न और मुहूर्त देखकर होलिका दहन की धधकती आग में वह एक बार फिर उतर गए. लोग नारे लगाते रहे और वह बेहद कम वक्त में पूरे अग्नि कुंड को पार कर गए.

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प्रह्लाद का गांव है फालैन

फालैन गांव मथुरा जिला से करीब 55 किलोमीटर की दूरी पर है. इसे प्रह्लाद का गांव कहा जाता है. मान्यता है कि गांव के निकट एक साधु ने एक पंडा परिवार को आशीर्वाद दिया था कि जो व्यक्ति शुद्ध मन से पूजा करके धधकती होली की आग से गुजरेगा, उसके शरीर में खुद प्रहलाद जी विराजमान हो जाएंगे. आग का उस पर कोई असर नहीं पड़ेगा. तब से लेकर अब तक यह परंपरा चली आ रही है. साधु के सपने में आया था कि एक जमीन के नीचे कुछ मूर्तियां भी रखी गई हैं. खुदाई पर वह मूर्तियां भी मिली थीं.

 
मोनू पंडा ने निभाई पुरखों की परंपरा

गुरुवार सुबह चार बजे प्रह्लाद की माला गले में धारण कर मोनू पंडा कुंड पहुंचे. उन्होंने नहाने के बाद दीपक पर हाथ रखकर आग में जाने की इजाजत मांगी. जैसे ही प्रवेश लग्न शुरू हुआ वह आग में कूद पड़े. 15 फीट ऊंची होलिका पर महज 19 कदमों में उन्होंने अग्निकुंड पार कर लिया.

25 दिन तक करते हैं तपस्या

ग्रामीणों के मुताबिक होलिका दहन के 25 दिन पहले ही फालैन का एक पंडा तप पर बैठ जाता है. इस दौरान वह अन्न का सेवन नहीं करता. केवल फलों का ही सेवन करता है. यह परंपरा करीब 5,000 साल पुरानी है. लोग अपनी जान पर खेलकर परंपरा का पालन करते हैं.

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