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Chandipura Virus Outbreak: गुजरात और राजस्थान में बच्चों पर चांदीपुरा वायरस का प्रकोप, ये लक्षण दिखते ही हो जाएं सतर्क

गुजरात और राजस्थान में चांदीपुरा वायरस का कहर बढ़ने लगा है. शनिवार को गुजरात के साबरकांठा जिले में मस्तिष्क के सेल्स में सूजन के कारण चार बच्चों की मौत हो गई. ऐसा संदेह है कि यह मौत चांदीपुरा वायरस के संक्रमण के कारण हुई है.

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Chandipura Virus Outbreak: गुजरात और राजस्थान में बच्चों पर चांदीपुरा वायरस का प्रकोप, ये लक्षण दिखते ही हो जाएं सतर्क

चांदीपुरा वायरस का बच्चों में कहर 

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गुजरात के हिम्मतनगर अस्पताल में सोमवार को चांदीपुरा वेसिकुलोवायरस (सीएचपीवी) जिसे आमतौर पर चांदीपुरा वायरस के नाम से जाना जाता है, के कारण छह मौतें हुईं. बता दें कि गुजरात और राजस्थान के कई इलाकों में इस वायरस ने चिंता की लकीरें खींचनी शुरू कर दी हैं. यह वायरस सीधे दिमाग को प्रभावित करता है और जानलेवा हो सकता है और खासकर ये 9 महीने से लेकर 14 साल के बच्चों पर अटैक कर रहा है.

क्या हैं इस वायरस के लक्षण

चांदीपुरा वायरस में अक्सर अचानक तेज बुखार आना, उसके बाद दौरे पड़ना, दस्त, उल्टी  शामिल है, जो अंततः मौत का कारण बन सकता है. बताया गया है कि इस वायरस से संक्रमित बच्चे लक्षण दिखने के 48-72 घंटों के भीतर मर जाते हैं. अधिकांश संक्रमित रोगियों की मृत्यु का कारण इंसेफेलाइटिस है, जो सक्रिय मस्तिष्क ऊतकों की सूजन है.

जर्नल ऑफ रिसर्च इन मेडिकल एंड डेंटल साइंस की रिपोर्ट के अनुसार ‘चांदीपुरा वायरस एक और विदेशी उष्णकटिबंधीय रोग(Exotic tropical diseases) है. सैंडफ्लाई या ड्रेन फ्लाई को इस वायरस का एक महत्वपूर्ण वाहक माना जाता है. ये सीएचपीवी मच्छरों को भी संक्रमित करता है.

उपचार और रोकथाम

चांदीपुरा वायरस के लिए कोई विशिष्ट एंटीवायरल उपचार उपलब्ध नहीं है. आपातकालीन उपचार का उद्देश्य ब्लड फ्लो की कमी के कारण न्यूरॉन्स या तंत्रिका कोशिकाओं की रक्षा करना है जो किसी भी दीर्घकालिक न्यूरोलॉजिकल जटिलताओं को रोकने के लिए आवश्यक है.  

चांदीपुरा वायरस क्या है?

अप्रैल से जून 1965 के बीच, मध्य भारत के एक शहर नागपुर में एक नए वायरस का प्रकोप देखा गया, जिससे मनुष्यों में बुखार हो गया. पुणे वायरस रिसर्च सेंटर के प्रवीण एन भट्ट और एफएम रोड्रिग्स ने 1967 में जारी एक शोध पत्र में चांदीपुरा वायरस को आर्बोवायरस (आर्थ्रोपोड वैक्टर के माध्यम से प्रसारित वायरस) के रूप में वर्गीकृत किया, जो भारत के लिए नया था.

भट्ट और रोड्रिग्स के अनुसार, इस वायरस को उन कुछ स्तनधारी वायरसों में से एक माना जाता है जो वायरल संक्रमण के परिणामस्वरूप मेजबान कोशिका में संरचनात्मक परिवर्तन करते हैं. वैज्ञानिकों ने पाया कि यह वायरस शिशुओं और वयस्क चूहों के लिए घातक है.

चांदीपुरा वायरस को रैबडोविरिडे परिवार से वेसिकुलोवायरस जीनस के सदस्य के रूप में वर्गीकृत किया गया है. रैबडो शब्द जिसका ग्रीक में अर्थ है 'छड़ी के आकार का', इस परिवार से संबंधित वायरस के बुलेट आकार के कारण दिया गया है, जैसा कि वैज्ञानिक एबी सुदीप, वाईके गुरव और वीपी बॉन्ड्रे ने 2016 में इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक समीक्षा लेख में लिखा है.

वैज्ञानिकों द्वारा लिखे गए समीक्षा लेख के अनुसार , मध्य भारत में 2003-04 में सीएचपीवी वायरस के प्रकोप के कारण कुल 322 बच्चों की मृत्यु हुई, जिनमें से 183 आंध्र प्रदेश में, 115 महाराष्ट्र में और 24 गुजरात में हुई. आंध्र प्रदेश और गुजरात में मृत्यु दर क्रमशः 56 से 75 प्रतिशत थी. उन्होंने यह भी बताया कि अधिकांश मामलों में, रोगियों की मृत्यु लक्षण शुरू होने के 24 घंटों के भीतर हुई.

रोगवाहकों को नियंत्रित करना, अच्छा पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता और जागरूकता बनाए रखना वायरस को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है.

(Disclaimer: यह लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है. इस पर अमल करने से पहले अपने विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लें.)

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