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How to take decision: अपने फैसले खुद करें किसी और पर निर्भर ना हों, कौन सी शक्ति करेगी मदद-बीके शिवानी

BK Shivani हमें बता रही हैं कि कैसे हम खुद का निर्णय खुद ले सकते हैं, हमें किस शक्ति की जरूरत है. उनकी दी गई ये टिप्स फॉलो करें और पावरफुल बने

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How to take decision: अपने फैसले खुद करें किसी और पर निर्भर ना हों, कौन सी शक्ति करेगी मदद-बीके शिवानी
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डीएनए हिंदी: Take Tour Own Decision- जीवन में सही वक्त पर सही निर्णय लेना बहुत ज़रूरी होता है. इसके लिए हमें अपने अंदर की आवाज को यानी इंट्यूशन को सुनना चाहिए. इंट्यूशन का मतलब कोई लॉजिक नहीं, बस यह करना है लेकिन वो जो अंदर से जवाब आता है वो इतना स्ट्रांग होता है कि उसके बाद किसी लॉजिक की ज़रूरत नहीं होती है. जब हम दिमाग से सोचते हैं तो मन में किन्तु और परन्तु आता है लेकिन जब मन से आवाज आती है तब बाकी विचार आने बंद हो जाते हैं. इंट्यूशन के आधार पर लिए गए फैसले गलत नहीं होते हैं, जबकि तर्क के आधार पर लिए गए फैसलों के गलत होने की संभावना अधिक होती है.

अब यह प्रश्न उठता है कि वह कौनसी शक्ति है जो फैसले लेती है? जीवन के हर दृश्य में एक निर्णय शामिल होता है. निर्णय हमेशा बड़े-बड़े नहीं होते हैं, छोटे-छोटे फैसले तो हम जीवन के हर सीन में ले रहे हैं पर यह फैसले लेनी वाली शक्ति कौन है? अगर वह फैसला लेनी वाली ऊर्जा शक्तिशाली होगी तो फैसला सही होगा, अगर नहीं होगी तो फैसला गलत होगा. हर फैसला जो हम लेते हैं वो हमारा कर्म बनता है, और हमारे कर्म से हमारा भाग्य बनता है. अगर मेरा फैसला सही नहीं निकला, तो यह मेरे भाग्य को नीचे ले आएगा.

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इसलिए हर फैसला हमारा कर्म बन जायेगा और हर कर्म का परिणाम होगा. वो परिणाम ही मेरा भाग्य है. अतः फैसला सटीक (एक्यूरेट) होना बहुत ज़रूरी है. आजकल कई औरों से पूछ लेते हैं "तुम्हें क्या लगता है, मुझे क्या करना चाहिए?" सामने वाला कहता है, "आपका जीवन है, आप फैसला करो कि आपके लिए क्या सही है". लेकिन हम कहते, "मेरे से नहीं लिया जा रहा,"

लेकिन हम ऐसा क्यों करते हैं? क्या हमें यह एहसास नहीं है कि हमारा निर्णय हमारा भाग्य बदलने जा रहा है? जब हम किसी और को कहते हैं कि आप मेरा निर्णय ले लो, तो इसका मतलब है कि निर्णय लेने वाली शक्ति बहुत कमज़ोर हो गई है. जब फैसला लेने वाली शक्ति इतनी कमज़ोर हो जाती है तो वो फैसले लेने से डरती है, अतः दूसरा उसके लिए निर्णय ले, यह उसे  अधिक सुरक्षित लगता है. दूसरों से हम सलाह या राय ले सकते हैं. लेकिन सभी सलाह-मशवरे लेने के बाद फैसला मेरा ही होना चाहिए क्योंकि हर फैसले का एक परिणाम आएगा, अगर वो फैसला मैंने नहीं लिया होगा, तो मेरे लिए परिणाम का सामना करना मुश्किल होगा

हमें खुद फैसला इसलिए लेना चाहिए क्योंकि हमारे संस्कार और उनके संस्कार अलग हैं. यहां तक कि जब एक अभिभावक अपने बच्चे के लिए फैसला लेता है, तो वो भी गलत हो सकता है. क्योंकि दोनों के संस्कार अलग हैं और वो दोनों आत्माएं ही भिन्न-भिन्न संस्कारों के साथ एक यात्रा पर हैं.

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अतः किसी भी आत्मा को दूसरी आत्मा का फैसला नहीं लेना चाहिए और ना ही किसी को यह कहना चाहिए कि मेरे लिए फैसला लो. हम में से बहुतों को कितना अच्छा लगता है जब लोग हमसे उनके लिए फैसला लेने को कहते हैं. अपने लिए फैसला लेने में काफी लम्बा समय लग जाता है और दूसरे के लिए, हम तुरंत कह देते हैं, "इतना क्या सोचना, बस यह कर लो. जब आपने दूसरे के लिए फैसला लिया तो आप दूसरे के कार्मिक अकाउंट में फंस रहे हैं. इसलिए अभी कर्म बंधन ना बनायें. अपना फैसला भी खुद लें, और दूसरे को भी अपना फैसला खुद लेने में सक्षम बनायें

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