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पिंडदान और तर्पण के लिए सबसे पवित्र हैं ये 5 जगह, यहां श्राद्ध करने से प्रसन्न हो जाएंगे पितर

भाद्रपद मास में पितरों का पिंडदान श्राद्ध करना बेहद शुभ होता है. इससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. व्यक्ति के सभी पाप खत्म हो जाते हैं.

हिंदू धर्म में पितरों का पिंडदान और श्राद्ध का बड़ा महत्व है. हर साल  भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से अगले 15 दिनों के लिए पितृपक्ष शुरू होता है. मान्यता है कि इस अवधि में पितर यानी आपके पूर्वज धरती पर आकर अपने परिवार के पास पहुंचते हैं. इस दौरान पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से पूर्वज प्रसन्न होते हैं. पितरों में निकाला गया खाना उन तक पहुंचता है, जिसके बाद पितरों का आशीर्वाद परिवार को प्राप्त होता है.  पितृदोष से छुटकारा मिलता है और तक्करी होती है. ऐसे ही शास्त्रों में पांच स्थान बताए गये हैं, जहां पिंडदान या तर्पण करने से पितरों को प्रसन्नता होती है. वह खुशी खुशी परलोक जाते हैं. आइए जानते हैं वो 5 जगह

1.नदी के तट पर करें श्राद्ध

नदी के तट पर करें श्राद्ध
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गरुड़ पुराण में पितरों के श्राद्ध और पिंडदान के लिए नदी के तट को सबसे अच्छा बताया गया है. नदी किनारे पिंडदान करने से पितर प्रसन्न होते हैं. व्यक्ति के सभी काम बनते चले जाते हैं. 



2.इस पेड़ के नीचे भी कर सकते हैं श्राद्ध

इस पेड़ के नीचे भी कर सकते हैं श्राद्ध
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पितृपक्ष में ​पितरों का तर्पण, श्राद्ध या पिंडदान बरगद के पेड़ के नीचे करना बेहद शुभ होता है. इस पेड़ के नीचे बैठकर दक्षिण दिशा की तरफ मुख करें और पितरों का तर्पण करें. इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है. 



3.घर में पिंडदान करना शुभ

घर में पिंडदान करना शुभ
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अगर आप किसी पवित्र स्थान पर जाने में असमर्थ हैं तो घर में दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके पिंडदान करना चाहिए. इसी दिशा की तरफ जल अर्पित करें. यह बेहद शुभ होता है और पितर प्रसन्न होते हैं.



4.खेत या जंगल में भी कर सकते हैं तर्पण

खेत या जंगल में भी कर सकते हैं तर्पण
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शास्त्रों के अनुसार, घने वन या खेत में बैठकर भी पितरों का पिंडदान या तर्पण किया जा सकता है. इसकी वजह जंगल या खेत की गणना पवित्र स्थान में किया जाना है. इससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.



5.पिंडदान के लिए गौशाला भी है उच्चस्थान

पिंडदान के लिए गौशाला भी है उच्चस्थान
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शास्त्रों में बताया गया है कि गौशाला में पिंडदान करना भी बेहद शुभ होता है. लेकिन इसमें भी व्यक्ति का मुख दक्षिण दिशा में होना चाहिए. इसी दिशा की तरफ मुख करके पितरों की पूजा और श्राद्ध करें.



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