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Kalashtami Vrat 2024: कालाष्टमी व्रत पर करें काल भैरव की पूजा, इस स्तोत्र के पाठ से पूरे होंगे रुके हुए कार्य

Masik Kalashtami Vrat 2024: हिंदू पंचांग में प्रत्येक तिथि का महत्व होता है. हर महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत किया जाता है.

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Kalashtami Vrat 2024: कालाष्टमी व्रत पर करें काल भैरव की पूजा, इस स्तोत्र के पाठ से पूरे होंगे रुके हुए कार्य

Masik Kalashtami September 2024

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Kalashtami Vrat: कालाष्टमी का व्रत भगवान काल भैरव की पूजा अर्चना के लिए खास होता है. काल भैरव भगवान शिव का रौद्र है. इस बार काल भैरव का व्रत 24 सितंबर, 2024 को रखा जाएगा. काल भैरव की पूजा करने से साधक के मनोरथ सिद्ध हो होते हैं.

काल भैरव व्रत पूजा मुहूर्त

भक्त काल भैरव की पूजा सुबह काल में 04:04 मिनट से लेकर 05:32 तक ब्रह्म मुहूर्त में कर सकते हैं. इस मुहूर्त के बाद पूजा के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं है. आप यहां बताई विधि से काल भैरव भगवान की पूजा करें.

काल भैरव पूजा विधि

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर व पूजा स्थल की अच्छे से साफ सफाई करें. नहाकर साफ कपड़े पहनें और पूजा स्थल को गंगा जल से शुद्ध करें. घर के मंदिर में दीपक-धूप जलाएं और भगवान भैरव देव की पूजा करें. काल भैरव के साथ ही सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा भी करें. भगवान को भोग लगाएं और अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगें. इसके साथ ही पूजा में शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र का पाठ करें.


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शिव रुद्राष्टकम स्तोत्र
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्

निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्

करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा

चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं

त्रय: शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्

कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी

चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी

न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं

न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्

जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये 
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति

(Disclaimer: हमारा लेख केवल जानकारी प्रदान करने के लिए है. ये जानकारी समान्य रीतियों और मान्यताओं पर आधारित है.) 

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