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Sawan Shiv Temple: नदी में बहकर आई थी यह पंचमुखी महादेव की प्रतिमा, जानिए इतिहास

Panchmukhi shiv Temple: अयोध्या और हिमाचल प्रदेश में पंचमुखी महादेव की प्रतिमा है, ये कोई आम प्रतिमा नहीं, इसमें ब्रह्मा, विष्णु महेश का स्वरूप है, आईए जानते हैं इसके महत्व के बारे में

Sawan Shiv Temple: नदी में बहकर आई थी यह पंचमुखी महादेव की प्रतिमा, जानिए इतिहास
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डीएनए हिंदी: सावन (Sawan 2022) में शिव के भक्त शिवलिंग (Shivling) के दर्शन करने के लिए दूर दूर तक जाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पंचमुखी महादेव (Panchmukhi Mahadev Temple) के मंदिर की बहुत महिमा है. आज हम आपको दो ऐसे मंदिर बताएंगे जो पंचमुखी महादेव के मंदिर नाम से प्रचलित हैं. एक अयोध्या (Ayodhya) में है और दूसरा देवभूमि हिमाचल प्रदेश (HimachalPradeh) के मंडी में है. दोनों ही मंदिर में भगवान शिव की पंचमुखी प्रतिमा है जो ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों  स्वरूपों के दर्शन कराती है.

अयोध्या में है पंचमुखी महादेव  

सरयु नदी के पास स्थित अयोध्या में पंचमुखी महादेव का मंदिर है, जो (Panchmukhi Mahadev Temple) लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है. पंचमुखी महादेव मंदिर में मुखलिंग मौजूद है.आकृति वाले शिवलिंग को मुखलिंग के नाम से जाना जाता है.ऐसा माना जाता है कि यह मुखलिंग लगभग 2000 वर्ष पुराना है.मौजूदा महादेव मंदिर पुरानी छोटी लखौरी ईटों का बना हुआ है,यह लगभग 250 वर्ष पुराना है.

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सावन के महीने में शिव के भक्त इस मंदिर के दर्शन करने जरूर जाते हैं. वहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है. पंचमुखी महादेव मंदिर (Panchmukhi Mahadev Temple) में भगवान शिव के तीन स्वरूपों की उपासना की जाती है.भगवान शिव ही ऐसे आराध्य हैं जिनकी उपासना से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.पंचमुख सृष्टि की रचना के पांच तत्व अग्नि,वायु,आकाश, पृथ्वी और जल का प्रतीक है.पंचमुखी महादेव मंदिर (Panchmukhi Mahadev Temple) के शिवलिंग में पांच मुख हैं, जो पंचास्य उपासना के पांच नामों को अभिव्यक्त करते हैं.

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मंडी में नदी में बहकर आई थी पंचमुखी प्रतिमा 


दूसरा पंचमुखी मंदिर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के जोगिंदरनगर से लगभग 33 किलोमीटर दूर लांगणा गांव में स्थित है. यहां पर भी पंचमुखी महादेव का मंदिर है. यहां पर भी शिव की पंचमुखी प्रतिमा में तीनों स्वरूपों के दर्शन होते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मंदिर 150 साल पुराना है, यह प्रतिमा नदी में बहकर आई थी और उसके बाद इसे पीपल के पेड़ के नीचे स्थापित कर दिया गया. इसकी प्रतिमा काफी भारी थी इसलिए कई लोगों को मिलकर उसे उठाना पड़ा और फिर इसकी स्थापना की गई 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 

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