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Sanyas Yog: कुंडली में ऐसे योग के कारण व्यक्ति बन जाता है संन्यासी, जानें कौन से ग्रह करते हैं प्रभावित

Sanyas Yog: कई लोग भगवान के पूजा-पाठ से लेकर वेदों पुराणों के ज्ञान तक ही सीमित रहते हैं वहीं बहुत से लोग संसार सुख को त्याग कर संन्यासी बन जाते हैं.

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Sanyas Yog: कुंडली में ऐसे योग के कारण व्यक्ति बन जाता है संन्यासी, जानें कौन से ग्रह करते हैं प्रभावित

प्रतीकात्मक तस्वीर

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डीएनए हिंदीः सभी लोगों में भक्ति भाव अवश्य होता है कई लोगों का भक्ति भाव सिर्फ मंदिर में भगवान के दर्शन तक ही होता है. जबकि कई लोग वेदों और पुराणों में भी रुचि रखते हैं और इन्हें पढ़ते हैं. हिंदू वैदिक ज्योतिष शास्त्र (Jyotish Shastra) में कई ऐसे सूत्र बताएं गए हैं जिनसे यह जान सकते हैं कि व्यक्ति की आध्यात्म में कितनी रुचि होगी. जहां कई लोग भगवान के पूजा-पाठ से लेकर वेदों पुराणों के ज्ञान तक ही सीमित रहते हैं वहीं बहुत से लोग संसार सुख को त्याग कर संन्यासी (Sanyas Yog) बन जाते हैं. आज हम आपको इस संन्यासी योग (Sanyas Yog) के बारे में बताएंगे. आखिर किन ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति संन्यासी बनता है.

1. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में दूसरा भाव परिवार का होता है. वहीं चौथा भाव मां को तो पत्नी का सप्तम भाव होता है. व्यक्ति जीवन भर इन्हीं भाव से बंधकर रहता है. हालांकि इन भावों पर शनि व केतु का प्रभाव अधिक हो तो जातक घर छोड़कर संन्यासी बन जाता है.

2. कुंडली में लग्न व्यक्ति का शरीर होता है और उसका मन चंद्र होता है. ऐसे में लग्न व चंद्र भाव पर केतु का प्रभाव होने से व्यक्ति को सामान्य से हटकर सोचने की बुद्धि देता है.

3. कुंडली में लग्न भाव का स्वामी मंगल, गुरु व शुक्र हो व शनि की दृष्टि हो. ऐसे में व्यक्ति तीर्थ यात्रा करता है और अचानक से संन्यास लेता है.

4. व्यक्ति की कुंडली में दशम भाव का स्वामी चार बलवान हो तो ऐसे में जातक राजा की तरह अमीर होने के बाद भी सब त्याग कर संन्यास ले लेता है.

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5. कुंडली में नवम भाव का स्वामी बलवान व पंचम भाव में विराजमान हो और शुक्र ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति अच्छा मंत्र ज्ञाता होता है.

6. शुक्र का बलवान योग कुंडली के अष्टम व दशम भाव पर बन रहा हो तो व्यक्ति आधुनिक होने के बाद भी मंत्र ज्ञाता व समझदार होता है.

7. केतु और गुरु ग्रह को मोक्ष का कारक माना गया है. कुंडली में यात्रा, कष्ट व हानि के लिए द्वादश भाव को जिम्मेदार माना जाता है. शनि व केतु ग्रह द्वादश भाव में जातक से तपस्या करवाते हैं. यह लोग धन को छोड़कर संन्यासी बन जाते हैं. 

8. जातक की कुंडली में सूर्य, शनि और गुरु ग्रह अष्टम भाव में हो व इस भाव में कोई भी ग्रह अस्त न हो. ऐसी कुंडली वाला जातक मंदिरों का निर्माण करवाता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. डीएनए हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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