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इंग्लैंड-मलेशिया के वर्चस्व को भारत ने गोल्ड कोस्ट में तोड़ा था, अब बर्मिंघम में दबदबा जारी रखेगी बैडमिंटन टीम

भारतीय बैडमिंटन को राष्ट्रमंडल खेलों का पहला पदक साल 1966 में दिनेश खन्ना ने दिलाया था. तब से लेकर अब तक भारत ने 7 गोल्ड सहित 25 पदक जीत लिए हैं.

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भारतीय बैडमिंटन टीम

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डीएनए हिंदी: साल 1966 में पहली बार बैडमिंटन को राष्ट्रमंडल खेलों में शामिल किया गया था. तब से लेकर अब तक बैडमिंटन लगातार खेलों का हिस्सा रहा है. इंग्लैंड इस खेल में सबसे सफल देश रहा है, जिसने अभी तक 37 गोल्ड सहित 109 पदक जीते हैं. इस मामले में दूसरे स्थान पर मलेशिया और तीसरे स्थान पर भारत है. भारत ने अब तक 7 गोल्ड सहित 25 पदक जीते हैं. पहली बार जब जमैका में बैडमिंटन को कॉमनवेल्थ गेम्स में शामिल किया गया था, तब सभी स्पर्धाओं का मिलाकर मलेशिया ने दो गोल्ड, दो सिल्वर और एक कांस्य पदक जीता था, तो इंग्लैंड ने तीन स्वर्ण दो रजत और दो कांस्य पदक जीता था.

दिनेश खन्ना ने दिलाया था भारत को पहला पदक

भारत के लिए बैडमिंटन का पहला पदक दिनेश खन्ना ने कांस्य के रूप में जीता था. उस साल भारत ने तीन गोल्ड, चार सिल्वर और तीन कांस्य पदक के साथ पदक तालिका में 9वां स्थान हासिल किया था. तब से लेकर अब तक भारत ने बैडमिंटन में 7 गोल्ड जीते, 7 सिल्वर और 11 कांस्य पदक जीते हैं. भारत साल 2018 में आयोजित गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स में इंग्लैंड और मलेशिया का वर्चस्व तोड़ते हुए सबसे आगे रहा था. भारत ने यहां 6 पदक जीते थे, जिसमें 2 गोल्ड, तीन सिल्वर और एक कांस्य पदक शामिल था.

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इंग्लैंड ने 2 गोल्ड, दो सिल्वर और दो कांस्य पदक जीता था. जबकि मलेशिया ने दो गोल्ड के साथ 5 पदक जीतने में सफल रहा था. ऐसा पहली बार हुआ था जब भारत बैडमिंटन में सबसे आगे रहा था. इससे पहले 1966 से लेकर 194 तक इंग्लैंड का दबदबा रहा था, तो 1998 से 2014 तक मलेशिया का दबदबा देखने को मिला था. साल 2018 में भारत ने दोनों देशों के वर्चस्व को तोड़कर शीर्ष स्थान हासिल किया था. भारत ने गोल्ड कोस्ट में मिक्स्ड टीम इवेंट और वूमेंस सिंगल्स का गोल्ड अपने नाम किया था.

सिंधु-साइना के बीच हुआ था फाइनल

जबकि मेंस सिंगल्स और वूमेंस सिंगल्स का सिल्वर भारत के नाम रहा था. मेंस डबल्स का सिल्वर भी भारत के चिराग शेट्टी और सात्विकसाइराज रंकिरेड्डी ने जीता था. वूमेंस डबल्स का कांस्य भारत की अश्विनी पोनप्पा और एन सिक्की रेड्डी ने जीता था. ये वही संस्करण हैं, जहां पीवी सिंधु और साइना नेहवाल वूमेंस सिंगल्स के फाइनल में आमने-सामने थीं. हालांकि इस बाद साइना खेलों के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई हैं. लेकिन भारतीय बैडमिंटन टीम अपने दबदबे को कायम रखने में सक्षम है.

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