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UP Election: क्या बागी विधायक-मंत्री बढ़ाएंगे BJP की सियासी टेंशन, क्या कहता है सियासी गणित?

इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की तरह देश के नेता भी हर चुनाव से पहले अपनी राजनीतिक प्रयोगशालाओं में नए सूत्र बनाते हैं.

UP Election: क्या बागी विधायक-मंत्री बढ़ाएंगे BJP की सियासी टेंशन, क्या कहता है सियासी गणित?

CM Yogi with PM Narendra Modi. (Photo Credit- @BJP/Twitter)

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डीएनए हिंदी: उत्तर प्रदेश राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग का दबदबा रहता है. नेता हर चुनाव से पहले सोशल इंजीनियरिंग करते हैं. कुछ नेता राजनीतिक प्रयोगशालाओं में चुनाव जीतने के सूत्र बनाते हैं. वे हर समय चुनावी गणित की गणना करते रहते हैं. जिस तरह हमारे देश के इंजीनियर और वैज्ञानिक फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स के फॉर्मूले बनाते हैं, उसी तरह  देश के नेता भी हर चुनाव से पहले अपनी राजनीतिक लैब में नए फॉर्मूले बनाते हैं.

उत्तर प्रदेश (UP) में पिछले तीन दिनों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के तीन मंत्रियों सहित आठ विधायकों ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने जातिगत समीकरण के आधार पर पार्टी से इस्तीफा दिया है. ये सभी दिग्गज ओबीसी नेता हैं. पांच साल मंत्री और विधायक रहने के बाद अब इन नेताओं को लगता है कि उनकी जातियों के साथ अन्याय हुआ है. अब वे एक नई तरह की सोशल इंजीनियरिंग करना चाहते हैं.

बड़ा सवाल यह है कि विधायकों और मंत्रियों के जाने से बीजेपी को कितना नुकसान होगा और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (SP) को कितना फायदा होगा. अगर मजाकिया लहजे में कहें तो इन विधायकों के जाने से बीजेपी को उतना ही नुकसान होगा, जितना रात के कर्फ्यू से कोरोना वायरस को नुकसान होगा.' इस्तीफों के दौर के बीच कुछ बड़े सवाल सामने आए हैं-

1. मंत्रियों और विधायकों के बीजेपी छोड़ने की असली वजह क्या है?
2. इससे बीजेपी को कितना नुकसान हो सकता है और अखिलेश यादव को कितना फायदा हो सकता है?
3. इस दलबदल से यूपी की जनता क्या हासिल करेगी? मतदाताओं को कितना फायदा होगा?

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4 दिन में 8 विधायकों के इस्तीफे, 3 मंत्रियों ने छोड़ी पार्टी

उत्तर प्रदेश में बीते 4 दिनों बीजेपी के 8 विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं. इनमें से तीन नेता योगी सरकार में मंत्री थे. तो, यह कोई मामूली दलबदल नहीं है. एक और बात यह है कि बीजेपी छोड़ चुके आठ विधायकों में से 7 ओबीसी और एक दलित वर्ग से आते हैं.

क्या होती है सोशल इंजीनियरिंग?

सियासी दलबदल के पीछे सोशल इंजीनियरिंग का भी हाथ हो सकता है. सोशल इंजीनियरिंग शब्द का प्रयोग राजनीति में तब किया जाता है जब उनके समाज के नेताओं को चुनाव में एक विशेष धर्म, जाति और समुदाय के मतदाताओं को एकजुट करने का मौका दिया जाता है. आसान भाषा में कहें तो एक गांव में कुल पांच मतदाता अगर हों, जिनमें से तीन एक विशेष धर्म या जाति के शख्स को टिकट दे दिया जाए. ऐसे में सियासी फायदा मिलना तय है. यह एक सामान्य गणित है जिस पर पूरी राजनीति चलती है.

जिस तरह देश के युवा कॉलेज जाते हैं और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते हैं, उसी तरह देश के नेता समाज में लोगों के बीच रहते हैं और जातियों की इंजीनियरिंग करते हैं. अगर आपको लगता है कि इन मंत्रियों और विधायकों ने बीजेपी छोड़ दी है क्योंकि वे सरकार और पार्टी में अपनी जातियों की उपेक्षा से नाराज थे तो आप गलत हो सकते हैं. दरअसल कई दूसरे कारण हैं जो इस्तीफे की वजह बन रहे हैं.

ज्यादातर नेताओं का कट रहा था टिकट

ज्यादातर नेताओं के टिकट कटने वाले थे. बीजेपी ऐसा करे उससे पहले ही उन्होंने बीजेपी को छोड़ दिया. नेता हर चुनाव में दल बदलते हैं लेकिन अक्सर यह प्रवृत्ति तब देखी जाती है जब कोई पार्टी उम्मीदवारों की सूची जारी करती है. वहीं बीजेपी ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी नहीं की थी. यानी इन नेताओं को खबर मिली थी, इस बार इन्हें टिकट नहीं मिलने वाला है. बीजेपी छोड़ने के पीछे ये सबसे बड़ी वजह थी.

आपने प्रवासी पक्षियों के बारे में तो सुना ही होगा जो मौसम के हिसाब से अपना ठिकाना बदल लेते हैं. चुनाव के दौरान पार्टी बदलने वाले नेताओं को प्रवासी पक्षी भी कह सकते हैं. ये मौसम और हवा के हिसाब से अपना ठिकाना भी बदलते रहते हैं. इन नेताओं को टिकट नहीं मिलने का खतरा था क्योंकि वे उत्तर प्रदेश में वर्तमान जाति संयोजन में फिट नहीं होते हैं. इस बार मुस्लिम और यादव वोट बैंक एकजुट है. जानकार दावा कर रहे हैं कि यह वोट बैंक अलग-अलग पार्टियों में नहीं बंटेगा. 

मुस्लिम-यादव समीकरण को भुनाने की कोशिश

उत्तर प्रदेश में 18 फीसदी मुस्लिम मतदाता और 10 फीसदी यादव मतदाता हैं जिन्हें यूपी की राजनीति में एम-वाई फैक्टर MY Factor) के रूप में भी जाना जाता है. मुस्लिम-यादव समीकरण का मुख्य अभियंता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को माना जाता है न कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को. उन्होंने अपने राज्य में मुस्लिम, यादव वोट बैंक इंजीनियरिंग करके सरकारें बनाई थीं. बाद में इस फॉर्मूले का इस्तेमाल दूसरे राज्यों में किया गया.

स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ था सियासी गणित!

उत्तर प्रदेश में अब तक यही रुझान देखने को मिला था कि मुस्लिम और यादव वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा 3 प्रमुख पार्टियों के बीच बंट गया था. एक है अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी, दूसरी है मायावती की बहुजन समाज पार्टी और तीसरी है कांग्रेस. लेकिन चुनावी पंडितों का मानना है कि इस बार उत्तर प्रदेश में इस 28 फीसदी वोट बैंक का बड़ा हिस्सा एकजुट रहेगा और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को समर्थन देगा. यही एक बड़ी वजह है कि तीन दिन में आठ विधायक बीजेपी छोड़ गए. स्वामी प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश में पड़रौना विधानसभा सीट से 3 बार विधायक रहे हैं. 2 बार बसपा से और 1 बार बीजेपी से.  माना जा रहा है कि इस बार बीजेपी में रहते हुए इस सीट से चुनाव लड़ने पर उन्हें डर था कि कहीं वो हार न जाएं क्योंकि इस बार जातिगत समीकरण उनके खिलाफ हैं.

क्या कहता है पड़रौना विधानसभा का समीकरण?

पड़रौना विधानसभा सीट पर यादव, मुस्लिम और अन्य जातियों के 27% मतदाता हैं, जो समाजवादी पार्टी के पारंपरिक मतदाता माने जाते हैं. साथ ही ब्राह्मण वोटरों की संख्या 19 फीसदी है, जो उनसे नाराज माने जाते हैं. यानी स्वामी प्रसाद मौर्य कुल 46% मतदाताओं के बिखरने का जोखिम नहीं लेना चाहते थे इसलिए उन्होंने बीजेपी छोड़ दी.

2017 के चुनाव में भी उन्हें इस खतरे का सामना करना पड़ रहा था. शायद इसीलिए उन्होंने उस समय बहुजन समाज पार्टी (BSP) छोड़कर बीजेपी से चुनाव लड़ा था. फिर बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नाम पर चुनाव जीता. यानी जातियों का समीकरण था. यहां मोदी फैक्टर भी काम कर रहा था. आप कह सकते हैं कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने 2017 के खाके पर ही बीजेपी छोड़ने का फैसला किया है.

क्यों दारा सिंह ने छोड़ी BJP?

ऐसा ही बातें योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान के बारे में भी कहा जा रहा है. उनकी सीट पर यादव समुदाय के 60,000 और मुस्लिम समुदाय के 22,000 मतदाता हैं. अगर इन्हें मिला दिया जाए तो ये वोट 82,000 हो जाते हैं. अगर दारा सिंह को ये वोट नहीं मिले तो उनके लिए चुनाव जीतना मुश्किल हो जाएगा. दारा सिंह चौहान मधुबन की जगह घोसी से टिकट मांग रहे थे और बीजेपी ने उन्हें टिकट देने से साफ इनकार कर दिया था. जिसके चलते उन्होंने बीजेपी छोड़ दी.

क्यों धर्म सिंह सैनी ने किया किनारा?

जिस नकुड़ विधानसभा सीट से बीजेपी छोड़ रहे मंत्री धर्म सिंह सैनी विधायक हैं, वह मुस्लिम बहुल सीट है. इस सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटरों की संख्या 1.30 लाख है. धर्म सिंह सैनी को डर था कि अगर इनमें से आधे वोट भी सीधे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को गए तो उनकी हार तय है. इसी वजह से उन्होंने अपनी सीट बचाने के लिए बीजेपी छोड़ दी. एक और बात यह है कि खबरें हैं कि बीजेपी नेताओं ने पहले ही साफ कर दिया था कि वे इस बार उन्हें टिकट नहीं देंगे. 2017 का चुनाव धर्म सिंह सैनी ने महज 4,000 मतों के अंतर से जीता था. वे अपनी ताकत का प्रदर्शन ऐसे करते हैं जैसे पिछड़ी जाति के करोड़ों मतदाता उनकी मुट्ठी में हों और वे उनके कहने पर किसी भी पार्टी के साथ जाएंगे.

क्या है मंत्रियों के इस्तीफे का राज?

स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी योगी सरकार में मंत्री थे. तीनों पिछड़ी जातियों से आते हैं. ये तीनों 2017 के चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल हुए थे और तीनों ने इस्तीफे के लिए एक ही भाषा इस्तेमाल की है. इन्हें पढ़कर लगता है कि इन तीनों इस्तीफे में एक ही स्क्रिप्ट राइटर हैं. पहले तो इन नेताओं ने या तो भाजपा छोड़ दी क्योंकि उन्हें डर था कि पार्टी उन्हें टिकट नहीं देगी. या वह दूसरी पार्टी में चले गए क्योंकि उन्हें लगा कि वह बीजेपी में रहकर मतदाताओं के बीच एक जातीय संतुलन नहीं बना पाएंगे. यानी इन नेताओं ने अपनी सीटें बचाने के लिए बीजेपी छोड़ दी.

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