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100 साल पूरे करने वाली देश की दूसरी पॉलिटिकल पार्टी बनी Shiromani Akali Dal, जानें इतिहास

Shiromani Akali Dal: अकाली दल की स्थापना 14 दिसंबर 1920 को हुई थी. सरमुख सिंह झबाल शिअद के पहले प्रधान थे.

100 साल पूरे करने वाली देश की दूसरी पॉलिटिकल पार्टी बनी Shiromani Akali Dal, जानें इतिहास

शिरोमणि अकाली दल ने 100 साल का राजनीतिक सफर पूरा कर लिया है.

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डीएनए हिंदीः  गुरुद्वारों को महंतों के कब्जे से छुड़वाने और अंग्रेजों से देश को आजादी दिलाने के अहम भूमिका निभाने वाला शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) देश का दूसरा ऐसा राजनीतिक दल बन गया है जिसने भारत में अपना 100 साल का राजनीतिक सफर पूरा कर लिया है. इससे पहले सिर्फ कांग्रेस (Congress) ही देश में ऐसी पार्टी है जिसने सौ साल से ज्यादा का राजनीतिक सफर पूरा किया है. शिरोमणि अकाली दल ने अपने इस सौ सालों के लंबे सफर में कई राजनीतिक बदलाव देखे हैं. कई बार वैचारिक तौर पर इसमें बदलाव दिखे तो कई बार पार्टी को टूट का सामना भी करना पड़ा. 

क्यों हुई स्थापना  
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सहयोग और सिखों की आवाज बनकर समुदाय के मुद्दे सरगर्मी से उभारने के लिए अकाली दल की स्थापना 14 दिसंबर 1920 को  को हुई थी. सरमुख सिंह झबाल शिअद के पहले प्रधान थे. उस समय देश अंग्रेजों का गुलाम था. 7 जुलाई 1925 को गुरुद्वारा बिल लागू होने के बाद अकाली दल आजादी की लड़ाई में शामिल हो गया. दरअसल 1925 में गुरुद्वारा एक्ट बनाकर सभी ऐतिहासिक गुरुद्वारों का रखरखाव शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को दे दिया गया. महात्मा गांधी ने इस जीत को आजादी की लड़ाई की पहली जीत बताया था. 

पार्टी ने देखे कई बदलाव
1920 में जब इस पार्टी की स्थापना की गई तो इसे पंथक हितों की लड़ाई लड़ने वाली पार्टी माना जाता था. 1996 में मोगा कांफ्रेंस में इसमें कुछ बदलावों को लेकर चर्चा हुई. पार्टी ने अपनी पुरानी छवि से बाहर निकलने के लिए विचार किया. इस कांफ्रेंस में पार्टी ने सैद्धांतिक तौर पर बड़ा बदलाव करते हुए शिरोमणि अकाली दल को पंथक पार्टी से सेकुलर पार्टी के रूप में बदल लिया. पार्टी के इतिहास के हिसाब से यह सबसे बड़ा बदलाव था. दरअसल 1978 से लेकर 1995 तक पंजाब में अगर किसी चीज की सबसे बड़ी कमी देखी गई तो वह हिंदू और सिखों के बीच आपसी सौहार्द था. पहले इमरजेंसी, बाद में 1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की मौत के बाद सिख कत्लेआम. दोनों ही घटनाओं ने आपसी द्वेष का काफी बढ़ाया.  

SAD का सियासी सफर
1920 में पार्टी की स्थापना के बाद अकाली दल ने अपना सियासी सफर 1937 में शुरु किया. प्रोविंशियल चुनाव में शिअद ने 10 सीटें जीत ताकत अहसास कराया था. 1992 तक बीजेपी और अकाली दल अलग-अलग चुनाव लड़ती थी. इसके बाद दोनों ने साथ आने का फैसला लिया. 1996 में अकाली दल ने 'मोगा डेक्लरेशन' पर साइन किया और 1997 में बीजेपी के साथ पहली बार चुनाव लड़ा. दोनों अकाली दल और बीजेपी की दोस्ती लगातार चलती रही लेकिन किसान आंदोलन के बाद अकाली दल मोदी कैबिनेट से बाहर हो गया. यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि पंजाब में अकाली दल एकमात्र ऐली पार्टी है जिसने लगातार दो बार चुनाव जीता है. हालांकि 2017 के चुनाव में पार्टी की बड़ी हार हुई. पार्टी ने 117 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 15 सीटों पर ही सिमट गई. पार्टी को इतनी भी सीटें नहीं मिली कि वह विपक्षी दल का तमगा अपने पास रख सके. 

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