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DNA Explainer: इस कंपनी का दावा अब इंसान हो सकता है अमर!

एल्कोर क्रायोनिक्स ने दावा किया है कि मौत के बाद एक विशेष फ्रीजिंग प्रॉसेस के बाद शरीर में जीवन वापस लाया जा सकता है.

DNA Explainer: इस कंपनी का दावा अब इंसान हो सकता है अमर!

(फोटो सोर्स: Pixabay/प्रतीकात्मक)

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डीएनए हिंदी: मनुष्य नश्वर प्राणी है. जीवन और मृत्यु मानव जीवन चक्र का एक हिस्सा है. धर्मग्रंथों से लेकर विज्ञान तक इसे मानता है जो व्यक्ति जन्म लेता है उसे मरना भी होता है.  अमर कोई नहीं होता है. हालांकि कुछ वैज्ञानिक लगातार प्रयोग करते रहते हैं कि कैसे अमरता हासिल की जाए?  क्या वाकई किसी के लिए हमेशा जिंदा रहना संभव है? यह दावा स्कॉट्सडेल एरिज़ोना स्थित फर्म एल्कोर क्रायोनिक्स ने किया है. उन्नत विज्ञान और टेक्नोलॉजी के इस नए युग में वैज्ञानिकों का कहना है कि वे जब तक चाहें मनुष्य को 'जीवित' रख सकते हैं.

कंपनी के ब्रिटिश चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर मैक्स मोर ने दावा किया है कि जीवित रहने की प्रक्रिया वास्तव में ज्यादातर लोगों के लिए काफी किफायती है. उन्होंने कहा है कि ज्यादातर लोग सोचते हैं कि मेरे पास इस काम के लिए 80,000 अमेरिकी डॉलर या 2,00,000 अमेरिकी डॉलर नहीं हैं लेकिन ऐसा करना उनके लिए फायदेमंद साबिह हो सकता है.

क्या होगी अमरता की प्रक्रिया?

एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक एल्कोर क्रायोनिक्स कंपनी ने दावा किया है कि मृत्यु के बाद एक स्पेशल फ्रीजिंग प्रॉसेस के जरिए शरीर को वापस जीवित किया जा सकता है. कंपनी का दावा है कि कानूनी तौर पर मृत शरीरों और दिमागों को मृत्यु के बाद तरल नाइट्रोजन में पुनर्जीवित करने और उन्हें पूर्ण स्वस्थ शरीर में डालने के लिए फॉर्मूले की खोज की गई है. एल्कोर क्रायोनिक्स कंपनी का दावा है कि यह नई तकनीक भविष्य में मौत के बाद इंसानों को फिर से जिंदा करने की ताकत रखेगी.

एल्कोर क्रायोनिक्स के अनुसार, शव को पूरी सुरक्षा में रखने की लागत 200,000 अमरीकी डालर है जो लगभग 1,49,99,900 रुपये है. वहीं, व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसका सालाना खर्च 705 अमेरिकी डॉलर यानी करीब 52,874 रुपये होता है. न्यूरो-रोगी के लिए यह लागत 80,000 अमेरिकी डॉलर है. भारतीय करेंसी में जिसकी कीमत 59,99,960 रुपये है. न्यूरो पेशेंट इस तकनीक के जरिए अपने मस्तिष्क को सुरक्षित रख सकते हैं.

अन्य प्रयोग क्या कहते हैं?

अमर रहने का प्रयोग नया नहीं है. दुनियाभर में अलग-अलग कंपनियों और वैज्ञानिकों द्वारा इस तरह के प्रयोग होते रहे हैं. मौत पर भी अलग-अलग तरह की चर्चाएं होती है. कुछ का मानना है कि पेशेंट पूरी तरह से नहीं मरता. ऐसे में एक सवाल यह भी पैदा होता है कि क्या बायोलॉजिकल डेथ और क्लिनिकल डेथ अलग-अलग चीजे हैं? दरअसल दोनों का मतलब है कि रोगी तकनीकी रूप से मर चुका होता है लेकिन हर शब्द एक अलग स्तर की स्थायित्व को दर्शाता है. एक स्थिति में शख्स को ठीक किया जा सकता है दूसरे में नहीं. 

क्लिनिकल डेथ

क्लिनिकल डेथ जिसमें सांस लेना और रक्त प्रवाह बंद हो जाता है. यह कार्डियक अरेस्ट की तरह ही है जिसमें दिल धड़कना बंद कर देता है और खून बहना बंद हो जाता है. क्लिनिकल डेथ रिवर्सिबल है. शोधकर्ताओं का कहना है कि कार्डियक अरेस्ट के वक्त से लेकर सीरियर ब्रेन डैमेज तक 4 मिनट का समय होता है. अगर ऐसी स्थिति में यदि रक्त प्रवाह (Blood Flow) को नियमित किया जा सकता है तो जिंदगी बचाई जा सकती है. इसके लिए दो विकल्प होते हैं. कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (CPR) और हार्ट पंपिंग के जरिए मदद दी जा सकती है.  

बायोलॉजिकल डेथ

बायोलॉजिकल डेथ की स्थित में जिंदगी नहीं बचाई जा सकती है. यह मौत अपरिवर्तनीय है. ब्रेन डेड की स्थिति में शरीर को जिंदा रखा जा सकता है लेकिन इस दौरान हृदय बिना दिमाग के निर्देशों के काम करता है इसलिए कई प्रक्रियाएं बाधित हो जाती हैं. कितने दिनों तक दिमागी तौर पर मृत शरीर को रखा जा सकता है यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है.

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