डीएनए एक्सप्लेनर
Bihar School Holidays List: बिहार सरकार ने समाज को एकसूत्र में पिरोने का माध्यम मानी जाने वाली स्कूली शिक्षा को भी धार्मिक बंटवारे में उलझा दिया है. स्कूल की छुट्टियों के सरकारी कैलेंडर पर शुरू हुए विवाद का डीएनए पेश करती ये रिपोर्ट.
डीएनए हिंदी: Bihar News- ऐसा माना जाता है कि जो समाज, एकसूत्र में पिरोया हुआ होता है, वो विकास के पथ पर समान रूप से आगे बढ़ता है. वैसे, माना तो ये भी जाता है कि हमारे देश में सभी धर्मों के लिए कुछ नियम समान रूप से लागू हैं. अब आप छुट्टियों को ही ले लीजिए, 15 अगस्त,26 जनवरी या 2 अक्टूबर को समान रूप से पूरे देश में छुट्टियां होती हैं, लेकिन बिहार सरकार ने बच्चों की छुट्टियों को लेकर एक ऐसा कैलेंडर जारी किया है, जो उन्हें ये सिखाता है कि वो विद्यार्थी नहीं है, बल्कि वो हिंदू, मुस्लिम, सिख और ईसाई हैं. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने इस बार बच्चों की छुट्टियों के कैलेंडर को हिंदू और मुसलमान में बांट दिया है. उनकी नजर से देखें तो ये सामाजिक सद्भाव का अतुलनीय प्रयोग है, लेकिन इन कैलेंडर्स ने विवाद खड़ा कर दिया है. विवाद ये कि आखिर स्कूलों की छुट्टियों को हिंदू-मुस्लिम के रंग में क्यों रंगा गया है?
27 नवंबर को जारी हुआ है विवादित कैलेंडर
बिहार सरकार ने 27 नवंबर की तारीख को स्कूलों की छुट्टियों का वर्ष 2024 वाला कैलेंडर जारी किया था. इस कैलेंडर में छुट्टियों की संख्या 60 ही थी, लेकिन कई हिंदू त्योहारों की छुट्टियों को लिस्ट से गायब कर दिया गया था. इसको लेकर काफी विवाद हुआ. विवाद ये था कि आखिर हिंदू त्योहारों की छुट्टियों को लिस्ट से गायब क्यों कर दिया गया? इस लिस्ट में 22 ऐसे त्योहारों का जिक्र है, जिनपर छुट्टियों का ऐलान किया गया है. इस लिस्ट में अगर आप गौर करें तो महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, तीज और जिउतिया जैसे त्योहारों को गायब कर दिया गया है. इसी वजह से बिहार में हंगामा हो गया है. बिहार सरकार पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगने लगा.
सरकार ने दी है इसे लेकर यह सफाई
छुट्टियों को लेकर होने वाले विरोध को देखते हुए, बिहार सरकार ने इस को लेकर एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें सरकार ने बताया कि मीडिया में छुट्टियों का जो कैलेंडर जारी किया जा रहा है, वो केवल उर्दू स्कूलों के लिए है. बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के मुताबिक, उन्होंने वर्ष 2024 के लिए दो अलग-अलग छुट्टियों के कैलेंडर जारी किए हैं. छुट्टियों के इन दोनों कैंलेडर्स को अधिसूचना संख्या 2,693 और 2,694 के तौर पर एक ही दिन यानी 27 नवंबर को जारी किया गया था. बिहार सरकार के शिक्षा विभाग का कहना है कि त्योहारों को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है.
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग की तरफ से दो कैलेंडर जारी करने वाली बात ठीक है. हमारे पास स्कूलों की छुट्टियों को लेकर जारी किए गए दोनों कैलेंडर मौजूद हैं. लेकिन अब सवाल ये है कि आखिर बिहार सरकार को अपने यहां के स्कूलों के लिए छुट्टियों के अलग-अलग कैलेंडर जारी क्यों करने पड़े हैं.
हम बारी-बारी से छुट्टियों के सामान्य कैलेंडर और उर्दू स्कूल कैलेंडर का विश्लेषण करेंगे. ये विश्लेषण आज बहुत जरूरी है, क्योंकि बच्चों के दिमाग में बचपन से ही हिंदू-मुस्लिम के बीच फर्क करने वाली बात डालना, गलत है.
अधिसूचना संख्या 2,693 के कैलेंडर में है ये लिस्ट
सबसे पहले हम अधिसूचना संख्या 2,693 का कैलेंडर की बात करना चाहते हैं. इस कैलेंडर की अधिसूचना में ऊपर लिखा हुआ है कि ये सभी प्रकार के राजकीय, प्रारंभिक, माध्यमिक, उच्च माध्यमिक विद्यालयों के लिए जारी किए गए हैं यानी सामान्य रूप से छुट्टियों का ये कैलेंडर, सभी स्कूलों पर लागू होता है. इसमें बाकायदा त्योहारों की लिस्ट दी गई है. आप देखेंगे तो करीब 27 त्योहारों पर छुट्टियों का ऐलान किया गया है. इसमें लगभग सभी धर्मों के त्योहार हैं। इसमें बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि, होली, शब-ए-बारात, ईद, जन्माष्टमी जैसे त्योहारों पर छुट्टियों की घोषणा की गई है. हम आपका ध्यान कुछ खास छुट्टियों पर खींचना चाहते हैं-
हम आपको इन छुट्टियों के बारे में विशेष तौर पर इसलिए बता रहे हैं, क्योंकि सामान्य कैलेंडर में भले ही इन त्योहारों पर छुट्टियों का ऐलान किया गया है, लेकिन दूसरे कैलेंडर में इनमें से कई त्योहारों को हटा दिया गया है और कुछ त्योहारों पर छुट्टियों की संख्या बढ़ा दी गई है.
स्कूलों में सभी धर्मों के त्योहारों पर छुट्टियों हों, इसको ध्यान में रखा जाता है। फिर चाहे वो त्योहारा हिंदू धर्म से जुड़े हो, इस्लाम से जुड़े हो, सिख धर्म से जुड़े हो या फिर ईसाई धर्म से जुड़े हों. आमतौर पर स्कूलों में हर धर्म के बच्चे पढ़ते हैं और ये उनका हक है कि उनके परिवार में मनाए जाने वाले विशेष त्योहारों पर छुट्टियां हो, ताकि वो अपने परिवार के साथ त्योहार मना सकें. यही नहीं, हर धर्म के त्योहार पर सभी बच्चें मिल-जुलकर उसका आनंद ले सकें, इसलिए भी त्योहारों पर छुट्टियां रखी जाती हैं. शायद ये पहली बार है जब धर्म के आधार पर छुट्टियों के अलग कैलेंडर बनाए गए है.
अब छुट्टियों के दूसरे कैलेंडर की बात
हमने आपको बिहार के सामान्य स्कूलों की छुट्टियों के कैलेंडर के बारे में बताया है, जिसमें आपने ध्यान दिया होगा कि आमतौर पर सभी धर्म के त्योहारों पर छुट्टियों की घोषणा की गई है. लेकिन जैसे कि बिहार सरकार के शिक्षा विभाग की प्रेस विज्ञप्ति बताती है, कि उर्दू स्कूलों के लिए छुट्टियों का अलग कैलेंडर जारी किया गया था तो अब वक्त आ गया है कि हम उस कैलेंडर का भी विश्लेषण करें.
अधिसूचना संख्या 2,694 में भी छुट्टियों की लिस्ट जारी की गई है. इस अधिसूचना में भी ऊपर साफ-साफ लिखा है कि ये छुट्टियां, सभी प्रकार के राजकीय और अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त उर्दू स्कूलों के लिए हैं. इस लिस्ट में छुट्टियों के पहले कैलेंडर में शामिल 5 त्योहारों को हटा दिया गया है. उर्दू स्कूलों के लिए जारी नई लिस्ट में 22 त्योहारों को शामिल किया गया है. त्योहारों की उर्दू स्कूलों वाली लिस्ट की कुछ खास बातों पर हम आपका ध्यान खींचना चाहते हैं.
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने उर्दू स्कूलों से इन छुट्टियों को क्यों हटाया है? इसको लेकर अभी तक कुछ नहीं कहा गया है. सवाल ये उठ रहे हैं कि आखिर उर्दू स्कूलों की लिस्ट से महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी जैसे त्योहारों का महत्व क्यों खत्म किया गया है.
मुस्लिम तुष्टिकरण की ही झलक मिल रही इससे
छुट्टियों का अलग-अलग कैलेंडर, मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति के अलावा कुछ नहीं है. भले ही कि इस मामले में खुलकर बिहार सरकार के लोग कुछ ना कह रहे हों, लेकिन सच्चाई ये है कि ईद की छुट्टियों की संख्या बढ़ाने के लिए, और कुल छुट्टियों की संख्या 60 ही रखने के मकसद से, इस लिस्ट से हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्योंहारों को हटा दिया गया है.
हिंदू त्योहारों का उर्दू स्कूलों में मतलब नहीं तो ये त्योहार लिस्ट में क्यों?
बहुत से लोग बिहार सरकार के इस फैसले का स्वागत कर रहे होंगे, या ऐसे लोग, जो मानते हैं कि उर्दू स्कूलों में पढ़ने वालों को महाशिवरात्रि या जन्माष्टमी जैसे त्योहारों की छुट्टियों से कोई मतलब नहीं है. उनको हम छुट्टियों के कैलेंडर की कुछ खास छुट्टियों के बारे में और बताना चाहते हैं. क्या बिहार सरकार ये सोच रही है कि उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए हिंदू त्योहारों का कोई महत्व नहीं है. अगर ऐसा है तो क्या वो ये बता सकते हैं कि
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के मुताबिक, जो बच्चे महाशिवरात्रि की छुट्टियां शायद नहीं चाहते, वो नवरात्रि की सप्तमी की छुट्टी चाहते हैं, वो होली की छुट्टी चाहते हैं, छठ मनाते हैं. क्या उर्दू स्कूल जन्माष्टमी नहीं चाहता है, लेकिन दीपावली, क्रिसमस की छुट्टी चाहता है? ये वो सवाल हैं जिसका जवाब बिहार सरकार को देना चाहिए. उन्हें बताना चाहिए कि
स्कूल कोई भी हों, उनमें हर धर्म, वर्ग और जाति के बच्चे पढ़ते हैं. क्या बिहार सरकार उर्दू स्कूलों के लिए अलग छुट्टियों का कैलेंडर जारी करके, ये बताना चाहती है कि उर्दू स्कूलों में अन्य धर्मों के बच्चे नहीं पढ़ते. क्या उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले हिंदू बच्चों को महाशिवरात्रि या जन्माष्टमी का त्योहार मनाने का अधिकार नहीं है. बिहार सरकार की छुट्टियों वाली आधिकारिक लिस्ट से तो यही लगता है कि वो उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले हिंदू बच्चों के अधिकार छीन रहे हैं.
साप्ताहिक अवकाश को लेकर भी चल रहा है विवाद
बिहार में 2600 उर्दू स्कूल हैं। इन उर्दू स्कूलों के लिए छुट्टियों के अलग कैलेंडर पर तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप लग रहे हैं. हिंदू त्योहारों को हटाया जाना इसका एक उदाहरण है. यही नहीं, उर्दू स्कूलों में साप्ताहिक अवकाश को लेकर भी विवाद है. अधिसूचना संख्या 2694 में 12वें और 13वें पॉइंट में कुछ ऐसा लिखा है, जिससे ऐसा लग रहा है, जैसे बिहार में कुछ इलाकों की DEMOGRAPHY बदली है तो वहां के स्कूलों को बहुसंख्यक समुदाय के हिसाब से बदलने के आदेश दिए गए हैं.
क्या बिहार सरकार का शिक्षा विभाग, हिंदू बहुल क्षेत्र में बहुसंख्यक हिंदू आबादी के दबाव बजरंगबली के नाम पर मंगलवार को साप्ताहिक अवकाश घोषित करने की अनुमति दे सकता है? या फिर शिव जी के नाम पर सोमवार को साप्ताहिक अवकाश करने की अनुमति दे सकता है?
सर्वधर्म समभाव के आधार पर तय होनी चाहिए छुट्टियां
स्कूलों की छुट्टियां सर्वधर्म समभाव के आधार पर तय की जानी चाहिए. ऐसा नहीं है कि हिंदू बहुल स्कूल में ईद की छुट्टियां खत्म कर दी जाएं, क्योंकि वहां के हिंदू बहुल छात्र ईद नहीं मनाते या फिर ऐसा नहीं होना चाहिए कि अगर कोई सिख स्कूल है तो वहां के कैलेंडर से होली दिवाली की छुट्टी खत्म कर दी जाए या फिर ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि अगर कोई उर्दू स्कूल है तो वहां के कैलेंडर से हिंदू त्योहारों को नामोनिशान ही मिटा दिया जाए. आखिर बिहार सरकार का शिक्षा विभाग, सामान्य स्कूलों और उर्दू स्कूलों की छुट्टियों को लेकर धार्मिक भेदभाव क्यों कर रहा है? क्या प्रदेश के सभी स्कूलों के लिए एक जैसी छुट्टियां नहीं हो सकती हैं?
देश में छुट्टियों को लेकर हर अलग-अलग हैं नियम
पूरे देश में छुट्टियों को लेकर अलग-अलग तरह के नियमों का पालन होता है, जैसे वर्ष के तीन दिन ऐसे चुने गए हैं, जिस दिन सभी राज्यों के संस्थानों को छुट्टी घोषित करनी पड़ती है. ये नियम The National & Festival Holiday Act के तहत सभी पर लागू होते हैं.
Ministry Of Personnel Grievances & Pension केंद्रीय कर्मचारियों के लिए छुट्टियों की एक लिस्ट तैयार करता है. इसमें छुट्टियों की दो श्रेणियां होती हैं. जिसमें पहली है Gazetted List और दूसरी है Restricted List. दूसरी लिस्ट को वैकल्पिक छुट्टियों के तौर पर भी माना जाता है.
इस तरह देखें तो छुट्टियों को लेकर Gazetted List और Restricted List वाले त्योहारों को राज्य और संस्थान, अपने हिसाब से छुट्टियों के अपने कैलेंडर में शामिल करते हैं और जरूरत पड़ने पर अपने राज्य के विशेष त्योहारों या महापुरुषों की जयंती पर भी छुट्टियां घोषित कर लेते हैं. जहां तक जन्माष्टमी की बात है तो Gazetted List में भी इस त्योहार की छुट्टी निर्धारित हैं, लेकिन ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता है. जिसमें किसी राज्य ने किसी खास समुदाय से संबंधित शिक्षण संस्थानों के लिए इनको हटा दिया हो. यह उदाहरण पहली बार बिहार सरकार ही पेश कर रही है.
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