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Open Letter: Disqualify हुईं तो क्या हुआ, Paris Olympic में Vinesh Phogat का प्रदर्शन किसी Gold से कम नहीं है!

Paris Olympic 2024 के  Wrestling Finals से Vinesh Phogat को डिसक्वालिफाई होने के बावजूद तमाम भारतीयों को इस खिलाड़ी पर गर्व करना चाहिए. आज भले ही नियमों के आधार पर विनेश Olympic Gold से चूक गयीं हों लेकिन बहुत कुछ है, जो बतौर खिलाड़ी विनेश ने झेला है और उसकी तारीफ होनी ही चाहिए.

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Open Letter: Disqualify हुईं तो क्या हुआ, Paris Olympic में Vinesh Phogat का प्रदर्शन किसी Gold से कम नहीं है!

ओलंपिक में विनेश ने अपने प्रदर्शन से तमाम लोगों का दिल जीत लिया है 

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प्यारे ट्रोल्स,


अब तक आपको खबर मिल ही चुकी होगी कि 100 ग्राम के वजन को मुद्दा बनाकर Paris Olympic 2024 के  Wrestling Finals से Vinesh Phogat को डिसक्वालिफाई कर दिया गया है. भारतीय दल इस निर्णय को चुनौती दे सकता है. लेकिन जो फैसला होना है वो हो चुका है. अंतिम परिणाम यही है कि विनेश Olympic Gold medal से चूक जाएंगी. फाइनल में भाग लेना तो दूर, उन्हें पोडियम पर भी जगह नहीं मिलेगी.भले ही ये खबर किसी भी हिंदुस्तानी का दिल तोड़ने के लिए काफी हो. मगर इसका दर्द उससे कम है जो बीते कुछ वक़्त में बतौर खिलाड़ी विनेश फोगाट ने झेला.

इस घटना के बावजूद अगर भारत की बेटी और हम सब की लाडली विनेश फोगाट Paris olympic 2024 में इतिहास रचने और हम तमाम देश वासियों के गर्व का पर्याय बनने में कामयाब हुई, तो इसकी एकमात्र वजह वो कड़ी मेहनत है एक समय में उसे नीचा दिखाने में आप लोगों ने की.

यूं तो विनेश और आपके विषय में कहने सुनने को तमाम बातें हैं.  लेकिन अभी उन बातों का ज़िक्र करने का न मौक़ा है न दस्तूर. सारांश में समझना हो तो हमें बस उस वक़्त को याद करना चाहिए, जब गुजरे साल विनेश साथी पहलवानों के साथ बाहुबली सांसद ब्रज भूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ नई दिल्ली स्थित जंतर मंतर पर धरने पर बैठीं थी.

मुद्दा सरकार थी. घेरे में यौन शोषण जैसे आरोपों से घिरा एक सांसद था. सवाल देश के प्रधानमंत्री और उनकी इतने अहम मसले पर चुप्पी को लेकर थे. अब आप लोग बताइए आपने क्या किया? मैं बताता हूं. तब उस वक़्त आपने बतौर स्त्री विनेश फोगाट की शान में गुस्ताखी करने में अपनी तरफ़ से कोई कसर नहीं छोड़ी.

आपके द्वारा सबसे पहले तो विनेश के कैरेक्टर पर उंगली उठाई गई फिर जब इतने से भी काम नहीं चला तो उस धरने को, जिसमें देश की बेटियां अपने लिये इंसाफ़ मांग रहीं थी उसे प्रायोजित बता दिया गया.

विनेश संग बाक़ी के खिलाड़ियों को खलिस्तानी, देशद्रोही कहा गया. ट्विटर से लेकर फ़ेसबुक तक अलग अलग कैम्पेन चलाए गए.  तमाम तरह के जतन सिर्फ़ इसलिए किए गए ताकि हालात के मारे इन पहलवानों का खुला मुंह बंद कराया जा सके. वो बेटी जिसने आज तिरंगे का मान ऊंचा किया उसी को दिल्ली पुलिस ने कुछ वैसे ट्रीट किया जैसे वो कोई दुर्दांत अपराधी हो? क्या ये जायज़ था? जवाब ठंडे दिमाग़ से और अपने गिरेबान में झांकते हुए दीजियेगा.

वाक़ई कितना शर्मसार करने वाला था वो वक़्त जब देश के लिए पदकों की झड़ी लगाने वाली ये बेटी और इसके साथी तो रहे थे, गिड़गिड़ा रहे थे लेकिन किसी को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. ऐसा लग रहा था सबकी आंखों में एक अलग तरह की पट्टी बंधी है और सभी एक भेड़ चाल में चल रहे हैं. प्रयास यही था कि उस व्यक्ति को बचा लिया जाए जिसकी पार्टी केंद्र में थी.

मैं आपसे सवाल करूंगा. क्या इंसाफ़ मांगना इंसान को देशद्रोही, खलिस्तानी बना देता है? क्या एक बेटी के साथ वहशीपन की पराकाष्ठा पार करते उस जनप्रतिनिधि को सलाख़ों के पीछे नहीं होना चाहिए? शायद आप इस बात को सुनकर थोड़ा असहज हों, लेकिन आज से ठीक एक साल पहले मैंने ये जाना कि तब एक अदना सी FIR कितनी मुश्किल होती है जब सामने ब्रज भूषण शरण सिंह जैसा एक क़द्दावर व्यक्ति हो.

बहरहाल जैसा कि मैंने ऊपर ही कहा विनेश की ये कड़ी मेहनत बिना आपकी 'कड़ी मेहनत' के संभव नहीं थी. तो ये बात यूं ही नहीं थी. ठंडे दिमाग़ से सोचिए कि पेरिस ओलंपिक में कुश्ती के क्वार्टर फाइनल मुकाबले में वर्ल्ड चैंपियन जापान की युई सुसाकी से लोहा लेने वाली विनेश के दिमाग़ में अपने टूर्नामेंट के दौरान क्या कुछ नहीं चल रहा होगा.

जिस किसी ने भी मुक़ाबले को देखा होगा. इस बात से परिचित होगा कि मैच किसी भी सूरत में आसान नहीं था. विनेश जानती थीं कि ये उनके लिए करो या मरो की स्थिति है इसलिए उन्होंने वो किया जो वो सोचकर रिंग में उतरी थीं. मैच भले ही मुश्किल रहा हो मगर जिस तरह अंतिम पांच सेकंड में विनेश पॉइंट लेने में कामयाब हुईं स्वतः सिद्ध हो गया कि ये तमाचा उन लोगों के मुंह पर है जिन्होंने विनेश पर तमाम तरह के घटिया इल्ज़ाम लगाए थे.

ट्रोल्स जान लें भले ही ओवर वेट का हवाला देकर भले ही विनेश को डिस्क्वलिफ़ाई कर दिया गया हो ( ये दुखी करने वाला है) मगर उनका प्रदर्शन हम फ़ैंस के लिये गोल्ड मेडल से कम नहीं है.

विनेश के आलोचक उनके प्रदर्शन के बाद भले ही मुंह की खा चुके हों लेकिन समझ में उनकी भी आ गया है कि विनेश खोटा सिक्का नहीं है ( ध्यान रहे ये शब्द विनेश के लिये ब्रज भूषण शरण सिंह ने इस्तेमाल लिए थे)

बाक़ी चाहे वो ब्रज भूषण हों या विनेश की आलोचना करने वाले ट्रोल्स जाते जाते एक ज़रूरी बात - शिकायतें और इंसाफ़ की तलब करना किसी को मंथरा का दर्जा नहीं दिलवाते. भारत एक लोकतांत्रिक देश है जो संविधान से चलता है और इंसाफ़ मांगने और न्याय की लड़ाई लड़ने का हक़ हमें संविधान से मिला है.

आपका

विनेश के प्रदर्शन से उत्साहित एक फ़ैन

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