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BBC Documentary Row: 50 साल में इन 5 डॉक्यूमेंट्री पर भड़की सरकार, एक पर BBC को छोड़ना पड़ा था भारत

BBC Documentary गुजरात दंगों पर बनी है, जिसे सरकार का विरोध करने वाले संगठन अलग-अलग यूनिवर्सिटीज में दिखा रहे हैं. इसका विरोध भी हुआ है.

BBC Documentary Row: 50 साल में इन 5 डॉक्यूमेंट्री पर भड़की सरकार, एक पर BBC को छोड़ना पड़ा था भारत

BBC Documentary on Modi: मुंबई के TISS में प्रतिबंध के बावजूद लैपटॉप पर स्क्रीनिंग की गई.

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डीएनए हिंदी: साल 2002 के गुजरात दंगों (2002 Gujarat Riots) पर बीबीसी की तरफ से बनाई गई डॉक्यूमेंट्री के कारण इस समय भारत में राजनीतिक बवाल चल रहा है. इंडिया: द मोदी क्वशेचन नाम की इस डॉक्यूमेंट्री में गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका पर सवाल उठाया गया है, जो इन दंगों के समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे. इस डॉक्यूमेंट्री को मोदी विरोधी विचारधारा के संगठन जगह-जगह लोगों को दिखाने का प्रयास कर रहे हैं. खासतौर पर विभिन्न यूनिवर्सिटीज में इस डॉक्यूमेंट्री को दिखाने की कोशिश कांग्रेस के छात्र संगठन और वामपंथी विचारधारा वाले छात्र संगठन लगातार कर रहे हैं. अधिकतर यूनिवर्सिटी ने देश के प्रधानमंत्री से जुड़ा विवाद होने के कारण इस डॉक्यूमेंट्री को दिखाने पर रोक लगा रखी है. इसके बावजूद अलग-अलग तरीकों से इसे छात्रों को दिखाया जा रहा है, जिसके चलते यूनिवर्सिटीज में हिंसा भी देखने को मिली है और कई जगह छात्रों की गिरफ्तारी भी हुई है. 

यदि आप यह सोच रहे हैं कि यह पहला मौका है, जब किसी विवादित विषय पर बनी कोई डॉक्यूमेंट्री इस तरह सरकार के विरोधी रुख का शिकार हुई है तो आप गलत हैं. आइए आपको पिछले 50 साल के दौरान आई ऐसी 5 डॉक्यूमेंट्री के बारे में बताते हैं, जिन्हें सरकार के कारण परेशानी उठानी पड़ी है.

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1. साल 1970 में आई दो डॉक्यूमेंट्री ने बीबीसी को दिलाया 'भारत निकाला'
BBC ने साल 1970 में दो ऐसी डॉक्यूमेंट्री पेश की थी, जिन्हें लेकर तत्कालीन भारत सरकार की भौंहे टेढ़ी हो गई थी. नतीजतन बीबीसी को दो साल के लिए 'भारत से निर्वासित' रहना पड़ा था. ये डॉक्यूमेंट्री थी लुइस माले की कलकत्ता (Calcutta) और फैंटम इंडिया (Phantom India). इन दोनों को ब्रिटिश टेलीविजन पर ब्रॉडकास्ट किया गया था. इससे भारतीय समुदाय में बेहद आक्रोश फैल गया था और भारत सरकार की तरफ से भी तीखा रिएक्शन दिया गया था. इन डॉक्यूमेंट्री को भारत की रोजमर्रा की जिंदगी का स्केच बताया गया था, जिनमें भारत सरकार को पक्षपाती और कुछ ऐसी छवि वाला दिखाया गया था, जिससे देश की निगेटिव तस्वीर बन रही थी.

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2. साल 1992 में आई थी Ram Ke Naam
साल 1992 का दौर बाबरी मस्जिद ध्वंस के कारण प्रभु श्रीराम को लेकर गलत तरीके से चर्चा का दौर था. इस दौरान आनंद पटवर्धन (Anand Patwardhan) ने आज तक की सबसे विवादित डॉक्यूमेंट्री में से एक 'राम के नाम (Ram Ke Naam)' पेश की. इस डॉक्यूमेंट्री में कथित तौर पर विश्व हिंदू परिषद (Vishwa Hindu Parishad) के अयोध्या में राम मंदिर (Ram temple in Ayodhya) बनाने के अभियान की जांच का दावा किया गया था. इस डॉक्यूमेंट्री को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचकों से सराहना मिली. यहां तक कि इसे बेस्ट इंवेस्टिगेटिव डॉक्यूमेट्री का नेशनल फिल्म अवॉर्ड और बेस्ट डॉक्यूमेट्री का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला. इसके बावजूद तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसे दूरदर्शन पर टेलीकास्ट करने पर प्रतिबंध लगा दिया. सरकार ने इस डॉक्यूमेंट्री को 'धार्मिक संवेदनाओं को ठेस पहुंचाने वाली' घोषित करते हुए प्रतिबंध लगाया. 

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3. आतंकी के बेटे को पासपोर्ट नहीं देने की कहानी थी Inshallah Football
साल 2010 मे अश्विन कुमार ने एक कश्मीर फुटबॉल प्लेयर पर डॉक्यूमेंट्री Inshallah Football बनाई, जो ब्राजील जाना चाहता था. इस फुटबॉलर को पासपोर्ट देने से इस आधार पर इनकार कर दिया गया था, क्योंकि उसका पिता पहले आतंकी रह चुका था. इस डॉक्यूमेंट्री ने कई अवॉर्ड जीते, लेकिन इसे सरकारी विरोध का सामना करना पड़ा. इस डॉक्यूमेंट्री को सेंसर बोर्ड ने 'ए सर्टिफिकेट' दिया, लेकिन इसके रिलीज होने से ठीक पहले स्क्रीनिंग पर रोक लगा थी. रोक लगाने का कारण इस डॉक्यूमेंट्री में कश्मीर घाटी में भारतीय सेना की मौजूदगी में आम जिंदगी की गलत झलक दिखाए जाने को बताया गया. इस डॉक्यूमेंट्री को बाद में निर्माता ने ऑनलाइन रिलीज कर दिया. हालांकि यह ऑनलाइन प्रिंट पासवर्ड प्रोटेक्टेड होने के कारण इसकी पहुंच सीमित दर्शकों तक ही थी. 

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4. Final Solution में भी गुजरात दंगों की थी झलक
साल 2002 के गुजरात दंगों पर पहले भी डॉक्यूमेंट्री विवादों में रह चुकी हैं. करीब 20 साल पहले गुजरात दंगों के तत्काल बाद राकेश शर्मा ने इन पर एक डॉक्यूमेंट्री Final Solution बनाई. इसमें यह दिखाने की कोशिश की गई कि गुजरात में बेहद सुनियोजित व समन्वित तरीके से सामुदायिक हिंसा को अंजाम देने की कोशिश की गई. इसमें सांप्रदायिक विभाजन के दोनों पक्षों पर दंगों के पीड़ितों और गवाहों के इंटरव्यू थे. सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (Central Board of Film Certification) या सेंसर बोर्ड ने इस डॉक्यूमेंट्री को उत्तेजित करने वाला बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया और इससे सांप्रदायिक हिंसा भड़कने व कट्टरता बढ़ने की चिंता जताई. 

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उस समय केंद्र में भाजपा नेतृत्व वाली NDA गठबंधन की सरकार थी और सेंसर बोर्ड के चेयरपर्सन अनुपम खेर थे, जिन्हें भाजपा समर्थक माना जाता है. हालांकि बाद में केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर अक्टूबर, 2004 में इस डॉक्यूमेंट्री पर लगा प्रतिबंध हटा लिया गया. इसके बाद डॉक्यूमेंट्री ने स्पेशन ज्यूरी अवॉर्ड (नॉन-फीचर फिल्म) कैटेगरी में नेशनल अवॉर्ड भी जीता. इसके अलावा भी कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में इसे खासी चर्चा मिली. 

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5. निर्भया गैंगरेप पर बनी India’s Daughter को लेकर भी हुआ विवाद

BBC की एक अन्य डॉक्यूमेंट्री भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में ही विवादों का शिकार हो चुकी है. साल 2015 में आई लेस्ली उडविन की डॉक्यूमेंट्री India’s Daughter को लेकर यह विवाद हुआ था. बीबीसी की स्टोरीविले सीरीज की यह डॉक्यूमेंट्री दिल्ली में साल 2012 के चर्चित निर्भया गैंगरेप व हत्या मामले पर आधारित थी. इस फिल्म के कुछ हिस्से टीवी चैनलों पर ऑनएयर हो गए, जिनमें इस केस के एक आरोपी मुकेश के इंटरव्यू के कुछ हिस्से भी थे. इसके बाद दिल्ली पुलिस ने डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण पर रोक लगाने के लिए कोर्ट से स्टे ऑर्डर लिया. बीबीसी ने इसे भारत में टेलीकास्ट नहीं किया, लेकिन विदेशों में इसे ब्रॉडकास्ट कर दिया गया. इसके बाद यह यूट्यूब के जरिये भारत में भी देखी गई. तब भारत सरकार ने यूट्यूब को इस डॉक्यूमेंट्री को भारत में देखने से रोकने कान निर्देश दिया था.

इस प्रतिबंध के खिलाफ भारतीय संसद में जमकर बहस हुई, जिसमें विपक्षी सांसदों ने सरकार के इस कदम पर सवाल उठाए. तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने इसे भारत को बदनाम करने की साजिश बताया, जिसका तब राज्यसभा में सांसद रहे गीतकार जावेद अख्तर ने विरोध किया था. 

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