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J-K Assembly Election: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 में गुज्जर-बकरवाल समुदाय की भूमिका और राजनीतिक प्रभाव

J-K Assembly Elections 2024: जम्मू-कश्मीर के चुनाव में गुज्जर-बकरवाल समुदाय की भूमिका हमेशा से अहम रही है. इन दोनों ही समुदायों को जम्मू-कश्मीर की सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी ओर साधने की कोशिश करती हैं. वर्षों से सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव झेल रहे इस समुदाय की आज की राजनीति में क्या स्थिति है?

J-K Assembly Election: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 में गुज्जर-बकरवाल समुदाय की भूमिका और राजनीतिक प्रभाव
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J-K Assembly Elections 2024:  जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव संपन्न हो चुके है. आज यानी 8 अक्टूबर को चुनाव के नतीजे भी जारी कर दिए गए है. इन नतीजों में जम्मू- कश्मीर में कांग्रेस और एनसी के गंठबंधन ने जीत दर्ज कर ली है. वहीं दूसरी तरफ वर्तमान रूझानों के हिसाब से 29 सीटों पर समिटती हुई नजर आ रही है. जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हो रहे विधानसभा चुनावों में इस बार गुज्जर-बकरवाल समुदाय की राजनीतिक स्थिति और भूमिका पर पुरजोर ध्यान दिया जा रहा है. 2019 में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद, यह पहला मौका है जब राज्य में चुनाव हो रहे हैं. केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यह चुनाव और भी महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि गुज्जर-बकरवाल, पहाड़ी और अन्य जनजातीय समुदायों की हिस्सेदारी और भूमिका नए समीकरण बना सकती है. इस बार, बीजेपी, नेशनल कांफ्रेंस (NC), कांग्रेस, और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) सहित सभी प्रमुख दलों ने इन समुदायों को प्राथमिकता दी है, जिससे आगामी चुनाव का परिणाम कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक हो सकता है.

गुज्जर-बकरवाल समुदाय
जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हुए विधानसभा चुनाव की आज मतगणना का दिन है. चुनावी नतीजे तमाम एक्जिट पोल के मुताबिक ही नजर आ रहे हैं. भारत अपनी विविधताओं के लिए पूरी दुनिया में जानी जाती है. जम्मू और कश्मीर भी अपनी विविध जातीय समूहों की संस्कृति, जातीयता और भाषा के मिश्रण का प्रतीक है. इनमें गुर्जर-बकरवाल एक प्रमुख जनजातीय समुदाय है, जो कश्मीरियों और डोगरा समुदाय के बाद तीसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है. आज हम इन दोनों समुदायों की जम्मू-कश्मीर की राजनीति में हिस्सेदारी और अपने लिए राजनीति का उपयोग कैसे करते है, इस बारे में जानेंगे. इस समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर बहुत समृद्ध है और यह क्षेत्र की विविधता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ज़्यादातर गुर्जर-बकरवाल घुमंतू जीवन शैली अपनाते हैं और पशुपालन पर निर्भर होते हैं, जो मौसम के अनुसार अपने जानवरों के साथ विभिन्न क्षेत्रों में आजीविका के लिए घूमते रहते हैं. इसके बावजूद, उन्हें सामाजिक उपेक्षा, भेदभाव, शिक्षा का अभाव, आधारभूत संरचना की कमी, और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी जैसी तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

14 लाख के करीब आबादी

गुज्जर और बकरवाल समुदाय जम्मू-कश्मीर की राजनीति में लंबे समय से हाशिए पर रहे हैं. हालांकि, इस बार के चुनावों में इनके प्रतिनिधित्व में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है. जम्मू-कश्मीर में करीब 14 लाख से अधिक गुज्जर-बकरवाल आबादी है, जो राज्य की जनसंख्या का लगभग 11% हिस्सा है. 2024 के विधानसभा चुनाव में इन दोनों ही समुदाय की पकड़ मजबूत हुई है.

गुज्जर-बकरवाल समुदाय का भविष्य और राजनीतिक असर
बीजेपी ने इस बार गुज्जर और पहाड़ी दोनों ही समुदाय को साधने की कोशिश की है. पार्टी ने कई विधानसभा क्षेत्रों में गुज्जर और पहाड़ी नेताओं को टिकट दिया है, जो पहले से मौजूद जातीगत राजनीति पर बड़ा असर दाल सकती है . 2024 के विधानसभा चुनावों में गुज्जर और बकरवाल समुदाय की भूमिका पहले की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है. राजनीतिक पार्टियों द्वारा इन समुदायों को अलग-अलग तरीके से साधने की कोशिश की जा रही है. पहाड़ी समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने के बाद गुज्जर समुदाय में असंतोष बढ़ा है, जिससे सूबे की राजनीति और जटिल हो गया है.

बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत पहाड़ी समुदाय को इस बार साधने की कोशिश की है, जिससे दोनों समुदायों के बीच एक नया तनाव भी देखने को मिला है. वहीं, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने भी गुज्जर-बकरवाल समुदाय के नेताओं को टिकट दिया है, जिससे यह देखना दिलचस्प होगा कि यह समुदाय किस पार्टी का समर्थन करता है. राजौरी और पुंछ जैसी सीटों पर, जहां ये समुदाय निर्णायक भूमिका में हैं, इन सीटों पर  सभी प्रमुख दलों के उम्मीदवार मैदान में हैं.

2024 चुनावों में गुज्जर-बकरवाल उम्मीदवार
इस बार गुज्जर-बकरवाल समुदाय से कई प्रमुख उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं:

  • सुरनकोट (ST) सीट: बीजेपी ने पहाड़ी नेता सैयद मुश्ताक बुखारी को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस-नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन ने गुज्जर समुदाय से शाहनवाज चौधरी को उतारा है. PDP ने भी गुज्जर नेता जावेद चौधरी को मैदान में उतारा है.
  • मेंढर (ST) सीट: NC ने वरिष्ठ गुज्जर नेता जावेद राणा को टिकट दिया है, जबकि बीजेपी ने पहाड़ी नेता मुर्तजा खान को उतारा है. PDP ने भी नदीन खान को उम्मीदवार बनाया है.
  • गुलाबगढ़ (ST) सीट: यहाँ NC और कांग्रेस ने इंजीनियर खुर्शीद अहमद को टिकट दिया है.
  • रियासी सीट: NC-कांग्रेस गठबंधन ने मुमताज खान को टिकट दिया है, जबकि बीजेपी ने नए चेहरे कुलदीप राज दुबे को उतारा है. इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प है क्योंकि यह गुज्जर और पहाड़ी दोनों समुदायों की राजनीतिक मौजूदगी है.
  • बीजेपी ने पहाड़ी समुदाय के नेता इकबाल मलिक को कलाकोट-सुंदरबनी सीट से मैदान में उतारा है, जबकि नेशनल कांफ्रेंस के मुजफ्फर अहमद मलिक ने टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है. यह सीट बीजेपी के लिए चुनौर्णतीपू हो सकती है, क्योंकि यहां गुज्जर नेता अब्दुल गनी कोहली 2014 में जीते थे, लेकिन इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया है.

कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का गठबंधन 
पिछले चुनावों में पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की आपसी खींचतान के कारण बीजेपी को फायदा हुआ था. इस बार,  कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस गठबंधन ने कुछ प्रमुख गुज्जर नेताओं को टिकट दिया है, लेकिन बीजेपी के पहाड़ी कार्ड ने उनके वोट बैंक को बांटने की कोशिश की है. 

स्वतंत्रता के बाद से, तमाम प्रयासों के बावजूद, यह समुदाय कठिन चुनौतियों से जूझ रहा है. सामाजिक बहिष्कार, भेदभाव और रूढ़िवादी दृष्टिकोणों के कारण इस समुदाय को हमेशा हाशिए पर रखा गया. गरीबी, बेरोजगारी, और वित्तीय अभाव उनकी प्रमुख समस्याओं में गिने जाते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार, गुर्जर-बकरवाल समुदाय के लोगों को इतना अलग-थलग कर दिया गया है कि बस में भी उनके साथ कोई नहीं बैठता और उन्हें 'गुर्जर' या 'गुज्जर' कहकर उनका तिरस्कार या मजाक उड़ाया जाता है.

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जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद का सबसे अधिक दुष्प्रभाव गुर्जर-बकरवाल समुदाय पर पड़ा है. आतंकी घटनाओं ने उनके मौसमी प्रवास पर गंभीर असर डाला है. जो लोग आतंकियों के आदेशों का पालन करने से मना करते थे, उनमें से कई को मार दिया गया. भले ही इसके सटीक आंकड़े उपलब्ध न हों, लेकिन जनवरी 2002 की पीटीआई रिपोर्ट के अनुसार, राजौरी-पुंछ जिलों में आतंकबादियों द्वारा इन दोनों समुदाय के कई लोगों की हत्या कर दिया था.  

कारगिल युद्ध (1999) के दौरान बकरवाल समुदाय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस घुमंतु समुदाय ने भारतीय सेना को पाकिस्तानी घुसपैठियों की सटीक जानकारी दी, जिससे सेना को उनके ठिकानों का पता लगाने में मदद मिली. बकरवाल लोग, जो पशुपालन करते हैं और पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं, इन इलाकों के भूगोल और रास्तों से भली-भांति परिचित होते हैं. युद्ध के समय, उनकी सूचनाओं ने सेना की रणनीति बनाने और घुसपैठियों को खदेड़ने में अहम योगदान दिया. बकरवाल समुदाय के लोगों की बहादुरी और सहयोग के लिए उन्हें भारतीय सेना और सरकार ने सम्मानित भी किया.

जम्मू-कश्मीर में गुज्जर-बकरवाल समुदाय की भूमिका 2024 के चुनावों में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है. इस चुनाव में बीजेपी, नेशलन कांफ्रेंस, कांग्रेस, और पीडीपी के बीच कड़ी टक्कर होने की संभावना है. गुज्जर-बकरवाल समुदाय की जागरूकता और राजनीतिक सक्रियता, उनके लिए आगामी समय में एक सशक्त राजनीतिक स्थिति को स्थापित करने का मौका भी हो सकती है. आने वाले चुनावी नतीजे न केवल जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित करेंगे, बल्कि गुज्जर-बकरवाल समुदाय के भविष्य के राजनीतिक दिशा-निर्देश भी तय करेंगे.

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