Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING
  • PHOTOS
  • ENTERTAINMENT

What is Floor Test: क्या होता है फ्लोर टेस्ट, कब आती है इसकी नौबत? विधानसभा में कैसे साबित होता है बहुमत

Floor Test: इसकी शुरुआत 1989 में हुई जब कर्नाटक में बोम्मई सरकार गिरने के पांच साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट अनिवार्य कर दिया था.

Latest News
What is Floor Test: क्या होता है फ्लोर टेस्ट, कब आती है इसकी नौबत? विधानसभा में कैसे साबित होता है बहुमत
FacebookTwitterWhatsappLinkedin

TRENDING NOW

डीएनए हिंदीः महाराष्ट्र में गहराते सियासी संकट के बीच महाविकास अघाडी सरकार जल्द गिर सकती है. शिवसेना (Shiv Sena) विधायक लगातार सीएम उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) का साथ छोड़ते जा रहे हैं. उधर एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने दो तिहाई विधायकों के साथ होने का दावा किया है. इसमें से 41 विधायक गुवाहाटी में उनके साथ मौजूद हैं. बीजेपी भी आज राज्यपाल को चिट्ठी भेज सरकार बनाने का दावा भेज सकती है. ऐसे में सवाल है कि क्या महाविकास अघाड़ी के पास फ्लोर पर बहुमत है? इसके लिए विधानसभा में बहुमत साबित करना पड़ेगा. आइए समझते हैं कि आखिर फ्लोर टेस्ट क्या होता है. 

क्या होता है फ्लोर टेस्ट (What is Floor Test)
फ्लोर टेस्ट को हिंदी में विश्वासमत भी कहते हैं. फ्लोर टेस्ट के जरिए यह फैसला लिया जाता है कि वर्तमान सरकार या मुख्यमंत्री (केंद्र में प्रधानमंत्री) के पास पर्याप्त बहुमत है या नहीं. चुने हुए विधायक अपने मत के जरिए सरकार के भविष्य का फैसला करते हैं. अगर मामला राज्य का है तो फ्लोर टेस्ट विधानसभा में होता है, केंद्र का है तो लोकसभा में. फ्लोर टेस्ट सदन में चलने वाली एक पारदर्शी प्रक्रिया है और इसमें राज्यपाल का किसी भी तरह से कोई हस्तक्षेप नहीं होता. फ्लोर टेस्ट में विधायकों या सासंदों को सदन में व्यक्तिगत रूप से पेश होना होता है और सबके सामने अपना वोट देना होता है.  

ये भी पढ़ेंः दलबदल कानून क्या है? विधायकों पर किन-किन स्थितियों में लगता है बैन

कौन कराता है फ्लोर टेस्ट?
फ्लोर टेस्ट में राज्यपाल किसी भी तरह से हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं. राज्यपाल सिर्फ आदेश देते हैं कि फ्लोर टेस्ट किया जाना है. इसके कराने की पूरी जिम्मेदारी स्पीकर के पास होती है. अगर स्पीकर का चुनाव नहीं हुआ होता है तो पहले प्रोटेम स्पीकर नियुक्त होता है. प्रोटेम स्पीकर अस्थायी स्पीकर होता है. नई विधानसभा या लोकसभा के चुने जाने पर प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है जो सदन के सदस्यों को शपथ दिलाता है.  

प्रोटेम स्पीकर लेते हैं फैसला
सुप्रीम कोर्ट अपने एक आदेश में साफ कर चुका है कि फ्लोर टेस्ट की पूरी प्रक्रिया प्रोटेम स्पीकर की निगरानी में आयोजित की जाए. साथ ही वह फ्लोर टेस्ट से संबंधित सभी फैसले भी लेंगे. वोटिंग होने की सूरत में पहले विधायकों की ओर से ध्वनि मत लिया जाएगा. इसके बाद कोरम बेल बजेगी. फिर सदन में मौजूद सभी विधायकों को पक्ष और विपक्ष में बंटने को कहा जाएगा. विधायक सदन में बने हां या नहीं वाले लॉबी की ओर रुख करते हैं. इसके बाद पक्ष-विपक्ष में बंटे विधायकों की गिनती की जाएगी. फिर स्पीकर परिणाम की घोषणा करेंगे.

ये भी पढ़ेंः कैसे होता है राष्ट्रपति चुनाव? कौन कर सकता है नामांकन और वोटिंग में कौन-कौन होते हैं शामिल, जानें सबकुछ

फ्लोर टेस्ट से पहले इस्तीफे का ट्रेंड
जब भी किसी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता है तो सदन में फ्लोर टेस्ट से ही उसकी नतीजा निकलता है. कई बार जब सरकारें देखती हैं कि उनके पास पर्याप्त संख्याबल नहीं हैं तो फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे देती हैं. कर्नाटक समेत कई राज्यों में ऐसा हो चुका है.  

पार्टियां जारी करती हैं व्हिप?
जब भी फ्लोर टेस्ट होता है तो पार्टी अपने विधायकों के लिए विप जारी करती है. दरअसल व्हिप विधायकों को क्रॉस वोटिंग से रोकने के लिए जारी की जाती है. तीन तरह के व्हिप होते हैं- एक लाइन का व्हिप, दो लाइन का व्हिप और तीन लाइन का व्हिप. तीन लाइन का व्हिप सबसे कठोर होता है. आसान भाषा में समझें तो व्हिप एक तरह से पार्टी का विधायकों लिए एक आदेश होता है. विधायकों को सदन में जाकर वोटिंग में शामिल होना होता है. व्हिप का उल्लंघन करने पर दलबदल कानून के तहत सदन से बर्खास्तगी की कार्रवाई तक की जा सकती है.

ये भी पढ़ेंः आखिर कैसे बदला जाता है किसी शहर का नाम, आम लोगों पर क्या पड़ता है असर?

पहला फ्लोर टेस्ट कब हुआ?
भारत में पहले बहुमत साबित करने के लिए फ्लोर टेस्ट नाम की कोई चीज नहीं होती थी. इसकी शुरुआत हुई 1989 में जब कर्नाटक में बोम्मई सरकार गिरने के पांच साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट अनिवार्य कर दिया था. दरअसल तब मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. अप्रैल 1989 में तत्कालीन राज्यपाल पी वेंकटसुबैया ने कहा कि बोम्मई सरकार के पास बहुमत नहीं है और सरकार को बर्खास्त कर दिया. मामले की सुनवाई पांच साल तक चली और तब सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराने का फैसला दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया कि ऐसी किसी भी स्थिति में फ्लोर टेस्ट कराना ही बहुमत साबित करने का एकमात्र तरीका है. 

क्या है विधानसभा का गणित?

महाविकास आघाड़ी -

शिवसेना - 55

राकांपा - 53

कांग्रेस - 44

(कुल विधायक - 152)

भाजपा - 106

छोटी पार्टियां एवं निर्दलीयः

बहुजन विकास आघाड़ी - 03

समाजवादी पार्टी - 02

प्रहार जनशक्ति पार्टी - 02

महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना - 01

जन सुराज्य पार्टी - 01

राष्ट्रीय समाज पक्ष - 01

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) - 01

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों पर अलग नज़रिया, फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर.

Advertisement

Live tv

Advertisement

पसंदीदा वीडियो

Advertisement