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भारत की 'नई दोस्ती' से रूठ न जाए 'पुराना यार', नए गठजोड़ की क्या है असली वजह?

रूस ने हर मुश्किल वक्त में भारत का साथ दिया है. अमेरिका की विदेश नीति के बारे में कहा जाता है कि जब बात सौदे की आती है तो यह देश सिर्फ मुनाफा देखता है. रूस, भारत को कभी धोखा नहीं दे सकता है, पर अमेरिका को लेकर आशंकाएं कई हैं.

भारत की 'नई दोस्ती' से रूठ ��न जाए 'पुराना यार', नए गठजोड़ की क्या है असली वजह?

जिल बाइडेन, पीएम नरेंद्र मोदी और जो बाइडेन. (तस्वीर-PTI)

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डीएनए हिंदी: साल 1971. अमेरिका ने जापान के करीब तैनात अपने नौसेना के सातवें बेड़े को पाकिस्तान की मदद करने के लिए बंगाल की खाड़ी की ओर भेज दिया था. यह भारत के तत्कालीन युद्धपोतों से करीब 5 गुना ज्यादा बड़ा था. ऐसा कहा जाता है कि भारत की पूर्वी पाकिस्तान में बढ़ती दखल को देखते हुए अमेरिका ने जंगी जहाज उतारा था. इसकी आहट पाकर सोवियत संघ ने एक विध्वंसक जहाज अमेरिकी बेड़े के पीछे लगा दिया था. वजह थी, भारत से रूस की दोस्ती. रूस ने संकेत दिया था कि वह भारत के साथ हर परिस्थिति में खड़ा है. यह रूस और भारत की दोस्ती की सिर्फ एक मिसाल है.

रूस ने हर मुश्किल वक्त में भारत का साथ दिया है. अमेरिका के साथ ऐसी स्थिति नहीं है. अमेरिका की दोस्ती, ज्यादातर परिस्थितिजन्य रही है. तभी तो भारत का धुर विरोधी देश पाकिस्तान, उसका करीबी हो जाता है. 2011 तक, अमेरिका के रिश्ते भारत की तुलना में पाकिस्तान से बेहतर रहे हैं. रूस के साथ रिश्ते, हमेशा से अच्छे रहे हैं, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं.

क्या सुनहरे दौर में है भारत-अमेरिका की दोस्ती?

अमेरिका और भारत के बीच दोस्ती डोनाल्ड ट्रंप से लेकर जो बाइडेन तक के कार्यकाल में बेहतर हुई है. खुद प्रधानमंत्री ने वॉल स्ट्रीट जर्नल के साथ हुए एक इंटरव्यू में यह कहा है. प्रधानमंत्री जब भी अमेरिका जाते हैं, उनकी यात्रा पर दुनियाभर की नजरें रहती हैं. 

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित करने वाले हैं. जो बाइडेन, स्टेट डिनर, पीएम मोदी के लिए आोयजित करने वाले हैं. ऐसा लग रहा है कि अमेरिका, पीएम मोदी के स्वागत में उमड़ आया है.  दोनों देश, अरबों डॉलर की डिफेंस डील कर सकते हैं. पर, एक चीज जो डरा रही है, वह है कहीं नई दोस्ती, भारत के पुराने और वफादार दोस्त, रूस के साथ रिश्ते खटाई में न डाल दे.

भारत का सच्चा दोस्त रहा है रूस, अब न हो जाए नाराज

वैसे तो भारत की विदेश नीति, कभी किसी देश के दबाव में नहीं रही है. भारत हमेशा से संप्रभु फैसले लेता है, बिना किसी डर के लेकिन ऐसा लग रहा है कि कहीं रूस नई दोस्ती से नाराज न हो जाए. विश्वयुद्ध के वक्त से ही रूस और अमेरिका एक-दूसरे के लिए खतरनाक साबित हुए हैं. 

भारत और रूस के व्यापारिक संबंध भी हमेशा अच्छे रहे हैं. भारत अमेरिका की धमकियों के बाद भी रूस से तेल खरीदता है, यूक्रेन को लेकर संयुक्त राष्ट्र में निंदा प्रस्ताव से दूरी बनाता है. भारत पश्चिमी देशों की नाराजगी मोल ले लेता है लेकिन रूस को नाराज नहीं करता है. वजह सिर्फ दोस्ती है.

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भारत रूस से बड़ी संख्या में हथियार खरीदता है. रूस ही भारत का सबसे बड़ा डिफेंस पार्टनर है फिर भी आशंका है कि भारत-रूस की दोस्ती कहीं खटाई में न पड़ जाए. वजह नए वैश्विक समीकरण हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जो बाइडेन.

क्या पुराना दोस्त हो सकता है नाराज?

भारत अब नए भागीदार तलाश रहा है. भारत फ्रांस लेकर अमेरिका तक को पार्टनर बना रहा है. हथियारों के लिए रूस पर भारत की निर्भरता कम हो रही है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट का दावा है कि पहले भारत 62 फीसदी हथियार रूस से खरीदता था लेकिन अब यह आंकड़ा 45 प्रतिशत पर सिमट गया है. हथियार खरीदने वाले नए पार्टनर अब अमेरिका और फ्रांस है. भारत खुद भी हथियार बना रहा है. ऐसा हो सकता है कि अमेरिका से नजदीकी, रूस को नागवार गुजरे.

क्या पश्चिम का भारत पर बढ़ रहा दबाव?

ऐसी स्थितियां नहीं हैं. भारत की नीतियां संप्रभु राष्ट्र के तौर पर तय होती है. अब भारत इस स्थिति में पहुंच गया है कि वह अपनी शर्तों पर डील करे. यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देश चाहते थे कि भारत रूस के साथ व्यापार न करे लेकिन भारत ने अपनी शर्तों पर व्यापार करे. रूसी विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा था कि अमेरिका चाहता है कि भारत और रूस की ऐतिहासिक दोस्ती, टूटे. पर हालात ऐसे नहीं हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जो बाइडेन.

भारत में रूस के राजदूत डेनिस एलिपोव दोहरा चुके हैं कि ऐसी विदेश यात्राओं से भारत और रूस के संबंध कमजोर नहीं पड़ेंगे. भारत की डिफेंस और पेट्रोलियम डील, रूस के साथ जारी रहेगी. पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं लेकिन इन प्रतिबंधों से भारत बेपरवाह है. अगर अमेरिका कोई प्रतिबंध भी लगाता है तब भी भारत अपनी ही शर्तों पर डील करेगा, यह बात अमेरिका भी जानता है. भारत को नए भागीदारों की तलाश है लेकिन अपनी शर्तों पर.

चीन-रूस की दोस्ती, बढ़ा सकती है भारत के साथ दरार

पूरी दुनिया में रूस का यूक्रेन पर खुला समर्थन देने वाला रुख केवल चीन का मिला है. चीन महाशक्ति है और वह भी प्रतिबंधों से बेपरवाह है. चीन रूस के साथ मजबूती से खड़ा होता है, इस वजह से दोनों देशों के बीच दोस्ती गहरी हो रही है.

भारत से अच्छी दोस्ती क्यों चाहता है अमेरिका?

अमेरिका को एशिया में चीन के खिलाफ एक मजबूत देश चाहिए. ऐसा सिर्फ शक्ति संतुलन के लिए ही नहीं बल्कि व्यापारिक वजहों से भी है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का दबदबा बढ़ रहा है, उसके सामने दीवार बनकर सिर्फ भारत खड़ा हो सकता है. भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान का 'क्वाड' ग्रुप भी इसी वजह से बना है. भारत अमेरिका के लिए हर लिहाज से एक बड़ा बाजार है. अमेरिका किसी भी स्थिति में भारत की नाराजगी मोल नहीं ले सकता है. अगर भारत के खिलाफ अमेरिका जाता है तो उसकी मदद करने वाला एशिया में कोई नहीं है.

रूस और भारत में अगर बढ़ी तल्खी तो क्या वजह होगी?

अगर रूस और भारत एक-दूसरे से नाराज होते हैं तो चीन फैक्टर का दोष सबसे ज्यादा होगा. रूस को चीन से भी दोस्ती बहुत प्यारी है. भारत और चीन एक-दूसरे के चिर प्रतिद्वंद्वी हैं. रूस, चीन का साथ छोड़ेगा नहीं, भारत के लिए यह किसी लिहाज से ठीक नहीं है. भारत की मजबूरी है कि उसे ऐसा भागीदार चाहिए जो चीन के खिलाफ हो. अमेरिका और चीन एक-दूसरे के धुर विरोधी हैं. 

चीन भारत के खिलाफ कुछ भी कर सकता है, ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका और भारत की ओर से संयुक्त रूप से UNSC में 26/11 के गुनहगार साजिद मीर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव लाया गया था, चीन ने वीटो इस्तेमाल करके उसे रोक दिया. दोस्त का दोस्त भी दोस्त होता है. पाकिस्तान का दोस्त चीन, चीन का दोस्त रूस, ऐसे में अब आशंका है कि अगर भारत केवल रूस पर ही निर्भर रहेगा तो यह रणनीतिक रूप से बुद्धिमानी नहीं होगी. यही वजह है कि भारत और अमेरिका, पहले से ज्यादा एक-दूसरे पर भरोसा जता रहे हैं.

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