Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING
  • PHOTOS
  • ENTERTAINMENT

Tinsukia encounter case: 29 साल पहले 5 लोगों की मौत का अब मिला न्याय, भारतीय सेना पर था आरोप, जानें पूरा मामला

Assam News: असम के तिनसुकिया में फरवरी 1994 में चाय बागान मैनेजर की हत्या के बाद 5 लोगों के शव मिले थे, जिनके एनकाउंटर का आरोप सेना पर था.

Tinsukia encounter case: 29 साल पहले 5 लोगों की मौत का अब मिला न्याय, भारतीय सेना पर था आरोप, जानें पूरा मामला

Encounter

FacebookTwitterWhatsappLinkedin

डीएनए हिंदी: Indian Army News- असम के तिनसुकिया जिले में 29 साल पहले मिले 5 लोगों के शव के केस में अब जाकर उनकी फैमिली को न्याय मिला है. इस केस में मृतकों की फैमिली ने भारतीय सेना को 'फर्जी एनकाउंटर' करने का आरोपी बनाया था. गुवाहाटी हाईकोर्ट ने अब इस केस में फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट ने पांचों की मौत सैन्य अभियान के दौरान होने की बात मानते हुए उनमें से हर एक के परिवार को 20 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश भारत सरकार को दिया है. मृतकों के परिवार करीब 3 दशक के लंबे संघर्ष बाद मिले इस न्याय से संतुष्ट नहीं हैं, लेकिन वे यह भी कह रहे हैं कि अब उनमें आगे  लड़ाई लड़ने की हिम्मत नहीं बची है. 

आइए 5 प्वॉइंट्स में जानते हैं क्या था ये पूरा मामला.

1. पहले जान लें कि क्या था पूरा केस

असम के तिनसुकिया जिले में फरवरी 1994 में एक चाय बागान के मैनेजर की हत्या कर दी गई थी. इस हत्या के बाद 17 से 19 फरवरी के बीच 9 लोगों को उनके घरों से हिरासत में लिया गया था. हिरासत में लेने वाले सेना की वर्दी में थे. इनमें से 5 लोगों के शव 23 फरवरी, 1994 को डिब्रू सैखोवा रिजर्व फॉरेस्ट से बरामद हुए थे, जबकि हिरासत में लिए बाकी चार लोग अपने घर लौट आए थे. मरने वालों की पहचान प्रबीन सोनोवाल, प्रदीप दत्ता, देबोजीत बिस्वास, अखिल सोनोवाल और भूपेन मोरान के तौर पर की गई. ये सभी ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) के मेंबर थे. सेना पर इन सभी का फर्जी एनकाउंटर करने का आरोप लगा था.

2. क्या था सेना पर आरोप

आसू के पदाधिकारियों और मृत युवकों के परिजनों ने सेना पर फर्जी एनकाउंटर करने का आरोप लगाया था. दरअसल चाय बागान मैनेजर की हत्या का आरोप उग्रवादी संगठन उल्फा (ULFA) पर लगा था. सेना पर आरोप था कि इन पांच युवकों का फर्जी एनकाउंटर करने के बाद इन्हें उल्फा मेंबर दिखाने की कोशिश की गई है. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन ने पांचों को अपना सांगठनिक शहीद घोषित कर उनके नाम पर शहीद स्मारक का निर्माण कराया.

3. क्या हुआ इस दौरान, कैसे हुई जांच, क्या रहा परिणाम

BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1994 में गुवाहाटी हाईकोर्ट में इन युवकों के बारे में जानकारी के लिए हैबियस कॉर्पस पिटीशन दाखिल की गई. यह पिटीशन पीड़ित परिवार और एक छात्र नेता जगदीश भुइयां ने दाखिल की. इसके बाद कोर्ट ने साल 1995 में सीबीआई जांच का आदेश दिया. सीबीआई ने एक मेजर जनरल समेत सात सैन्य जवानों को हत्या का दोषी बताते हुए कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की. इसके बाद इन सभी पर कोर्ट मार्श की कार्रवाई शुरू की गई. यह कार्रवाई साल 2018 में पूरी हुई, जब इन सभी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. बाद में साल 2019 में सेना के विशेष प्राधिकारी ने इन सातों की अपील की सुनवाई करते हुए उन्हें निर्दोष घोषित कर दिया. इसके बाद पीड़ित परिवारों ने गुवाहाटी हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

4. अब आया है हाई कोर्ट से यह फैसला

इस केस में पिछले बृहस्पतिवार को गुवाहाटी हाई कोर्ट में जस्टिस अचिंत्य मल्ल बुजर बरुआ की बेंच ने फैसला सुनाया. उन्होंने आदेश में लिखा कि इतने पुराने मामले में मौत कानून के बजाय अन्य तरीके से हुई, यह जानने के लिए न्यायिक जांच शुरू करने के बजाय मुआवजा देकर केस बंद करना ज्यादा सही होगा. ऐसे में हम स्वीकार करते हैं कि पांच लोगों की मौत एक सैन्य ऑपरेशन में हुई थी. न्याय के हित में सेना के माध्यम से भारत सरकार को आदेश दिया जाता है कि अगले दो महीने के अंदर प्रत्येक मृतक के परिवार को 20 लाख रुपये की मुआवजा राशि दी जाए.

5. क्या कह रहे हैं मृतकों के परिवार

BBC की रिपोर्ट के मुताबिक, भूपेन मोरान की पत्नी लिलेश्वरी मोरान कहती हैं कि मैं 17 फ़रवरी 1994 की वो सुबह कभी नहीं भूल पाऊंगी, जब मेरे पति को सेना के लोग ले गए थे. उन्होंने कहा, कोर्ट ने अब हमें मुआवजा देने के लिए कहा है. इससे थोड़ा सुकून मिला है कि मेरे पति व अन्य चारों निर्दोष थे. लेकिन हत्या करने वालों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

मृतक प्रदीप दत्ता के भाई दीपक दत्ता कहते हैं कि उस समय प्रदीप की शादी को महज एक महीना हुआ था. उसके शव पर पिटाई को काले निशान थे. नाखून टॉर्चर में उखड़े हुए थे. एक आंख पूरी अंदर धंसी थी. घुटने टूटे हुए थे. ये सब बातें पोस्टमार्टम रिपोर्ट में है. सेना के उन जवानों को सजा मिलनी चाहिए, लेकिन 29 साल की लड़ाई के बाद आए इस नतीजे से अब दोबारा लड़ने की हिम्मत नहीं बची है. कुछ ऐसी ही बात देबोजीत बिस्वास के भाई देबाशीष बिस्वास भी कहते हैं. उन्होंने 29 साल लंबी इस लड़ाई को जिंदगी का सबसे कष्टदायक समय बताया.

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर. 

Advertisement

Live tv

Advertisement

पसंदीदा वीडियो

Advertisement