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हिंदी के सबसे जरूरी कवि हैं ये, खुद ही अपना सरनेम तय करके छुआ कामयाबी का शिखर

हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ था. बचपन में शरारती होने के कारण माता-पिता उन्हें बच्चन कहकर पुकारते थे.

हिंदी के सबसे जरूरी कवि हैं ये, खुद ही अपना सरनेम तय करके छुआ कामयाबी का शिखर

Harivansh rai bachchan

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डीएनए हिंदी. हिंदी साहित्य के 'जरूरी' कवियों की सूची एक नाम के बिना हमेशा अधूरी रहेगी. ये नाम है हरिवंश राय बच्चन. कवि बच्चन की बात होती है, तो सबसे पहले याद आती है मधुशाला. लेकिन बात सिर्फ मधुशाला तक ही सीमित नहीं है. कविता हमें सिर्फ शब्दों का सुख ही नहीं, जिंदगी में उठे तूफान से लड़ने की हिम्मत भी दे सकती है, इस बात को हरिवंश राय बच्चन की लगभग हर कविता साबित करती हैं. उनके जन्मदिन पर एक नजर उनकी जिंदगी के सफर और कुछ बेहद जरूरी कविताओं पर-

खुद चुना अपना सरनेम
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में हुआ था. बचपन में शरारती होने के कारण माता-पिता उन्हें बच्चन कहकर पुकारते थे. हरिवंश राय ने अपने प्यार के इस नाम को हमेशा के लिए अपने साथ जोड़ लिया और हरिवंश राय बच्चन कहलाए. उनकी एम.ए तक की पढ़ाई इलाहाबाद में ही हुई. इसके बाद 1941 से 1957 तक उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ही अंग्रेजी साहित्य पढ़ाया. इसके साथ-साथ वह आकाशवाणी के इलाहाबाद केंद्र से भी जुड़े रहे.

साहित्य अकादमी पुरस्कार और फिल्में
1941 में उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता तेजी सूरी से शादी की थी. जिनसे उनके दो बेटे भी हुए अमिताभ बच्चन और अजिताभ बच्चन. 1958 में हरिवंश राय बच्चन अपनी पीएचडी पूरी करने के लिए इंग्लैंड चले गए.  यहां कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य पर शोध किया. कैम्ब्रिज से वापस आने के बाद भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में उनकी नियुक्ति हो गई. वह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे और 1976 में हरिवंश राय बच्चन को पद्मभूषण की उपाधि मिली. इससे पहले उनको दो चट्टाने के लिए 1968 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था. हरिवंश राय बच्चन ने फिल्मों के लिए भी लिखा. कम लोग जानते होंगे कि फिल्म सिलसिला का सुपरहिट सॉन्ग रंग बरसे भीगे चुनर वाली हरिवंश राय बच्चन ने ही लिखा था, जिसे उनके बेटे अमिताभ बच्चन ने आवाज दी थी.

मधुशाला ने कर दिया अमर
1935 में छपी 'मधुशाला' बच्चन की पहली किताब मानी जाती है. इसके प्रकाशन के साथ ही 'बच्चन' साहित्य जगत पर छा गए. हालांकि इसके साथ विवाद भी जुड़े. कुछ लोगों ने इसे उमर खैय्याम की रुबाइयों की कॉपी कहा. कुछ ने इसमें दोहराव की आलोचना की. कुछ को इस कविता में मदिरा या मधुशाला की तारीफ करने से आपत्ति थी. उस दौर में लोग एक ऐसी कविता को अपनाने के लिए तैयार नहीं थे, जिसमें मदिरा का प्रचार किया गया हो. लोगों के लिए नशा और आलिंग्न जैसे शब्दों का इस्तेमाल कविता में बिलकुल नया था. उस दौर में देशभक्ति से ओत प्रोत कविताओं को ज्यादा पसंद किया जाता था. लेकिन जैसे-जैसे कवि सम्मेलनों में मधुशाला का काव्य पाठ शुरू हुआ हर कोई इस कविता से मंत्रमुग्ध होता गया.

जब पहली बार किया मधुशाला का पाठ
बताया जाता है कि जब पहली बार कवि बच्चन ने खुद बनारस के एक कवि सम्मेलन में मधुशाला का पाठ किया था, तो श्रोता एक बार को स्तब्ध हो गए थे या कहें कि कविता में ही खो गए थे और फिर जिस तरह इस कविता को प्रशंसा मिली, वो आज तक जारी है. आज 86 साल बाद भी ये कविता युवाओं के बीच सबसे ज्यादा मशहूर कविताओं में से एक है.

मधुशाला की चुनिंदा रुबाइयों की रिकॉर्डिंग एचएमवी द्वारा रिलीज की गई थी. इसके लिए चुनी गई इन 20 रुबाइयों को मन्ना डे ने आवाज दी थी. इसमें से पहली रुबाई खुद हरिवंश राय बच्चन की आवाज में थी. इसके लिए म्यूजिक जयदेव ने दिया था. हरिवंश राय बच्चन के बेटे और महान अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी कई मौकों पर मधुशाला का पाठ किया है. इनमें सबसे खास है न्यूयॉर्क में लिंकन सेंटर में अमिताभ बच्चन द्वारा किया गया मधुशाला का पाठ.

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