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Bihar Politics: नीतीश कुमार के 17 साल का ‘सुशासन’! जानिए बिहार में आई कितनी ‘बहार’

बिहार की राजनीति एक बार फिर बदलाव के दौर में है. नीतिश कुमार BJP नेतृत्व वाला NDA छोड़कर दोबारा RJD के साथ वाले महागठबंधन का हिस्सा बन गए हैं. साथ ही वे 8वीं बार मुख्यमंत्री बने हैं. पिछले 17 साल से अलग-अलग गठबंधनों के साथ नीतिश ही अधिकतर समय इस पद पर रहे हैं. उनके समर्थक इस दौर को बिहार में 'सुशासन' का दौर बताते हैं. आइए जानते हैं इस दावे का विश्लेषण करती ये रिपोर्ट...

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Bihar Politics: नीतीश कुमार के 17 साल का ‘सुशासन’! जानिए बिहार में आई कितनी ‘बहार’
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डीएनए हिंदी: नीतीश कुमार (Nitish Kumar) आठवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री बन गए है. पिछले 17 साल से अलग-अलग गठबंधनो के साथ ज्यादातर समय नीतिश कुमार ही मुख्यमंत्री बने रहे हैं. नीतिश कुमार के समर्थक उन्हे करीब एक दशक से देश के पीएम पद का दावेदार मानते रहे हैं. बिहार में उनके किए गए कार्यकाल को ‘सुशासन’ ब्रांड किया जाता रहा है. नीतिश के सुशासन को आंकने के लिए हमने साल 2004-05 से अब तक के आकड़ों को खंगालने की कोशिश की है. आइए देखते हैं कि बिहार में नीतिशराज में कितनी ‘बहार’ आई है.

जंगलराज में कितनी कमी आई? 

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के शासन को बिहार में नीतिश और बीजेपी दोनो जंगलराज कहकर बुलाते रहे हैं, तो क्या नीतिश के अपने कार्यकाल में इस जंगलराज में कोई कमी आई? आंकड़े बताते हैं कि साल 2020 में बिहार उन गिने-चुने राज्यों में था, जहां साल दर साल ‘हिंसक अपराधों’ (Violent Crimes) में बढ़ोतरी होती रही.

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साल 2018 में जहां हिंसक अपराधों की संख्या  44,407 थी, वहीं साल 2020 में ये बढ़कर 51,116 हो गए. क्राइम के मामले में हमेशा बिहार के साथ कदमताल करने वाले पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में इन्ही तीन सालों में हिंसक अपराधों की संख्या कम हुई. साल 2018 में जहां यूपी में कुल 65,155 हिंसक अपराध हुए थे, वहीं साल 2020 में कम होकर 51,983 रह गए.

वहीं साल 2005 से तुलना करने पर हम पाते हैं कि बिहार में 24,073 हिंसक अपराध होते थे. जो पूरे देश के हिंसक अपराधों का 11.87 प्रतिशत हिस्सा थे.

वहीं, साल 2020 में हिंसक अपराधों की संख्या बढ़कर 51,116 हो गई, जो देश के कुल ऐसे अपराधों (40,006) का 12.77 प्रतिशत है. इसका मतलब है कि पिछले 17 साल में हिंसक अपराध देश के तुलना में बढ़े हैं.  

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प्रति व्याक्ति आय में बिहार अभी भी बहुत पीछे

साल 2004-05 में बिहार की प्रति व्याक्ति आय महज 7,914 रुपये थी और देश की औसत प्रति व्यक्ति आय 24,143 रुपये थी. साल 2019-20 तक आते आते जहां बिहार की आय बढ़कर 46,292 रुपये ही पहुंची, वहीं देश की प्रति व्याक्ति आय बढ़कर 1,28,829 रुपये हो चुकी है.  

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मगर इसमें गौर करने की बात ये है कि देश 17 साल पहले भी बिहार की औसत आय देश की एक तिहाई थी और आज भी करीब करीब वहीं खड़ी है. इस वक्त बिहार बड़े राज्यों में  सबसे कम प्रति व्याक्ति आय वाला प्रदेश है.  

बिहार की प्रति व्यक्ति बिजली उपलब्धता राष्ट्रीय औसत से आधी 

बिजली की उपलब्धता किसी भी राज्य के विकास का बड़ा आधार है. साल 2004-05 में बिहार में जहां प्रति व्यक्ति बिजली की उपलब्धता 78 किलोवाट प्रति घंटा (KW/h) थी, वहीं अब ये 7 गुना बढ़कर 533 (KW/h) हो चुकी है. हालांकि ये अब भी राष्ट्रीय औसत की आधी ही है. साल 2004-05 में भारत में प्रति व्यक्ति बिजली की उपलब्धता 313 KW/h थी, जो अब बढ़कर तीन गुना होकर 1031 KW/h पर पहुंच गई है.

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कितने बेहतर हुए रोड नेटवर्क 

आधारभूत ढांचे के बिना देश का विकास नहीं हो सकता. इस ढांचे के सबसे अहम हिस्सों में रोड नेटवर्क भी शामिल है. साल 2005 में बिहार में रोड नेटवर्क 1,19,958 किलोमीटर था, जबकि उस वक्त देश में कुल  29,62,463 किलोमीटर सड़क बन चुकी थी. इस हिसाब से उस समय देश का रोड नेटवर्क बिहार के मुकाबले 24 गुना ज्यादा था. 

साल 2018 तक बिहार में सड़कों का जाल 2.9 लाख किमी तक पहुंच गया, वहीं देश का नेटवर्क 18 गुना बढ़कर 53.15 लाख किमी को पार कर चुका है. 

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बिहार में कितनी बेहतर हुईं स्वास्थ्य सेवाएं 

नीति आयोग द्वारा जारी हेल्थ इंडेक्स में बड़े राज्यों में बिहार का स्थान सिर्फ उत्तर प्रदेश से ही बेहतर है. तो आइए देखते हैं कि स्वास्थ्य सेवाओं में नीतिश कुमार के राज में कितनी प्रगति हुई. 

IMR 

NFHS (National Family Health Survey) बताते हैं कि बिहार की शिशु मृत्यु दर (IMR) साल 2005-06 में 61 थी, जो कि साल 2019-21 में हुए सर्वे में बेहतर होकर 32 पर पहुंच गई है.  

वहीं इसी सर्वे में 2005-06 में भारत की औसत शिशु मृत्यु दर 58 थी, जो अब ताजा सर्वे में 32 पर पहुंच गई है. यहां पर बिहार ने देश की तुलना में बेहतर सुधार दिखाया है.

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Institutional Birth

अस्पतालों में बच्चों के जन्म को Institutional Birth के नाम से जाना जाता है. डॉक्टरों की देखरेख में प्रसव होने पर जच्चा बच्चा की जान जाने की आशंका कम हो जाती है.

आकड़े बताते हैं कि साल 2005-6 में बिहार में महज 20 प्रतिशत प्रसव ही अस्पतालों मे होते थे, जो कि अब करीब 3.5 गुना बढ़कर 76 प्रतिशत पर पहुंच गए है. मगर अब भी ये देश की औसत से 13 प्रतिशत कम है.  

साल 2005-06 देश मेंInstitutional  Birth का प्रतिशत 39 था, जो कि अब बढ़कर दोगुने से ज्यादा (89 प्रतिशत)  हो चुका है.

Total Fertility Rate (TFR)

प्रति महिला बच्चों की संख्या को Total Fertility Rate (TFR) के नाम से जाना जाता है. साल 2005-06 में हुए NFHS-3 सर्वे में जहां प्रति महिला 4 बच्चों का जन्म होता था, जो कि अब कम होकर 2.98 रह गया है.

वहीं देश साल 2005-06 में देश का TFR 2.7 था, जो कि अब कम होकर 1.99 रह गया है. बिहार में अभी भी प्रति महिला एक बच्चा ज्यादा पैदा हो रहा है.

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