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Muqtada al-Sadr: कौन हैं मुक्तदा अल-सदर? इनके इस्तीफे से इराक में क्यों बरपा है हंगामा

Who is Muqtada al Sadr: मुक्तदा अल सदर इराक के प्रभावशाली शिया धर्मगुरु हैं. यह राजनीतिक रुप से भी काफी सक्रिय हैं. साल 2021 में जब चुनाव हुए तो मुक्तदा अल-सदर का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा था.

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डीएनए हिंदीः इस्लामिक देश इराक (Iraq Political Crisis) में हालात एक बार फिर बिगड़ गए हैं. राजधानी बगदाद में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन पर धावा बोल दिया और कब्जा करने की कोशिश की. अभी इराक के हालात काफी खराब बताए जा रहे हैं. इराक की सेना ने कर्फ्यू का ऐलान कर दिया है और हिंसक प्रदर्शनों को रोकने का प्रयास किया जा रहा है. इन प्रदर्शनों में काफी सरकारी संपत्ति को नुकसान हुआ है और 20 से ज्यादा लोगों की मौतें हो चुकी है. सोमवार को ताकतवर शिया मुस्लिम धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर (Muqtada Al Sadr) ने राजनीति छोड़ने का ऐलान कर दिया. इसके बाद लोग सड़कों पर उतर आए. आखिर ये मुक्तदा अल सदर हैं कौन और उनके राजनीति छोड़ने पर इतना विवाद क्यों हो रहा है?

कैसे हैं इराक के हालात?
बता दें कि इराक में 10 महीनों से राजनीतिक अस्थिरता का माहौल है. वहां न तो कोई स्थायी प्रधानमंत्री है और न ही कोई मंत्रिमंडल. ऐसे में सोमवार को जैसे ही धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर ने राजनीति छोड़ने का ऐलान किया, तो हालात और बिगड़ गए. अभी तक मुस्तफा अल-कादिमी कार्यकारी प्रधानमंत्री हैं. पिछले साल अक्टूबर में हुए चुनाव में मुक्तदा अल-सद्र का गुट 329 सीटों वाली संसद में 73 सीटों के साथ सबसे बड़ा गुट बना. हालांकि, इसे फिर भी बहुमत हासिल नहीं हुआ और सरकार बनाने में असमर्थ रहा.  

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कौन हैं मुक्तदा अल-सदर?
मुक्तदा अल सदर (Muqtada Al Sadr) इराक के प्रभावशाली शिया धर्मगुरु हैं. यह राजनीतिक रुप से भी काफी सक्रिय हैं. साल 2021 में जब चुनाव हुए तो मुक्तदा अल-सदर का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा था. मुक्तदा अल सदर को मरजा कहा जाता है. मरजा का मतलब होता है- वो मुजतहिद-ए-आज़म (नए रास्ते बताने वाला सबसे बड़ा विद्वान) जिसे दूसरे सभी विद्वान - एक महान विद्वान के रूप में स्वीकार करते हैं और उनका अनुसरण करते हैं. मुक्तदा सुन्नी विरोध के साथ ही इराक और ईरान विरोधी एजेंडे पर काम कर रहे हैं. अल-सद्र खुद शिया हैं और उनके समर्थक भी शिया समुदाय से आते हैं. हालांकि, फिर भी ये लोग उन शिया पार्टियों का विरोध करते हैं, जिनके ईरान के साथ अच्छे संबंध हैं. अल-सद्र चाहते हैं कि इराक की राजनीति में ईरान की दखलअंदाजी कम से कम हो जाए. 

अल-सदर अपने पिता और अपने ससुर के विचारों से बहुत प्रभावित हैं. सदर के पिता, मोहम्मद सादिक और ससुर मोहम्मद बाकिर, दोनों अत्यधिक प्रभावशाली धर्मगुरु थे. इराक में कई शिया उन्हें गरीबों की आवाज उठाने वाला नेता मानते हैं. सदर दरअसल, साल 2003 में सद्दाम हुसैन के पतन के बाद चर्चा में आए थे. सद्दाम हुसैन इराक़ के एक सुन्नी तानाशाह था जबकि इराक़ एक शिया बहुल देश है. मुक्तदा अल-सदर के पिता ने सद्दाम की सुन्नी तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाई थी. उनका परिवार कभी इराक़ छोड़कर नहीं भागा और यही कारण है कि लोग उनकी इज्जत करते हैं.

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सद्दमा हुसैन की मौत के बाद चर्चा में आए
साल 2003 में सद्दाम हुसैन के पतन के बाद अल-सदर चर्चा में आए थे और शिया सपोर्ट के साथ आज वो इराक का सबसे चर्चित चेहरा हैं. पूरी दुनिया की भौगोलिकता पर नजर डालें तो शिया मुसलमानों का दो सबसे बड़ा धार्मिक केंद्र हैं- इराक़ और ईरान.. इन्हीं दो देशों में शियाओं के दो प्रमुख धार्मिक केंद्र, ईरान का कुम और इराक का नजफ है. धार्मिक केंद्रों पर धर्म गुरुओं का अपना वर्चस्व भी रहता है. ईरान के हेड आयतुल्लाह अली ख़ामेनेई हैं तो वहीं इराक़ के नजफ के मुक़्तदा अल सदर हैं. नजफ में इमाम अली मस्जिद विशेष रूप से शिया मुसलमानों के लिए सबसे पवित्र स्थल है. इसमें हज़रत अली का मकबरा है.

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अयातुल्ला खुमैनी से होती है तुलना
मुक्तदा अल-सदर पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो अपनी छवी इराक़ में ठीक उसी तरह की बनाना चाहते हैं जैसे अयातुल्ला खुमैनी ईरान में बना चुके हैं. वो शियाओं के सबसे बड़े धर्मगुरु बनना चाहते हैं. अयातुल्लाह रूहुल्लाह ख़ुमैनी शिया बहुल ईरान में राजनीतिक और धार्मिक तौर पर बहुत बड़े नाम हैं. उन्हें ईरान में इस्लामी गणराज्य की स्थापना के लिए जाना जाता है. उनका असली नाम रुहोल्ला ख़ुमैनी है. वो मध्य ईरान के कोह्मेन में पैदा हुए थे. उन्होंने 1979 में ईरान को दुनिया का पहला इस्लामी गणतंत्र बनाया था. इसी के बाद शिया मुस्लमान उनको एक रहनुमा के तौर पर देखने लगे थे.

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