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Sardar Patel की सलाह और 15 दिन की हड़ताल, जानिए कैसे हुई Amul कंपनी की शुरुआत

How Amul Was Founded in Gujarat: गुजरात के पशुपालकों और किसानों ने सरदार पटेल से मदद मांगी थी. सरदार पटेल ने ऐसी सलाह दी जो आगे चलकर अमूल की स्थापना की वजह बनी.

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Sardar Patel की सलाह और 15 दिन की हड़ताल, जानिए कैसे हुई Amul कंपनी की शुरुआत

कुछ यूं रहा है अमूल का सफर

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डीएनए हिंदी: दूध के दाम बढ़ने के बाद अमूल (Amul) कंपनी एक बार फिर से चर्चा में हैं. वर्तमान में अमूल ही देश की सबसे बड़ी मिल्क प्रोडक्ट (Milk Product) वाली कंपनी है. अमूल कंपनी दूध, दही, पनीर से लेकर आइसक्रीम और कई अन्य मिल्क प्रोडक्ट बनाती है. क्या आप जानते हैं कि इस कंपनी की शुरुआत अंग्रेजों के जमाने में ही हो गई थी? गुजरात में दूध बेचने वाले किसानों और पशुपालकों ने कुछ समस्याओं को लेकर विरोध किया लेकिन बात नहीं बनी थी. यहीं सरदार पटेल ने किसानों को सलाह दी कि वे खुद अपनी कंपनी बनाने की दिशा में काम करें. सरदार पटेल की इसी सलाह ने अमूल की नींव डाल दी.

बात है देश को आजादी मिलने के कुछ साल पहले की. अंग्रेज भारत से अपना बोरिया-बिस्तर समेटने की तैयारी में थी. दूसरी तरफ, गुजरात के कैरा जिले के पशुपालक दूध के दलालों से परेशान थे. दूध बेचकर अपना घर चलाने वाले इन पशुपालकों को सही पैसे नहीं मिल पाते थे जबकि ये बिचौलिए मोटा कमीशन कमा रहे थे. ये बिचौलिए कम दामों पर दूध खरीदते और अपना मोटा मुनाफा लेकर दूध बेच देते.

बॉम्बे मिल्क स्कीम ने पशुपालकों को पहुंचाना नुकसान
साल 1945 में कैरा के किसानों को समझ आने लगा कि उन्हें कुछ न कुछ तो करना ही होगा. किसान परेशान ही थे कि उस समय बॉम्बे की सरकार ने बॉम्बे मिल्क स्कीम की शुरुआत की. इसके तहत, गुजरात के आणंद ने बॉम्बे तक दूध ले जाना था. उस समय के ट्रांसपोर्ट के हिसाब से जितना समय लगना था उतने में दूध खराब हो जाता. ऐसे में दूध को पॉश्चराइज करने की बात सामने आई.

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इस समस्या का हल निकालने के लिए बॉम्बे की सरकार ने पॉलसन लिमिटेड से एक समझौता किया. इस समझौते में कहा गया कि पॉलसन लिमिटेड ही दूध की सप्लाई करेगा. हालांकि, इस समझौते में दूध खरीदने की कीमत के बारे में कुछ तय नहीं हुआ. लिहाजा झटका लगा किसानों और पशुपालकों को. औने-पौने दाम पर दूध खरीदा जाता था और उसी दूध को बॉम्बे भेजा जाता था.

सरदार पटेल ने दी कॉपरेटिव बनाने की सलाह
खुद गुजरात से ही आने वाले सरदार पटेल उन दिनों देश के कद्दावर नेता थे. वह कई आंदोलनों की अगुवाई कर चुके थे. कैरा के किसान भी उनसे मदद मांगने पहुंचे. सरदार पटेल उन दिनों कॉपरेटिव यानी सहकारी समितियों को बढ़ावा दे रहे थे. ऐसे में सरदार पटेल ने किसानों को सुझाव दिया कि वे मिलकर एक सहकारी समिति बनाएं और खुद का पॉश्चराइजेशन प्लांट लगा लें. जिससे वे सीधे बॉम्बे स्कीम में दूध सप्लाई कर सकेंगे.

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सरदार पटेल ने किसानों को सलाह दी कि पहले तो कॉपरेटिव बनाने के लिए सरकार से अनुमति मांगिए लेकिन अगर अनुमति न दी जाए तो ठेकेदारों को दूध देना बंद कर दीजिए. सरदार पटेल ने किसानों को इसके खतरे भी समझाए कि अपनी मांग मनवाने के लिए उन्हें प्रदर्शन और हड़ताल करनी पड़ सकती है जिसमें नुकसान भी होगा. हालांकि, लंबे समय से नुकसान झेल रहे किसान एक और नुकसान के लिए तैयार थे.

किसानों के आगे झुकी ब्रिटिश हुकूमत
सरदार पटेल ने उस समय के अपने सहयोगी मोरारजी देसाई को कैरा भेजा कि वह कॉपरेटिव बनाने में किसानों की मदद करें. 4 जनवरी 1946 को एक बैठक बुलाई गई. इसी बैठक में फैसला हुआ कि  कैरा जिले के हर गांव में एक-एक समिति बनाई जाएगी. ये समितियां एक यूनियन को ही दूध की सप्लाई करेंगी और सरकार को दूध खरीदने के लिए इसी यूनियन से कॉन्ट्रैक्ट करना होगा. हालांकि, सरकार ने कॉपरेटिव बनाने की मंजूरी नहीं दी और किसानों ने हड़ताल शुरू कर दी.

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यह हड़ताल 15 दिनों तक चली. इन 15 दिनों में कैरा के किसानों और पशुपालकों ने अपने यहां का दूध बाहर नहीं भेजा. इसका नतीजा यह हुआ कि बॉम्बे तक दूध की सप्लाई ठप हो गई और बॉम्बे मिल्क स्कीम खतरे में आ गई. आखिर में अंग्रेजों को झुकना पड़ा और किसानों की मांग स्वीकार कर ली गई. मांग स्वीकार होने के बाद कैरा जिला कॉपरेटिव दूध उत्पादक संगठन की नींव पड़ी और 14 दिसंबर 1946 को इसे आधिकारिक रूप से रजिस्टर कर दिया गया. 1948 में इसी संगठन ने बॉम्बे स्कीम के लिए दूध की सप्लाई शुरू कर दी. तब दो गांवों के कुछ किसान हर दिन लगभग 250 लीटर दूध इकट्ठा कर रहे थे. जल्द ही इस संगठन से 400 से ज्यादा किसान जुड़ गए. अब हालत यह हो गई कि दूध ज्यादा इकट्ठा होने लगा और खपत तो सीमित ही थी. अब दूध खराब होने का खतरा मंडराने लगा.

डॉ. वर्गीज कुरियन ने बदल दी तकदीर
यहां एंट्री हुई दुग्ध क्रांति के हीरो डॉ. वर्गीज कुरियन की. वह आए तो थे किसानों की मदद करने लेकिन उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी कैरा जिला कॉपरेटिव के नाम कर दी. डॉ. वर्गीज कुरियन ने ही कैरा जिला कॉपरेटिव का नाम बदलकर अमूल रख दिया. उन्होंने कई तकनीकी पहलुओं पर काम किया. डॉ. कुरियन ने न सिर्फ़ किसानों की मदद की बल्कि दूध की मार्केटिंग पर भी काम किया.

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साल 1955 में डॉ. कुरियन के एक दोस्त एच एम दलाया ने भैंस के दूध से मिल्क पाउडर और कंडेक्ट मिल्क बनाने की शुरुआत की. पहले यह पाउडर सिर्फ़ गाय के दूध से ही बनता था. आणंद में ही अमूल ने अपना पहला मिल्क पाउडर प्लांट लगाया. देखते ही देखते गुजरात दुग्ध उप्तापदन का गढ़ बनने लगा. साल 1956 में ही अमूल हर दिन 1 लाख लीटर दूध की प्रोसेसिंग करने लगा.

आज की तारीख में गुजरात कॉपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड देश का सबसे बड़ा फूड प्रोडक्ट मार्केटिंग संगठन है. साल 2021-22 में इसका कारोबार 6.2 बिलियन डॉलर का था. यह संगठन हर दिन 2.63 करोड़ लीट दूध खरीदता है. अब अमूल दूध के अलावा मिल्क पाउडर, दही, चीज़, पनीर और तमाम मिल्क प्रोडक्ट बना रहा है.

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