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Women Health: महिलाओं से दूर हुई पैड, पैंटी और पढ़ाई, मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ा बुरा असर

कोविड का असर समाज के हर हिस्से पर पड़ा है. स्त्रियां ख़ासकर गरीब तबके की महिलाओं के सम्पूर्ण स्वास्थ्य पर इसका गहरा असर पड़ा है.

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डीएनए हिंदी : जर्मनी की न्यूज वेबसाइट dw.com की 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में केवल 37% महिलाओं को हॉस्पिटल या चिकिस्तकीय सुविधाएं मिल पाती हैं. जनवरी 2022  में SRL  डायग्नोस्टिक्स के हवाले से इकोनॉमिक टाइम्स के हेल्थ सेगमेंट में आई एक रपट बताती है कि पंद्रह साल से कम उम्र वाली भारत की 46% लड़कियां एनीमिया का शिकार हैं. SRL डायग्नोस्टिक्स ने यह डाटा 8,57,003 सैम्पल के आधार पर तैयार किया है. ये सैम्पल 2015 से 2021 के दौरान कलेक्ट किए गए थे. 

ऊपरी दोनों ही डाटा इस बात का समर्थन करते हैं कि भारत की सामाजिक संरचना में महिलाओं का स्वास्थ्य अक्सर पीछे रह जाता है. पिछले दो सालों से हेल्थ केयर सेगमेंट पूरी तरह से चरमराया है. इन हालात में महिलाओं के स्वास्थ्य की देखभाल पर कितना असर पड़ा? डीएनए हिंदी की यह ख़ास रपट -

कोविड का सबसे तीखा असर सबसे ग़रीब महिलाओं पर पड़ा है

 जुलाई 2021 में UN Women ने एक कोविड में औरतों के स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा था कि, "कोविड की दूसरी लहर से भारत में बहुत नुक़सान हुआ. सबसे अधिक समस्याएं सबसे ग़रीब और हाशिये की लड़कियों और महिलाओं को हुईं. वे रोज़ ज़िंदगी जीने की लड़ाइयां लड़ते हुए कोविड के संभावित तीसरे लहर से लड़ने के लिए भी कमर कस रही हैं. कोविड लॉकडाउन के दौरान हुई बंदी ने नैपकिन और पैड सरीखी चीज़ों के साथ-साथ अन्य ज़रूरी चीज़ों की उपलब्धता पर भी प्रश्न वाचक चिह्न लगा दिया था. 

कोविड के दौरान स्त्रियों की हालात का सही जायज़ा लेने के लिए, औरतों के यौन  स्वास्थ्य सह जनन अधिकार और स्वास्थ्य के लिए काम करने वाली संस्था  सच्ची सहेली की प्रमुख और स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर सुरभि सिंह से बात की गई तो हाशिये की औरतों के बाबत वे छूटते ही कहती हैं, "लॉकडाउन के दौरान समाज के गरीब तबके की कई महिलाओं को पैंटी जैसी ज़रूरी चीज़ें तक उपलब्ध नहीं थीं. चूंकि इन महिलाओं की अधिकतर खरीददारी हाटों या साप्ताहिक बाज़ार से होती है, लॉकडाउन में इन बाज़ारों का न लगने से उनके लिए पैंटी ख़रीदना तक मुश्किल हो रहा था. ऑनलाइन शॉपिंग कई बार इन समुदाय की स्त्रियों की पहुंच से बाहर रहता है और दुकानों से खरीदने का पैसा उनके पास नहीं होता है. "

ठीक यही बात  यौन अधिकारों और सेक्स के सामान्यीकरण की दिशा में काम करने वाली संस्था लव मैटर्स इंडिया की प्रमुख वीथिका यादव कहती हैं. वीथिका कहती हैं, "कई परिवारों में आय का स्रोत ख़त्म होने या कम होने का सीधा असर स्त्रियों और लड़कियों के स्वास्थ्य पर पड़ा है. गरीब तबकों में जहां पैड या नैपकिन पर हुए ख़र्च को पहले ही व्यर्थ का खर्च माना जाता था, वहां सबसे पहले सेनेटरी नैपकिन सरीखी चीज़ों की ख़रीददारी बंद हुई. जाहिर सी बात है कि इससे लड़कियों का मेंस्ट्रुअल हेल्थ जोखिम में पड़ गया था."

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(वीथिका यादव, कंट्री हेड, लव मैटर्स इंडिया)

कोविड में बढ़े अनसेफ अबॉर्शन के मामले

जुलाई  2020 की ब्रिटिश अख़बार गार्डियन की एक रपट के मुताबिक़ कोविड की पहली लहर में भारत में अनसेफ़ एबॉर्शन/ गर्भ समापन की दर बहुत अधिक बढ़ गई थी क्योंकि इसके लिए ज़िम्मेदार सभी सरकारी संस्थाएं लॉकडाउन की अवधि में बंद थीं.

 लव मैटर्स इंडिया की प्रमुख वीथिका यादव कहती हैं कि "कोविड की पहली लहर में सेक्सुअल एंड रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड राइट्स (Sexual and Reproductive Health and Rights (SRHR) को आवश्यक सेवाओं में नहीं रखा गया था. इसका सीधा नुकसान औरतों और लड़कियों को उठाना पड़ा. बाज़ार में कॉन्ट्रासेप्टिव की सप्लाई पर भी बहुत असर देखा गया. कॉन्ट्रासेप्टिव ऑप्शंस यानी गर्भनिरोध के विकल्प बहुत अधिक उपलब्ध नहीं थे. इसकी वजह से कई बार अनवांटेड प्रेग्नेन्सी (अवांछित गर्भ) का ख़तरा बढ़ा. साथ ही, सप्लाई कम होने की वजह से  समय से सेवाएं मिलने में भी दिक्कत हुई. इन सब चीज़ों ने अवांछित गर्भ और उससे जुड़ी हुई असुरक्षित गर्भसमापन की समस्या को काफ़ी बढ़ा दिया."

इस सवाल के जवाब में डॉक्टर सुरभि सिंह कहती हैं कि "लॉकडाउन लगने के बाद मेरे कई पेशेंट्स को एंटी नेटल केयर यानी प्रसव से पहले की देखभाल मिलने में असुविधा हुई.  हॉस्पिटल के अचानक कोविड स्पेशल बना दिए जाने पर उन्हें कई बार समय से पहले हॉस्पिटल छोड़ना पड़ा. कई सेक्सुअली एक्टिव लड़कियों को समय से प्रेगनेंसी प्रिवेंशन नहीं  उपलब्ध हो पाया जिससे अवांछित गर्भ की समस्याएं काफ़ी बढ़ी."

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(डॉक्टर सुरभि सिंंह, स्त्री रोग विशेषज्ञ सह प्रमुख, सच्ची सहेली संस्था) 

कोविड में लड़कियों के मेंस्ट्रुअल हेल्थ के बिगड़ने के बाबत डॉक्टर सुरभि बताती हैं कि पूरे लॉकडाउन की अवधि में उनके पास मेंस्ट्रुल हेल्थ के बहुत सारे केसेज आये. पहले लॉकडाउन में कॉन्डोम और पैड की अनुपलब्धता पर बात करते हुए डॉक्टर सुरभि कहती हैं कि इस वजह से UTI ( urinary tract infection) और PID (Pelvic inflammatory disease ) के मामले आम दिनों से अधिक आए.

घरेलू हिंसा के चलते महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा बुरा असर

राष्ट्रीय महिला आयोग के हवाले से UN Women की वेबसाइट ने लिखा कि कोविड के आने के बाद फरवरी से मई 2020 के दौरान भारत में घरेलू हिंसा के मामले ढाई गुना बढ़े हैं. जून 2021 में  पार्टनरशिप फॉर मैटरनल न्यूबॉर्न एंड चाइल्ड हेल्थ (PMNCH) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के साझा सर्वे के मुताबिक़ महिलाएं बड़ी संख्या में हिंसा और मानसिक पीड़ा का शिकार हो रही हैं. तक़रीबन 30000 महिलाओं और युवाओं के बीच लिए गए इस सर्वे में देश के नौ राज्यों की लड़कियों और महिलाओं ने मौखिक और शारीरिक हिंसा का शिकार होने की बात की.

वीथिका मानती हैं कि कोविड ने स्त्रियों की स्थिति पहले से अधिक बिगाड़ दी है. वे भारतीय सामाजिक संरचना में औरतों के कंधो पर पड़ने वाले दुहरे बोझ की ओर इशारा करती हैं. साथ ही लगातार स्कूल और कॉलेज के बंद होने से लड़कियों की पढ़ाई छूटने के ख़तरे और डर की बात भी करती हैं. गौरतलब है जनवरी 2021 में राष्ट्रीय शिक्षा अधिकार मंच (National Right to Education forum) ने चिंता जताई थी कि दस करोड़ लड़कियों का स्कूल छूट सकता है.

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