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क्या मुझे उसके साथ सोना चाहिए था? जानें, आखिर यह द्वंद्व क्यों आया

DNA Lit Daily Story: हालांकि किसी कस्टमर से निजी रिश्ते बनाना कंपनी के नियमों के खिलाफ है. फिर भी कथावाचक उस महिला का आमंत्रण स्वीकार कर लेता है और महिला के आमंत्रण पर उसके घर जाता है. पढ़ें इसके बाद क्या हुआ.

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क्या मुझे उसके साथ सोना चाहिए था? जानें, आखिर यह द्वंद्व क्यों आया

जापानी कथाकार हारुकी मुराकामी की कहानी 'एक खिड़की' के आधार पर एआई की परिकल्पना.

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दूसरी किस्त पढ़ते हुए आपने यह तो महसूस कर लिया होगा कि कथावाचक को यह नौकरी बहुत जम नहीं रही. पर पत्र लिखते-लिखते यह एक महिला से लगाव महसूस करने लगता है. उस महिला को जब पता चलता है कि कथावाचक 'पेन राइटर्स' की नौकरी छोड़ने जा रहा तो वह उसे अपने घर पर हैम्बर्गर खाने का न्यौता देती है.

हालांकि किसी कस्टमर से निजी रिश्ते बनाना कंपनी के नियमों के खिलाफ है. फिर भी कथावाचक उस महिला का आमंत्रण स्वीकार कर लेता है और महिला के आमंत्रण पर उसके घर जाता है. पढ़ें इसके बाद क्या हुआ.

एक खिड़की (अंतिम किस्त)

हैम्बर्गर स्टेक. मुझे वास्तव में उस महिला द्वारा बनाया गया हैम्बर्गर स्टेक खाने का अवसर मिला, शुरुआत में जिसको उल्लिखित पत्र संबोधित था.

वह बत्तीस वर्ष की थी, उसके कोई बच्चे नहीं थे और उसके पति ऐसी कंपनी में काम करते थे जो सामान्यतः देश में पांच सबसे अधिक जानी मानी कंपनियों में एक थी. जब मैंने उसे अपने अंतिम पत्र में सूचित किया कि मैं यह नौकरी महीने के अंत में छोड़ दूंगा तो उसने मुझे लंच के लिए आमंत्रित किया.
‘मैं तुम्हारे लिए एक पूर्णतः सामान्य हैम्बर्गर स्टेक बनाऊंगी’ उसने लिखा.

सोसायटी के नियमों में प्रतिबंध के बावजूद मैंने उसका निमंत्रण स्वीकार करने का निर्णय किया. बाइस वर्ष के युवामन की जिज्ञासा को ठुकराया नहीं किया जा सकता था.

उसका अपार्टमेंट ओडाक्यू रेललाइन के सामने था. कमरे एक संतानविहीन दंपति के घर की भांति सुव्यवस्था लिए हुए थे. न फर्नीचर, न लाइट फिटिंग्स और न महिला का स्वेटर ही कुछ विशेष महंगे प्रकार के थे, किंतु वे पर्याप्त अच्छे थे. हमने आपसी आश्चर्य से शुरुआत की - मैं उसके अपेक्षाकृत युवा दिखने के कारण और वह मेरी वास्तविक उम्र के कारण. सोसायटी अपने पेन मास्टर्स की उम्र नहीं बताया करती थी.

एक बार जब हमने एक-दूसरे को आश्चर्यचकित करना समाप्त कर लिया, मुलाकात का सामान्य तनाव दूर हो गया. हमने दो ऐसे भावी यात्रियों जैसा महसूस करते हुए, जिन्होंने एक ही ट्रेन पकड़ने में देर कर दी हो, हैम्बर्गर स्टेक खाए और कॉफी पी. यदि ट्रेंस की बात की जाए तो उसके तीसरी मंजिल के अपार्टमेंट की खिड़की से कोई भी नीचे से गुजरती विद्युत रेललाइन देख सकता था. उस दिन मौसम प्यारा था और मकानों के बरामदों की रेलिंग से तरह-तरह की रंगीन चादरें और गद्दे सूखने के लिए लटक रहे थे. थोड़ी-थोड़ी देर पर बांस के ब्रश से गद्दों को मुलायम करने के लिए झाड़ने की आवाजें आ जाती थीं. मैं उन आवाजों को आज भी याद कर सकता हूं. वे आवाजें दूरी की किसी अनुभूति से विचित्र रूप से रिक्त थीं.

हैम्बर्गर स्टेक एकदम सही था. स्वाद बिलकुल ठीक, बाहर से गहरे भूरे रंग का ग्रिल किया हुआ और भीतर से रस से परिपूर्ण, सॉस एकदम सही. हालांकि, मैं ईमानदारी से यह दावा नहीं कर सकता था कि मैंने वैसा स्वादिष्ट हैम्बर्गर जीवन में कभी नहीं खाया था, पर वह निश्चित रूप से उन सबसे अच्छा था, जो मैंने पिछले काफी लंबे समय में खाए थे. मैंने उससे यह बात कही और वह खुश हो गई.

कॉफी के बाद हमने एक दूसरे को अपने-अपने जीवन की कहानी सुनाई. इस दौरान बर्ट बाचार्च का एक रेकॉर्ड बजता रहा था. क्योंकि मेरे जीवन की अभी कोई खास कहानी नहीं थी, इसलिए अधिकतर बातें उसी ने कीं. उसने बताया कि कॉलेज के समय में वह एक लेखिका होना चाहती थी. उसने फ्रांस्वा सैगन के बारे में बात की, जो उसकी पसंदीदा लेखिका थी. कम से कम वे मुझे उतनी सस्ती नहीं लगी जितना हर कोई कहता था. ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके अनुसार हर कोई हेनरी मिलर अथवा ज्यां जेनेट जैसे उपन्यास लिखे.

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‘हालांकि मैं नहीं लिख सकती’ उसने कहा.
‘शुरू करने के लिए कभी भी देर नहीं होती’ मैंने कहा.
‘नहीं, मैं जानती हूं कि मैं नहीं लिख सकती. तुम ही ने मुझे इस संबंध में सूचित किया था’ वह मुस्कराई, ‘तुम्हें पत्र लिखते हुए अंततः मैंने यह चीज समझी. मुझमें बस वह प्रतिभा नहीं है.’
मैं एकदम लाल हो गया. यह वह चीज है, जो अब मैं कभी नहीं करता किंतु जब मैं बाइस वर्ष का था, मैं अक्सर शर्म से लाल हो जाया करता था.
‘सच में! वैसे तुम्हारे लेखन में इस संबंध में काफी कुछ ईमानदार होता था.’
जवाब देने की बजाय वह मुस्कराई, एक छोटी-सी मुस्कान.
‘कम से कम तुम्हारे एक पत्र ने मुझे बाहर जाकर हैम्बर्गर स्टेक तलाशने को मजबूर कर दिया था’ मैंने कहा.
‘उस समय तुम निश्चय ही भूखे रहे होगे.’
और शायद सच में मैं ऐसा रहा हो सकता था.

खिड़की के नीचे से एक ट्रेन खड़-खड़ करती हुई गुजर गई.
जब घड़ी ने पांच बजाये तो मैंने कहा अब मुझे चलना चाहिए, ‘निश्चित रूप से तुम्हें अपने पति के लिए रात्रि का भोजन बनाना होगा.’
‘वे बहुत देर से घर आते हैं’ उसने अपने हाथ पर अपना गाल रखे हुए कहा, ‘वे आधी रात से पहले वापस नहीं आएंगे.’
‘वे बहुत व्यस्त व्यक्ति होंगे.’
‘मुझे भी लगता है’ उसने भी क्षण भर को रुकते हुए कहा, ‘मैं समझती हूं मैंने एक बार तुम्हें अपनी समस्या के संबंध के लिखा था. कुछ चीजें हैं जिनके संबंध में मैं उनके साथ बात नहीं कर सकती. मेरी भावनाएं उन तक नहीं पहुंचतीं. मुझे अनेक बार अनुभव होता है कि हम दोनों दो भिन्न भाषाएं बोल रहे हैं.’
मुझे नहीं पता था कि मैं उससे क्या कहूं. मैं नहीं समझ सकता था कि कोई ऐसे व्यक्ति के साथ कैसे रह सकता है, जिसको अपनी भावनाएं व्यक्त कर पाना असंभव हो.

‘लेकिन यह सब ठीक है’ उसने कोमलता से कहा और उसने इसे ऐसा दिखाना चाहा जिससे सब कुछ ठीक लगे, ‘मुझे इन तमाम महीनों में पत्र लिखने के लिए धन्यवाद. मुझे उनमें सच में आनंद आया. तुम्हें वापस पत्र लिखने में मेरी मुक्ति छिपी थी.’
‘मुझे भी तुम्हारे पत्रों से आनंद आया,’ मैंने कहा. हालांकि, हकीकत में उसका लिखा हुआ कुछ भी मुझे मुश्किल से याद था.
कुछ पलों तक वह बिना कुछ बोले दीवार पर घड़ी की ओर देखती रही. वह एकदम समय के प्रवाह का परीक्षण करती-सी लग रही थी.
‘तुम स्नातक के बाद क्या करने जा रहे हो?’ उसने पूछा.
मैंने कोई निर्णय नहीं किया था. मैंने उसे बताया. मुझे क्या करना चाहिए इसका कोई आइडिया नहीं था. जब मैंने यह कहा तो वह फिर मुस्कराई.

जापानी कथाकार हारुकी मुराकामी.

‘संभवतः तुम्हें कुछ ऐसा करना चाहिए जिसमें लेखन संबंधी काम हो’ उसने कहा, ‘तुम्हारी समीक्षाएं बहुत अच्छे से लिखी होती थीं. मैं उनकी प्रतीक्षा किया करती थी. मैं ऐसा वास्तव में करती थी. कोई चापलूसी नहीं है. जहां तक मैं समझती हूं तुम उन्हें बस अपना कोटा पूरा करने के लिए लिखते थे लेकिन उनमें वास्तविक भावनाएं होती थीं. मैंने उन सब पत्रों को रखा हुआ है. मैं उन्हें जब तब निकाल कर पढ़ती हूं.’
‘धन्यवाद’ मैंने कहा, ‘और हैम्बर्गर स्टेक के लिए भी धन्यवाद.’
दस वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन जब भी मैं उसके पड़ोस से ओडाक्यू रेललाइन पर गुजरता हूं तो उसके बारे में और उसके कुरकुरे ग्रिल्ड हैम्बर्गर स्टेक के बारे में सोचता हूं. मैं रेलवेलाइन के किनारे बने भवनों को देखता हूं और स्वयं से पूछता हूं कि कौन-सी खिड़की उसकी हो सकती है. मैं उस खिड़की से देखे दृश्य के संबंध में सोचता हूं और यह निश्चित करने की कोशिश करता हूं कि वह कहां हो सकती थी. किंतु मैं कभी स्मरण नहीं कर पाता.
संभवतः वह अब वहां न रहती हो. लेकिन अगर वह रहती है तो वह अब भी बर्ट बाचार्च का वही रेकॉर्ड अपनी खिड़की के दूसरी तरफ बैठी सुन रही होगी.

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क्या मुझे उसके साथ सोना चाहिए था?
यह इस कथा का केंद्रीय प्रश्न है.
इसका उत्तर मुझसे परे है. अब भी मुझे इस संबंध में कुछ पता नहीं है. बहुत-सी चीजें हैं, जिन्हें हम कभी नहीं समझ पाते, चाहे जितने वर्ष हम इस बात में लगा दें, चाहे जितना अनुभव हम इकट्ठा कर लें. मैं बस इतना कर सकता हूं कि ट्रेन से उन भवनों की खिड़कियों की ओर देखता हूं जो कि उसकी हो सकती हैं. उनमें से प्रत्येक उसकी खिड़की हो सकती थी, ऐसा मुझे कई बार लगता है और कई बार मैं सोचता हूं कि उनमें से कोई भी खिड़की उसकी नहीं हो सकती. सामान्यतः वे बहुत सारी हैं. (समाप्त)
(जापानी से जे. रूबिन के किए अंग्रेजी अनुवाद से हिंदी में श्रीविलास सिंह द्वारा अनूदित)

कहानी 'एक खिड़की' की पहली किस्त
कहानी 'एक खिड़की' की दूसरी किस्त

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