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सोने के आधे शरीर वाला नेवला क्यों लोट रहा था पांडवों के भंडार गृह में, जानिए क्या है रहस्य

Strange Mongoose: श्रीकृष्ण ने पांडवों से कहा- ‘बंधुओं, यह सत्य है कि आपका यज्ञ अद्वितीय था, जिसमें आप लोगो ने निर्धनों को जी खोलकर दान दिया और असंख्य भूखे व्यक्तियों की भूख-शांत की, किन्तु उस परिवार का दान आपके यज्ञ से बहुत बड़ा था क्योंकि उनलोगों ने उस स्थिति में दान दिया, जब उनके पास कुछ नहीं था.

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सोने के आधे शरीर वाला नेवला क्यों लोट रहा था पांडवों के भंडार गृह में, जानिए क्या है रहस्य

महाभारत काल के विचित्र नेवले की कहानी की अंतिम किस्त.

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किस्त एक और दो पढ़ने के बाद आपने जान लिया कि महाभारत काल के इस नेवले का आधा शरीर क्यों सोने का बन गया. आखिरी किस्त में जानें ऋषि का बताया वह रहस्य जिससे कि नेवले का बाकी शरीर भी सोने का हो सकता है. साथ ही इस किस्त में आप यह भी जानेंगे कि इतना दान और भोज कराने के बाद भी नेवले ने क्यों कहा कि आपका यज्ञ अधूरा है, श्रीकृष्ण ने इस गूढ़ बात का मतलब कितने सरल शब्दों में समझा दिया. 

विचित्र नेवला (अंतिम किस्त)


ऋषि ने कहा, ‘उस परिवार और उसके मुखिया ने धर्म और मानवता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है. वह लोग स्वयं भूखे रहे, किंतु घर आए अतिथि का सत्कार किया. यही कारण है कि उसके बचे हुए अन्न में इतना प्रभाव उत्पन्न हो गया कि उसके स्पर्श मात्र से तुम्हारा आधा शरीर सोने का हो गया. भविष्य में यदि कोई व्यक्ति उस परिवार की भांति ही धर्म और दान करेगा तो उसके बचे हुए अन्न के प्रभाव से तुम्हारा शेष शरीर भी स्वर्णिम हो जाएगा.’

महाभारत काल के विचित्र नेवले की कहानी.

यह कहानी सुनकर नेवले ने धर्मराज युधिष्ठिर को संबोधित करते हुए कहा, ‘हे राजन, जब मैंने आपके विराट यज्ञ के बारे में सुना, तो सोचा, आपने इस यज्ञ मैं अपार संपदा निर्धनों को दान की है और लाखों भूखों को भोजन कराया है. अतः आपने जो अपरम्पार पुण्य कमाया है, संभवतः उसके प्रताप से मेरा शेष शरीर भी सोने का हो जाए. यह सोचकर मैं बार-बार आपके भंडार गृह के भीतर जाकर और बाहर आकर धरती पर लोट रहा था कि यज्ञ से बचे अन्न के स्पर्श से मैं पूर्णरूपेण स्वर्णिम शरीर प्राप्त कर लूं. किंतु राजन मेरा शरीर तो पूर्व की ही भांति है.’ इतना कहकर नेवला मौन हो गया. 

महाभारत काल के विचित्र नेवले की कहानी.

युधिष्ठिर ने संक्षेप में पूरा वृत्तांत अपने भाइयों को बताया, सभी पांडव विचार करने लगे कि क्या हमारे इस विराट यज्ञ का पुण्य इतना भी नहीं है कि यह नेवला अपने शेष आधे शरीर को सोने का बना सके? क्या उस परिवार का पुण्य हमारे रीति-अनुकूल विशाल यज्ञ से भी अधिक है? श्रीकृष्ण ने पांडवों को जब इस प्रकार चिंतामग्न देखा तो वह बोले- ‘बंधुओं, यह सत्य है कि आपका यज्ञ अपने में अद्वितीय था, जिसमें आप लोगो ने निर्धनों को जी खोलकर दान दिया और असंख्य भूखे व्यक्तियों की भूख-शांत की, किन्तु निःसंदेह उस परिवार का दान आपके यज्ञ से बहुत बड़ा था क्योंकि उनलोगों ने उस स्थिति में दान दिया, जब उनके पास कुछ नहीं था. अपने प्राणों को संकट में डालकर भी उस परिवार ने अपने पास उपलब्ध समस्त सामग्री उस अज्ञात अतिथि की सेवा में अर्पित कर दी. आपके पास बहुत कुछ होते हुए भी आपने उसमें से कुछ ही भाग दान किया. अतः आपका दान उस परिवार के अमूल्य दान की तुलना में पासंग भर भी नहीं है.’ श्रीकृष्ण की बात सुनकर सभी उस परिवार के प्रति श्रद्धा से नतमस्तक हो गए.
(समाप्त)

'विचित्र नेवला' की पहली किस्त
'विचित्र नेवला' की दूसरी किस्त

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