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CSE Report: 100 साल में इस बार बदला है मौसम का मिजाज, हर रोज आ रही प्राकृतिक आपदाएं

CSE Report: इस साल 1 जनवरी से 30 सितंबर तक 273 दिनों में से 242 दिनों में किसी न किसी तरह की प्राकृतिक घटनाएं दर्ज की गईं है.

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CSE Report: 100 साल में इस बार बदला है मौसम का मिजाज, हर रोज आ रही प्राकृतिक आपदाएं
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डीएनए हिंदीः भीषण गर्मी, मूसलाधार बारिश, चक्रवात और पहाड़ों पर लैंड स्लाइड... 2022 भारत के लिए लगातार कहर बनकर टूट रहा है. पिछले 9 महीने में शायद ऐसा कोई दिन हो जब देश के किसी हिस्से में कोई प्राकृतिक आपदा ना आई हो. यह जानकारी Centre for Science and Environment (CSE) की नई रिपोर्ट में सामने आई है.  सीएसई की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देश में इस साल 1 जनवरी से 30 सितंबर तक 273 दिनों में से 242 दिनों में किसी न किसी तरह की प्राकृतिक घटनाएं दर्ज की गईं है. इनमें हीटवेव, शीत लहर, चक्रवात, बिजली, भारी वर्षा, बाढ़ और लैंड स्लाइड शामिल है.

मध्य प्रदेश और हिमाचल सबसे ज्यादा प्रभावित
रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल के शुरू होने से सितंबर तक हर दूसरे दिन किसी न किसी प्राकृतिक आपदा से जुड़ी घटना की वजह से मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है. इन घटनाओं के कारण होने वाली मौतों की संख्या हिमाचल प्रदेश (359) में सबसे अधिक है. जबकि मध्य प्रदेश और असम में  301 मानव मृत्यु दर्ज़ हुई हैं. रिपोर्ट के अनुसार मध्य और उत्तर-पश्चिमी भारत में मौसम की घटनाओं के साथ सबसे अधिक ( 198 और 195 दिन) दर्ज किए गए है. अगर जानमाल के नुकसान की बात करें तो मध्य भारत 887 मौतों के साथ सूची में सबसे ऊपर है. इसके बाद पूर्व और उत्तर पूर्व भारत हैं जहां प्राकृतिक आपदाओं के कारण अबतक 783 मौतें हुई हैं.

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पशु और फसलों का भी नुकसान
देश में असम एक ऐसा राज्य है जहा सबसे अधिक घर टूटने और जानवरों की मौत के मामले दर्ज हुए हैं. इसके बाद दक्षिण भारत में कर्नाटक एक ऐसा राज्य है जिसे  82 दिनों तक मूसलाधार बारिश और बाढ़  के कारण भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. वहीं बात खेती की करें तो कही देर से तो कही ज़रुरत से ज़्यादा बारिश और सूखे जैसे हालातों के चलते फैसले बुरी तरह से प्रभावित हुई है. आकड़ों के मुताबिक देश में ज्यादातर हिस्सों में फसलें 50 फीसदी तक अपनी गुणवत्ता खो चुकी हैं. हालांकि प्राकृतिक हादसों में पहले स्थान पर रहने के बावजूद मध्य प्रदेश ने किसी भी फसल क्षेत्र के नुकसान आधिकारिक आकड़े दर्ज़ नहीं हुए है . CSE की पर्यावरण संसाधन इकाई के कार्यक्रम निदेशक किरण पांडे के अनुसार मध्य प्रदेश में किसी भी तरह के नुकसान के आकड़े न होने का मुख्य कारण "नुकसान और क्षति की रिपोर्टिंग में गैप  के कारण हो सकता है".

बारिश में मचाई तबाही 
बारिश ने भी इस साल जमकर कहर बरपाया है. मानसून के मौसम में जून से अगस्त तक हर दिन देश के कुछ हिस्सों में भारी से बहुत भारी बारिश हुई है . "यही कारण है कि बाढ़ की तबाही ने किसी भी क्षेत्र को नहीं बख्शा है. एक्सपर्ट्स की मानें तो भारी बरसात के चलते असम में कई हिस्से जलमग्न हो गए. जिससे लोगों की जान, संपत्ति और आजीविका का भारी नुकसान हुआ. वहीं बारिश के बाद साल की दूसरी बड़ी आपदा के तौर पर बिजली और तूफान उभर कर आए है. देश के 30 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली और तूफ़ान के चलते अब तक 773 लोगों की जान चली गई है . वही उत्तरी भारत में इस साल भीषण गर्मी की लहरों ने अलग-अलग राज्यों में 45 लोगों की जान लील ली है.

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प्राकृतिक आपदाओं का बढ़ना अच्छा संकेत नहीं- सीएसई
CSE की महानिदेशक सुनीता नारायण  के मुताबिक  "देश में  इतने कम समय में बार बार प्राकृतिक आपदाओं का आना, जलवायु परिवर्तन का वॉटरमार्क है ". उनके मुताबिक यह किसी एक घटना के बारे में नहीं है . बल्कि घटनाओं की बढ़ते हुए नंबर्स के बारे में है.  CSE की रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह की घटनाएं पिछले 100 सालों में सबसे ज़्यादा तबाही भरी घटना के रूप में देखी जा रही हैं. इसके साथ ही आंकड़े ये भी बताते हैं कि बड़ी घटनाओं की तीव्रता तो बढ़ी ही है. इनके बीच में जो गैप पहले लगभग पांच साल या उससे अधिक था वो अब एक साल से भी कम हो गया है. ये चिंता का विषय है. एक्सपर्ट्स की मानें तो इस तरह का मौसमी बदलाव अच्छे संकेत नहीं ले कर आ रहा है. ये आने वाले समय के लिए एक चेतावनी जैसा है. मौसम में भारी बदलाव और लगातार आ रही प्राकृतिक आपदा देश में आने वाले सालो में भारी जलवायु परिवर्तन की और इशारा कर रही है.

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