Twitter
Advertisement
  • LATEST
  • WEBSTORY
  • TRENDING
  • PHOTOS
  • ENTERTAINMENT

द्वारकापीठ के शंकराचार्य Swaroopanand Saraswati का निधन, 99 साल की उम्र में ली अंतिम सांस

शंकराचार्या स्वरूपानंद सरस्वती मध्य प्रदेश में थे और नरसिंहपुर में ही उनका निधन हुआ. वे हिंदुओं के सबसे बड़े धर्मगुरुओं में से एक थे.

द्वारकापीठ के शंकराचार्य Swaroopanand Saraswati का निधन, 99 साल की उम्र में ली अंतिम सांस
FacebookTwitterWhatsappLinkedin

डीएनए हिंदी: द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती (Swaroopanand Saraswati) का आज यानी रविवार को निधन हो गया है. ज्योतिष और द्वारका-शारदा पीठ के शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में 99 साल की उम्र में अंतिम सांस ली थी.

खबरों के मुताबिक वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि वे एक प्रकांड विद्वान संत और शंकराचार्य तो थे ही लेकिन उन्होंने देश की आजादी की लड़ाई में भी अपना योगदान दिया था. साथ ही वे इस दौरान जेल भी गए थे. इतना ही नहीं अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भी उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी थी.

Kerala पहुंची कांग्रेस की 'भारत जोड़ो यात्रा', जानिए क्या है आगे का प्लान और कौन-कौन होगा शामिल

करोड़ों हिंदुओं की आस्था के प्रतीक

आपको बता दें कि शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को हिंदुओं का सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता था. उन्हें करोड़ों हिंदुओं और सनातनियों की आस्था के ज्योति स्तंभ के रूप में जाना जाता था. राम मंदिर आंदोलन से लेकर कानूनी लड़ाई और स्वतंत्रता संग्राम सभी में उनकी सक्रियता उनके राष्ट्रप्रेम और हिंदुत्व को लेकर प्रेम को दर्शाता है.

'घर में काम करने के साथ जॉब के लिए कहना, क्रूरता नहीं है', महिला की मौत मामले में कोर्ट की अहम टिप्‍पणी

मध्य प्रदेश में हुआ था जन्म

शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म ब्राह्मण परिवार में मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में हुआ था. उनके परिजनों ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था. उन्होंने सिर्फ 9 साल की उम्र में घर छोड़ स्वयं को एक धर्म को समर्पित कर दिया था. 

आपको बता दें कि इनके माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा था. इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली थी. यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी और वे भारत छोड़ों आंदोलन में भी शामिल हुए थे. 

स्वतंत्रता आंदोलन में थे सक्रिय

गौरतलब है कि जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह 'क्रांतिकारी साधु' के रूप में प्रसिद्ध हुए थे. इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी थी.

'आर्टिकल 370 को नहीं दिला सकता वापस, 10 दिन में करूंगा नई पार्टी का ऐलान', बारामुला में बोले गुलाम नबी आजाद

शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे. 1940 में वे दंडी संन्यासी बनाये गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली. 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और इसके साथ ही वे स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे थे. 

देश-दुनिया की ताज़ा खबरों Latest News पर अलग नज़रिया, अब हिंदी में Hindi News पढ़ने के लिए फ़ॉलो करें डीएनए हिंदी को गूगलफ़ेसबुकट्विटर और इंस्टाग्राम पर. 

Advertisement

Live tv

Advertisement

पसंदीदा वीडियो

Advertisement