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UP में BJP की जरूरत कैसे बन गए केशव प्रसाद मौर्य, कैसे बढ़ता गया सियासी कद?

उत्तर प्रदेश की सियासत में केशव मौर्य के कद का दूसरा OBC नेता नहीं है. यही वजह है कि चुनाव हारने के बाद भी बीजेपी उन्हें किनारे नहीं कर सकी.

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) का जन्मदिन आज है. वह अपना 52वां जन्मदिन मना रहे हैं. 7 मई 1969 को कौशाम्बी जिले के सिराथू गांव में जन्मे केशव मौर्य की गितनी आज भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दिग्गज नेताओं में होती है. उनका सियासी सफर बेहद दिलचस्प रहा है.

1.BJP में बेहद मजबूत है केशव का कद

BJP में बेहद मजबूत है केशव का कद
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उत्तर प्रदेश की सियासत में वह एक ऐसे चेहरे बन गए हैं जिन्हें नजरअंदाज कर पाना अब बीजेपी के लिए भी आसान नहीं है. वह बीजेपी के लिए पिछड़ों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे हैं. पार्टी उन पर भरोसा भी करती है. शायद यही वजह है कि सिराथू से विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी वह योगी कैबिनेट का हिस्सा हैं. उन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता नहीं दिखाया और डिप्टी सीएम की पोस्ट भी नहीं गई.



2.कब राजनीति में हुई एंट्री?

कब राजनीति में हुई एंट्री?
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केशव प्रसाद मौर्य सक्रिय रूप से राजनीति में साल 2000 में आए थे. अशोक सिंघल उनके राजनीतिक गुरु हैं. 2002 में राजनाथ सरकार के दौरान केशव प्रसाद मौर्य ने संगठन के लिए काम किया. उन्होंने संगठन को खड़ा करने के लिए जी-जान लगा दिया.



3.कैसे बने विधायक?

कैसे बने विधायक?
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साल 2012 में 10 वर्षों की लगातार कड़ी मेहनत के बाद पहली बार सिराथू विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के मौका केशव प्रसाद मौर्य को मिला. 6 मार्च 2012 को वह पहली बार विधायक चुने गए.  2014 के लोकसभा चुनाव में उन्हें युवा चेहरे के तौर पर आम चुनावों में उतारा गया. फूलपुर लोकसभा सीट से वह सांसद भी चुने गए. यह कांग्रेस का गढ़ था यहां से बीजेपी ने पहली बार जीत का स्वाद चखा था.



4.कैसा रहा सांसद के तौर पर सफर?

कैसा रहा सांसद के तौर पर सफर?
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2014 से 2016 तक केशव प्रसाद मौर्य सांसद के तौर पर सेवाएं देते रहे. 16 अप्रैल 2016 को उन्हें बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई. 14 साल से सूबे की सत्ता से बाहर बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया और 2017 के विधानसभा चुनावों में पहली बार इतिहास रचा. 11 मार्च को नतीजे आए और बीजेपी को 325 सीटें मिली थीं. केशव प्रसाद मौर्य के योगदान को भी पार्टी ने स्वीकारा था. 



5.जब बने यूपी के डिप्टी सीएम

जब बने यूपी के डिप्टी सीएम
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यूपी सरकार में उन्हें 2017 में ही पहली बार डिप्टी सीएम पद की जिम्मेदारी मिली. देखते-देखते वजह ओबीसी वर्ग के सबसे बड़े नेताओं में शुमार हो गए. मौर्य और कुशवाहा वोटर्स को साधने के लिए भी उन्हें ही जिम्मेदारी दी गई थी. गैर यादव वोटर्स को एकजुट करने में भी केशव मौर्य का अहम योगदान माना जाता है.



6.जब केशव प्रसाद मौर्य ने याद दिलाई पार्टी को अपनी पहचान

जब केशव प्रसाद मौर्य ने याद दिलाई पार्टी को अपनी पहचान
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जून 2021 में पहली बार केशव प्रसाद मौर्य ने अपने सियासी कद का एहसास पार्टी को कराया था. सीएम योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) और केशव प्रसाद मौर्य में सियासी टकराव साफ नजर आ रहा था. लगातार बढ़ रहे अंतर्विरोधों की वजह से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दखल देना पड़ा. केशव प्रसाद मौर्य और सीएम योगी के बीच संघ ने कथित तौर पर समझौता भी कराया था. सीएम योगी पहली बार डिप्टी सीएम के आवास पर दोपहर भोज के लिए भी गए थे. विपक्ष में संदेश यह गया कि बीजेपी एक है. कोई टकराव नहीं है. टकराव को खारिज करने के लिए बीजेपी ने एक बार फिर चाल चला और चुनाव हारने के बाद भी उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल करा लिया.



7.क्यों BJP के लिए जरूरी हो गए हैं केशव मौर्य?

क्यों BJP के लिए जरूरी हो गए हैं केशव मौर्य?
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केशव प्रसाद मौर्य बीजेपी के लोकप्रिय चेहरों में से एक हैं. यूपी बीजेपी में उनकी कद का कोई भी ओबीसी नेता फिलहाल नहीं है. राज्य के कुल वोटर्स में ओबीसी मतदाताओं की हिस्सेदारी लगभग 45 फीसदी है. ऐसा माना जाता है कि यादव वोटरों का एक बड़ा हिस्सा सपा समर्थक है. यह यूपी की सबसे प्रभावशाली ओबीसी जाति भी है. ओबीसी राजनीति को साधने के लिए लगातार बीजेपी केशव का कद बढ़ा रही है.



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