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रेप पीड़िताओं की मदद के लिए छोड़ दी नौकरी, योगिता ने पैसे और आराम को मारी ठोकर

पढ़ाई पूरी करने के बाद योगिता को किंगफिशर में नौकरी मिल गई लेकिन साल 2002 में उनकी जिंदगी ने यूटर्न लिया.

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रेप पीड़िताओं की मदद के लिए छोड़ दी नौकरी, योगिता ने पैसे और आराम को मारी ठोकर

किंगफिशर में काम करती थीं योगिता

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डीएनए हिंदी: दिल्ली जैसे बड़े शहर में रहना, अच्छा कॉलेज, अच्छी नौकरी, सभी सहूलियतें लेकिन फिर एक दिन सबकुछ छोड़कर योगिता एक नए और चुनौतियों भरे रास्ते पर निकल पड़ीं. आज महिलाओं के अधिकारों के क्षेत्र में एक नाम बन चुकीं योगिता कुछ साल पहले तक एक एविएशन कंपनी में काम किया करती थीं.

दिल्ली में पली बढ़ीं योगिता ने दिल्ली यूनीवर्सिटी से ग्रैजुएशन की. उनके पास डिजास्टर मैनेजमेंट में मास्टर डिग्री है. स्कूल के समय से ही उनका झुकाव समाज के कमजोर वर्ग की तरफ था. योगिता कहती हैं- 'जब मैं 9वीं और 10वीं में पढ़ती थी तो घर के बाहर छोटे बच्चों को पढ़ाया करती थी. असहाय बुजुर्गों के लिए चंदा इकट्ठा किया करती थी.'

22 साल की उम्र में जिंदगी ने लिया यू-टर्न

पढ़ाई पूरी करने के बाद योगिता को किंगफिशर में नौकरी मिल गई लेकिन साल 2002 में उनकी जिंदगी ने यूटर्न लिया. एक ऐसी घटना हुई जिसने उन्हें दोबारा ऐसी राह पर लाकर खड़ा कर दिया जहां उन्हें दूसरों के काम आना था.

वो कहती हैं, 'मैंने सड़क पर एक भयानक एक्सिडेंट देखा. हैरानी की बात ये थी कि एक्सिडेंट करने वाला तुरंत वहां से भाग निकला और लोग केवल तमाशा देखते रहे. किसी ने यह नहीं सोचा कि उसे अस्पताल ले जाया जाए. वहां उसकी मदद के लिए केवल मैं और मेरा दोस्त थे. हम उसे सरकारी अस्पताल ले गए लेकिन वहां पूरे इंतजाम नहीं थे. इलाज शुरू होने में काफी देर हो गई और वह वहीं खत्म हो गया, पीछे छूट गई पत्नी और दो छोटे बच्चे.'

'मैं खुद छोटी थी इससे पहले मैंने ऐसी कोई घटना नहीं देखी थी मैं रात को सो नहीं पाती थी. मेरे दिमाग में केवल यही खयाल आता था कि इस देश में एक गरीब आदमी की जिंदगी क्या है? ये खयाल मुझे कचोटता रहा और मैंने उस शख्स के परिवार की मदद करने का फैसला लिया. मैंने अवेयरनेस प्रोग्राम ऑर्गेनाइज़ किए लेकिन सरकार को किसी बदलाव के लिए राजी करना एक धीमी प्रोसेस है.'

एक्सिडेंट में मारे गए शख्स के परिवार को दिलवाया मुआवजा

योगिता एक्सिडेंट मारे गए शख्स के परिवार के साथ खड़ी हुईं, अदालत में गवाही दी और उसकी पत्नी को मुआवजा दिलवाया. योगिता कहती हैं कोर्ट कचहरी के चक्करों ने उन्हें बताया कि न्याय पाना असल में कितना जटिल काम है. 'यहां केवल एक समस्या नहीं है, कई चीज़ें हैं जो आपको प्रभावित या कनफ्यूज कर सकती हैं कि आखिर शुरुआत कहां से करें.'

धीरे-धीरे योगिता ने लोगों की मदद करने को ही अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया और नौकरी छोड़ दी. वह कहती हैं कि नौकरी छोड़ना उनकी जिंदगी का सबसे खुशनुमा पल था. साल 2007 में उन्होंने 'दास चैरिटेबल फाउंडेशन' की शुरुआत की. यह फाउंडेशन रोड एक्सिडेंट पीड़ितों की मदद करता है. साल 2011 तक उन्होंने दास फाउंडेशन के लिए खूब काम किया लेकिन साल 2012 उनके लिए नई चुनौतियां लेकर आया. इस साल हुए निर्भयां कांड ने उन्हें झकझोर कर रख दिया.

निर्भया केस के बाद हुई PARI की शुरुआत

योगिता कहती हैं, 'जब मैंने निर्भया के केस पर काम करना शुरू किया तो मुझे रेप और क्रूरता के आठ-नौ और केस मिले. मेरा सारा दिन कोर्ट में एक सुनवाई से दूसरी सुनवाई में निकल जाता था लेकिन पीड़ितों की मदद करना दिल को तसल्ली देता था. मैंने पाया कि उन्हें वाकई किसी ऐसे की जरूरत थी जो हर मामले में और हर वक्त उनकी मदद कर सके, सपोर्ट कर सके.'

निर्भया का केस लाइम लाइट में आने के बाद योगिता ने People Against Rape in India (PARI) की शुरुआत की. यह संस्था रेप पीड़ितों को न्याय, सुरक्षा, और नई राह पर मोड़ने में मदद करती है. इसके अलावा उनके परिवारों को कोर्ट कचहरी के मामलों में भी मदद करती है.

'न्याय मिलना एक धीमी प्रोसेस है' 

योगिता ने कहा, 'निर्भया को 9 साल बाद न्याय मिला था लेकिन मेरे पास ऐसे भी केस हैं जो 15 साल या उससे ज्यादा समय से लटके हुए हैं. इन मामलों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जाता जितना कि लिया जाना चाहिए.'

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