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जम्मू-कश्मीर परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कश्मीर में 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया है.

जम्मू-कश्मीर परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट

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डीएनए हिंदी: सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण के लिए एक परिसीमन आयोग  (Delimitation Commission) के गठन के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. जस्टिस एसके कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, निर्वाचन आयोग और याचिकाकर्ताओं के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.

याचिकाकर्ताओं हाजी अब्दुल गनी खान और मोहम्मद अयूब मट्टू की तरफ से पेश वकील ने दलील दी थी कि परिसीमन की कवायद संविधान की भावनाओं के विपरीत की गई थी और इस प्रक्रिया में सीमाओं में परिवर्तन और विस्तारित क्षेत्रों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए था. याचिका में कहा गया है कि सरकार ने इस मामले में संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है. 

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तुषार मेहता ने किया विरोध
याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई थी कि जम्मू कश्मीर में सीटों की संख्या 107 से बढ़ाकर 114 (पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 24 सीटों सहित) संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों, विशेष रूप से जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 की धारा 63 के तहत अधिकारातीत है. वहीं, परिसीमन को चुनौती देने वाली याचिका का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कश्मीर में 1995 के बाद कोई परिसीमन नहीं किया गया है.

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2012 में किया गया परिसीमन आयोग का गठन
याचिका में कहा गया था कि 2001 की जनगणना के बाद प्रदत्त शक्तियों का इस्तेमाल करके पूरे देश में चुनाव क्षेत्रों के पुनर्निर्धारण की कवायद की गई थी और परिसीमन अधिनियम 2002 की धारा 3 के तहत 12 जुलाई 2002 को एक परिसीमन आयोग का गठन किया गया था.

(PTI इनपुट के साथ)

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