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क्यों युवाओं में बढ़ रहा सिंथेटिक ड्रग्स का चलन? मेथ और म्याऊं-म्याऊं की मांग बढ़ी

Drugs Crazes in India: दिल्ली के युवाओं में अब ट्रेडिशनल यानि प्लांट आधारित नशीले पदार्थ की बजाय सिंथेटिक ड्रग्स के सेवन का चलन बढ़ रहा है.

क्यों युवाओं में बढ़ रहा सिंथेटिक ड्रग्स का चलन? मेथ और म्याऊं-म्याऊं की मांग बढ़ी
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डीएनए हिंदी: दिल्ली के युवाओं में अब ट्रेडिशनल यानि प्लांट आधारित नशीले पदार्थ की बजाय सिंथेटिक ड्रग्स (Synthetic Drugs) के सेवन का चलन बढ़ रहा है. रेव पार्टी में अब प्लांट आधारित कोकीन और गांजा की बजाय मेथ (Meth Drugs), एलएसडी, मेथाक्वोलोन, मिथाइलीनडाईऑक्सी/ मेथैमफेटामाइन और म्याऊं-म्याऊं (Meow Meow Drugs) की मांग में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की कार्रवाई में हाल के दिनों में दो दर्जन सिंथेटिक ड्रग्स की तस्करी करने वाले गिरोहों की पहचान की गई है.  

सिंथेटिक ड्रग्स लैबोरेट्री में तैयार किए जाते हैं

लैबोरेट्री में केमिकल से बनाए जाने वाले नशीले पदार्थों (दवाओं) को सिंथेटिक ड्रग्स कहते हैं. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक इसकी डिमांड पार्टी सर्किट या रेव पार्टी में ज्यादा होती है. एनसीबी के मुताबिक दिल्ली में बीते दो सालों में सिंथेटिक ड्रग्स का इस्तेमाल काफी तेजी से बढ़ा है. कोकीन लैटिन अमेरिका में पैदा होने वाले प्लांट से तैयार होने वाला एक कुदरती नशा है जबकि मेथ और म्याऊं-म्याऊं लैबोरेट्री में केमिकल्स से तैयार की जाती है.

क्यों बढ़ रहा है सिंथेटिक ड्रग्स का चलन?

एनसीबी के अधिकारियों का कहना है कि अब लोग प्लांट बेस्ड ड्रग्स लेने की बजाय सिथेंटिक डग्स का सेवन करने लगे हैं. युवा दवाओं की आड़ में सिंथेटिक ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं. इसके समाज में लोगों को जल्दी पता नहीं चल पाता है और रिस्क कम होता है. तस्करों के लिए एजेंसियों से बचकर इसे लाने में प्लांट ड्रग्स से कुछ कम मुश्किल होती है. 

सिंथेटिक ड्रग्स की कीमत कम और सप्लाई आसान 

एनसीबी के मुताबिक ज्यादातर सिंथेटिक ड्रग्स की तरह मेथ यानी आइस म्यांमार की लैबोरेट्रीज में तैयार हो रही है और इसे दिल्ली लाकर सप्लाई करना आसान है जबकि कोकीन को लैटिन अमेरिका से दिल्ली तक लाने में रिस्क फैक्टर बहुत ज्यादा है. जाहिर सी बात है कि रिस्क फैक्टर ज्यादा होने की वजह से उसकी कीमत आसमान छूने लगती है. यह बताया जा रहा है कि कीमत कम होने के बावजूद ड्रग एडिक्ट म्याऊं-म्याऊं और मेथ को नशे में किसी तरह भी कोकीन से कम नहीं आंकते है.

कभी मैन्डेक्स हुआ था युवाओं में लोकप्रिय

मैन्डेक्स लेबोरेट्री में तैयार होने वाली एक सिंथेटिक ड्रग थी जो 1980 के दशक में काफी लोकप्रिय हुई. हालांकि कुछ समय के बाद दोबारा कोकीन और हेरोइन जैसी प्लांट बेस्ड ड्रग्स पसंद की जाने लगी. 

इन देशों से भारत लाई जाती हैं पार्टी ड्रग्स

एलएसडी यूरोप और खासतौर पर नीदरलैंड और डेनमार्क की लैबोरेट्रीज में बन कर दिल्ली सप्लाई के लिए लाई जाती है. यह आकार में पोस्टल स्टाम्प जैसा दिखाई देता है. एक स्टाम्प के रेट 10 हजार रुपये हैं. मेथ म्यांमार से भारत आ रही है. एनसीबी के अनुसार म्याऊं-म्याऊं भी विदेशों से लाई जा रही है. इन तीनों को पार्टी ड्रग्स भी कहा जाता है.आजकल रेव पार्टियों में इन तीनों ड्रग्स का सबसे ज्यादा सेवन किया जा रहा है. म्याऊं-म्याऊं की खपत दिल्ली की तुलना में मुंबई, उसके आसपास के इलाकों और बेंगलुरु में ज्यादा हो रही है लेकिन इसकी दिल्ली में भी हो रही है.
 

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