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मानसिक तौर पर बीमार कर सकती है जरूरत से ज्यादा मैसेज करने की आदत

मोबाइल के इस्तेमाल की हमारी आदत ऐसी समस्याएं पैदा कर रही हैं जिनके हम आदी हो चुके हैं. यह हमें अब समस्या लगती ही नहीं हैं.

मानसिक तौर पर बीमार कर सकती है जरूरत से ज्यादा मैसेज करने की आदत

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डीएनए हिंदी : हम एक डिजिटल वर्ल्ड में रहते हैं जहां हर वक्त किसी न किसी गैजेट से घिरे रहते हैं. हम लेटेस्ट टेक्नोलॉजी के साथ-साथ अपडेट तो होते जा रहे हैं लेकिन अपनी सेहत और बदलती आदतों को नजरअंदाज कर रहे हैं. मोबाइल के इस्तेमाल की हमारी आदत ऐसी समस्याएं पैदा कर रही हैं जिनके हम आदी हो चुके हैं. यह हमें अब समस्या लगती ही नहीं हैं. ऐसा एक उदाहरण है मैसेजिंग जो इंसानों में बेचैनी, उत्सुकता, चिंता जैसी समस्या पैदा कर रही है.

एक्सपर्ट्स की मानें तो मैसेजिंग लोगों में स्ट्रेस और बेचैनी की समस्या बढ़ा रही है. पहले भी इस तरह की कई स्टडी आ चुकी हैं जो बताती हैं कि टेक्सटिंग कई लोगों के लिए बेचैनी का डेली डोज है. Viber की स्टडी में छह में से एक ही व्यक्ति ऐसा पाया गया जो मोबाइल पर आने वाले मैसेज इग्नोर कर सकता था.

कैसे होती है बैचेनी?

लगातार मैसेज या उनका जवाब देने की चिंता लोगों में बेचैनी बढ़ाती है. कई बार आप इग्नोर करने पर भी उसी मैसेज की चिंता में डूब जाते हैं यह जरूरत से ज्यादा सोचने की वजह होता है जो कि बेचैनी की शक्ल ले लेता है. बेचैनी की एक वजह यह भी होती है कि हम हर वक्त अवेलेबल रहने के बारे में सोचते हैं. हमें लगता है कि किसी को जवाब न देना उसे बुरा लग सकता है. जब हम किसी चीज को लेकर जरूरत से ज्यादा सोचने लगते हैं तो वह स्वभाविक तौर पर बेचैनी की शक्ल ले लेता है.

एक्सपर्ट्स के मुताबिक हमें अपने बेहतर मानसिक संतुलन के लिए प्रायौरिटी तय करना बहुत जरूरी होता है. किसी भी चीज की लत हमारे लिए खराब हो सकती है. ऐसे में हमें हर चीज के लिए समय निर्धारित करना चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि क्या जरूरी है और क्या नहीं. क्योंकि बेकार की चीजों में दिमाग लगाकर बेचैनी बढ़ाने से अच्छा है कि स्वस्थ रहे और मस्त रहें. 

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