लाइफस्टाइल
मौत कब आएगी ये किसी को नहीं पता होता लेकिन जब किसी की सामान्य मौत होती है तो उसका अंदाजा कहीं न कहीं लग जाता है. उस वक्त मरने वाले के दिमाग में क्या चल रहा होता है, इसे जानना कौन नहीं चाहेगा.
जब कोई मर जाता है तो उसके मस्तिष्क का क्या होता है? वह क्या कहना चाहता होगा या उसके उस समय कैसा महसूस हो रहा होगा. ऐसा हम कई बार किसी अपने कि इस दुनिया से जाने के बाद सोचते हैं. लेकिन अफसोस कुछ भी समझ नहीं पाते हैं. शायद यही सोच एक न्यूरोसाइंटिस्ट की भी रही होगी और तब उसने मरने वाले के दिमाग में मौत से ठीक पहले क्या चल रहा होता है ये जानने के लिए एक रिसर्च कर डाली.
ये न्यूरोसाइंटिस्ट है जिमो बोरहेन (Dr. Jimo Borhane). जिमो बोरहेन ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि वह चूहों पर प्रयोग कर रहे थे. वह सर्जरी के बाद उन चूहों के दिमाग से निकलने वाले स्राव का अध्ययन कर रहे थे. अचानक दो चूहे मर गये. इससे जिमो को मृत्यु के दौरान उन चूहों के मस्तिष्क में होने वाली प्रक्रियाओं का अध्ययन करने का अवसर मिला.
जिमो ने कहा, "एक चूहे के मस्तिष्क में सेरोटोनिन नामक रसायन छोड़ा गया था. तो, यह चूहा मतिभ्रम या भ्रम से पीड़ित नहीं था? इसलिए उन्हें आश्चर्य हुआ. क्योंकि "सेरोटोनिन मतिभ्रम से जुड़ा हुआ होता है.
सेरोटोनिन एक रसायन है जो जीवित प्राणियों के मूड को नियंत्रित करता है. प्रयोग में चूहे के दिमाग में सेरोटोनिन भर गया ये देखकर हिमा के मन में कई सवाल उठे. इसके बाद जिमो ने पहले से उपलब्ध जानकारी पर शोध करना शुरू किया. उन्होंने सोचा कि सेरोटोनिन रसायन के निकलने के पीछे जरूर कोई कारण होगा.
डॉ जिमो बोरहेन अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय में आणविक और पूछताछ फिजियोलॉजी और न्यूरोलॉजी विभाग ( Departments of Molecular and Interrogative Physiology and Neurology at the University of Michigan, USA) में एसोसिएट प्रोफेसर (Associate Professor) हैं.
मिशिगन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता जॉर्ज मैशौर और डॉक्टर जिमो चूहों की मौत पर रिसर्च कर रही थीं. लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी अध्ययन करना शुरू कर दिया कि जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसके मस्तिष्क में क्या होता है. डॉ. जिमो का कहना है कि शोध के दौरान उन्हें जो एहसास हुआ, वह मौत के बारे में हम जो सोचते या समझते हैं, उसके बिल्कुल विपरीत है.
कब माना जाता है इंसान की मौत हो गई
डॉ जिमो ने कहा कि लंबे समय से यह माना जाता था कि अगर किसी व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ने के कारण नाड़ी नहीं मिल पाती है, तो उसे चिकित्सकीय रूप से मृत मान लिया जाता है.
इस प्रक्रिया में सारा ध्यान हृदय पर केन्द्रित होता है. क्योंकि उनका कहना है कि इसे ब्रेन अटैक नहीं, बल्कि हार्ट अटैक कहा जाता है.
जिमो कहते हैं, "वैज्ञानिकों ने देखा है कि मौत के समय मस्तिष्क ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह काम नहीं कर रहा है. क्योंकि मस्तिष्क से कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है. मरने वाले लोग बोल नहीं सकते, खड़े नहीं हो सकते, बैठ नहीं सकते."
मस्तिष्क को कार्य करने या कार्यशील बने रहने के लिए बहुत अधिक ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है. हालांकि, यदि हमारे हृदय से रक्त की आपूर्ति नहीं होती है, तो मस्तिष्क को ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं होती है. तब ऐसा प्रतीत होता है कि मस्तिष्क काम नहीं कर रहा है या निष्क्रिय हो गया है.
लेकिन, डॉ. जिमो और उनकी टीम द्वारा किए गए शोध से बिल्कुल नई जानकारी सामने आई है.
मरने के बाद दिमाग बहुत तेज काम करता है
2013 में चूहों पर एक अध्ययन किया गया था. इसमें पाया गया कि जब चूहों के दिल ने काम करना बंद कर दिया तो उनके दिमाग की कोशिकाओं में कई हलचलें देखी गईं.
"मृत चूहों के दिमाग में सेरोटोनिन के स्राव में 60 गुना वृद्धि हुई थी, जो अच्छा महसूस कराने वाला रसायन है जो हमें अच्छा महसूस कराता है. इन चूहों में डोपामाइन रिलीज में भी 40 से 60 गुना की वृद्धि हुई थी."
"तो रासायनिक नॉरपेनेफ्रिन जीवित चीजों को अधिक सतर्क बनाता है. नॉरपेनेफ्रिन की मात्रा 100 गुना बढ़ गई थी."
जिमो कहते हैं, "जब कोई जानवर जीवित हो तो उसके मस्तिष्क में इन रसायनों का होना लगभग असंभव है. 2015 में, शोधकर्ताओं की एक टीम ने मरते चूहों के मस्तिष्क पर एक अन्य अध्ययन के निष्कर्ष प्रकाशित किए.
"दोनों अध्ययनों में, 100 प्रतिशत जानवरों ने मस्तिष्क में भारी गतिविधि या गतिविधि की सूचना दी. मस्तिष्क बहुत तेज़ गति से काम कर रहा था. मृत्यु के समय मस्तिष्क बहुत सक्रिय था."
4 मरते लोगों पर जब हुई रिसर्च तो ...
2023 में, जिमो और उनकी टीम ने एक और शोध पत्र प्रकाशित किया. यह शोध चार खास लोगों पर किया गया. वह आदमी कोमा में था और वह जीवन रक्षक प्रणाली, वेंटिलेटर पर जीवित थी. इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राफी करने के लिए इन लोगों पर इलेक्ट्रोड लगाए गए. इसके जरिए उनके दिमाग की सभी गतिविधियों या हरकतों को रिकॉर्ड किया जाना था.
ये चारों लोग मौत के दरवाजे पर थे. डॉक्टरों और उनके परिवारों को एहसास हुआ कि "अब उन सभी को किसी भी चिकित्सा उपचार या सहायता से नहीं बचाया जा सकता है. डॉक्टरों और उनके परिवारों ने मिलकर फैसला किया कि अब उनकी जान बचाने के प्रयास बंद कर दिए जाने चाहिए. परिजनों की अनुमति से उन पर लगा वेंटीलेटर हटा दिया गया. इसी वेंटिलेटर की मदद से वो चारों लोग जिंदा थे.
जब ये सभी घटनाक्रम हो रहे थे, शोधकर्ताओं ने देखा कि दो रोगियों के मस्तिष्क में तेजी से हलचल हो रही थी. दिमाग में तेजी से कुछ घटित हो रहा था. इससे मस्तिष्क की गतिविधि के बारे में जानकारी मिली.
उन रोगियों के मस्तिष्क में गामा तरंगें भी दर्ज की गईं. गामा तरंगें मस्तिष्क में सबसे तेज़ तरंगें मानी जाती हैं. ये गामा तरंगें मानव मस्तिष्क में सूचना और स्मृति की बहुत जटिल प्रक्रिया का हिस्सा हैं.
एक अन्य रोगी के मस्तिष्क का अध्ययन करते समय, यह देखा गया कि मस्तिष्क के टेम्पोरल लोब, दोनों कानों के पीछे मस्तिष्क का हिस्सा, में कुछ तीव्र गतिविधि हो रही थी. डॉ. जिमो के अनुसार मनुष्य के मस्तिष्क का दाएं कान के पीछे का भाग सहानुभूति या संवेदना के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है.
"कई मरीज़ दिल के दौरे से बच जाते हैं. इन लोगों ने मृत्यु के निकट के अनुभवों का अनुभव किया है. मरीजों का कहना है कि उस अनुभव के बाद वे बेहतर इंसान बन गए हैं. वे अब अन्य लोगों की समस्याओं या पीड़ा के बारे में अधिक जागरूक हैं, उनमें दूसरों के लिए अधिक सहानुभूति विकसित हुई है."
मौत का बेहद करीबी अनुभव
जो लोग मौत के दरवाज़े से वापस आये हैं, उनका कहना है कि उनकी आंखों के सामने उनका पूरा जीवन घूम गया या उन्हें उस पल में अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटनाएं याद आ गईं.
बहुत से लोग जिन्होंने मृत्यु के निकट का अनुभव किया है, वे भी चमकदार रोशनी देखने की रिपोर्ट करते हैं. कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि उन्हें ऐसा महसूस हो रहा है जैसे वे अपने शरीर से बाहर हैं और दूर से सब कुछ देख रहे हैं.
क्या डॉ. जिमो ने अपने शोध के दौरान मस्तिष्क की तीव्र गतिविधि या गति को देखा जिसके कारण मृत्यु के द्वार पर खड़े लोगों को ऐसे जबरदस्त अनुभव हुए?
डॉ. जिमो कहते हैं, ''हां, उन्हें भी ऐसा लगता है. दिल के दौरे के कम से कम 20 से 25 प्रतिशत रोगियों का कहना है कि उन्होंने एक सफेद रोशनी देखी. कुछ अजीब. इसका मतलब है कि उनके मस्तिष्क का दृश्य या छवि बनाने वाला हिस्सा सक्रिय हो गया था."
शोधकर्ताओं का कहना है कि वेंटिलेटर से हटाए जाने के बाद जिन दो मरीजों की दिमागी गतिविधियां तेज पाई गईं, उनमें विजुअल कॉर्टेक्स (मस्तिष्क का वह हिस्सा जो कुछ भी देखने के लिए महत्वपूर्ण है) में तेजी से गतिविधियां देखी गईं.
इसका मतलब है, "उन्हें इस तरह से कुछ देखने का अनुभव हुआ होगा." डॉ. जिमो बोरहेन को लगता है कि उन्होंने अपने शोध के दौरान बहुत कम लोगों पर अध्ययन किया. जब कोई व्यक्ति मर रहा होता है या मृत्यु के कगार पर होता है तो मस्तिष्क में क्या होता है, इस महत्वपूर्ण विषय पर अधिक शोध की आवश्यकता है.
लेकिन इस विषय पर दस साल से अधिक के शोध के बाद डॉ. जिमो को एक बात स्पष्ट हो गई है. वह कहती हैं, "मुझे लगता है कि जब आपको दिल का दौरा पड़ता है, तो मस्तिष्क बंद नहीं होता है. बल्कि, यह अधिक सक्रिय हो जाता है."
हालांकि, महत्वपूर्ण बात यह है कि जब मस्तिष्क को पता चलता है कि उसे काम करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन नहीं मिल रही है, तो वास्तव में क्या होता है?
जिमो कहते हैं, "हम अभी भी इस पर अध्ययन कर रहे हैं. इस बारे में ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है. दरअसल, इस बारे में कुछ भी पता नहीं है."
डॉक्टर जिमो हाइबरनेशन के बारे में भी बात करती हैं. उनका कहना है कि उन्हें लगता है कि ऐसा कुछ हो रहा है. कृन्तकों और मनुष्यों सहित सभी जानवरों में ऑक्सीजन की कमी से निपटने के लिए अलग-अलग तंत्र होते हैं.
''अब तक यही माना जाता था कि जब दिल काम करना बंद कर देता है तो दिमाग भी काम करना बंद कर देता है और निष्क्रिय हो जाता है. यानी जब दिल धड़कना बंद कर देता है तो दिमाग भी पूरी तरह से निष्क्रिय हो जाता है. लोग सोचते हैं कि दिमाग ऐसी स्थिति को संभाल नहीं पाता और यह भी मर जाता है.
हालाँकि, डॉ. जिमो का मानना है कि दिमाग इतनी आसानी से हार नहीं मानता. जिस प्रकार हमारा मस्तिष्क हर कठिन परिस्थिति का मुकाबला करता है. वह भी इसी प्रकार मृत्यु का सामना करता है.
"हाइबरनेशन इसका एक अच्छा उदाहरण है. मुझे लगता है कि मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी की इस चुनौती से निपटने की क्षमता है. लेकिन इस संबंध में और अधिक शोध, अध्ययन की आवश्यकता है."
अभी भी बहुत सारा शोध किया जाना बाकी है
डॉ. जिमो बोरहेन का मानना है कि उन्होंने और उनके सहयोगियों ने जो जानकारी उजागर की है वह केवल एक अंश है. इस संबंध में अभी भी ढेर सारी जानकारी उपलब्ध है.
"मुझे लगता है कि मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी या कमी से निपटने के लिए कुछ प्रकार की व्यवस्था होती है जिसके बारे में हम नहीं जानते हैं. सतही तौर पर हम जो जानते हैं वह यह है कि जिन लोगों का दिल काम करना बंद कर देता है या धड़कना बंद कर देता है उन्हें ये अजीब और अलग अनुभव होते हैं. हमारा डेटा से पता चलता है कि ये अनुभव मस्तिष्क में चल रही विभिन्न क्रियाओं या हलचलों के कारण होते हैं."
मरते समय मस्तिष्क में इतनी सक्रियता क्यों होती है? अब यही सवाल है.
वह कहती हैं, "हम सभी को सामूहिक रूप से और अधिक काम करना होगा और इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करनी होगी." वास्तव में मर जाते हैं. क्योंकि, हम अभी भी अच्छी तरह से नहीं जानते हैं कि मृत्यु की सटीक प्रक्रिया क्या है, मृत्यु के समय वास्तव में क्या होता है."
(Disclaimer: यह लेख केवल आपकी जानकारी के लिए है. इस पर अमल करने से पहले अपने विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लें.)
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